उसके इंतज़ार का आलम ना पुछिये... मोहब्बत के लिये क्या क्या ना उठाये गम ना पुछिये... सख्त सा लहज़ा रहा है हमारा दुनियादारों के लिये... एक उनक...
उसके इंतज़ार का आलम ना पुछिये...
मोहब्बत के लिये क्या क्या ना उठाये गम ना पुछिये...
सख्त सा लहज़ा रहा है हमारा दुनियादारों के लिये...
एक उनके आगे पड़ गये हम कितने नरम ना पुछिये...
बड़ी इज़्जत कमाई थी शहर में शौक अपने सारे दबा कर...
मगर एक शक्स के खातिर बन गये कितने बेशरम ना पुछिये...
वैसे तो मै सपनो की दुनिया से कोई वास्ता नही रखता...
मगर उसको अपना बनाने के क्या क्या हमने पाले भरम ना पुछिये...
धीरज झा...
मोहब्बत के लिये क्या क्या ना उठाये गम ना पुछिये...
सख्त सा लहज़ा रहा है हमारा दुनियादारों के लिये...
एक उनके आगे पड़ गये हम कितने नरम ना पुछिये...
बड़ी इज़्जत कमाई थी शहर में शौक अपने सारे दबा कर...
मगर एक शक्स के खातिर बन गये कितने बेशरम ना पुछिये...
वैसे तो मै सपनो की दुनिया से कोई वास्ता नही रखता...
मगर उसको अपना बनाने के क्या क्या हमने पाले भरम ना पुछिये...
धीरज झा...
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