रात भर रेंगते हुये पहुंचता हूं घर उसके... निंद खुलते ही घर खाली हाथ लौट आता हूं... रौशनी गिरा देती है वो सारे आशियाने मेरे... सारी रात अंधेर...
रात भर रेंगते हुये पहुंचता हूं घर उसके...
निंद खुलते ही घर खाली हाथ लौट आता हूं...
रौशनी गिरा देती है वो सारे आशियाने मेरे...
सारी रात अंधेरों में बैठ कर जो मैं सजाता हूं...
जानता हूं दर्द देगा मुझे उसकी यादों का कारवां...
ना जाने फिर क्यों मैं उसे याद कर के बार बार खुद को आज़माता हूं...
जब कभी बेचैन कर देती हैं मुझे यादें उसकी...
मै दो लफ्ज़ लिख कर अक्सर ही गुनगुनाता हूं...
बड़ा गहरा है उसकी सोच का समन्दर यारों...
मै किनारे पर बैठा बैठा ही ढूब जाता हूं...
कितना नादान हो गया हूं मोहब्बत में आकर मैं दोस्तों...
तुफान आने को है और मैं समन्दर के किनारों पर महल रेत के बनाता हूं...
सुबह होते ही मैं घर को लौट आता हूं...
निंद खुलते ही घर खाली हाथ लौट आता हूं...
रौशनी गिरा देती है वो सारे आशियाने मेरे...
सारी रात अंधेरों में बैठ कर जो मैं सजाता हूं...
जानता हूं दर्द देगा मुझे उसकी यादों का कारवां...
ना जाने फिर क्यों मैं उसे याद कर के बार बार खुद को आज़माता हूं...
जब कभी बेचैन कर देती हैं मुझे यादें उसकी...
मै दो लफ्ज़ लिख कर अक्सर ही गुनगुनाता हूं...
बड़ा गहरा है उसकी सोच का समन्दर यारों...
मै किनारे पर बैठा बैठा ही ढूब जाता हूं...
कितना नादान हो गया हूं मोहब्बत में आकर मैं दोस्तों...
तुफान आने को है और मैं समन्दर के किनारों पर महल रेत के बनाता हूं...
सुबह होते ही मैं घर को लौट आता हूं...
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