मेरे पास मां है... दिवार फिल्म में शशि कपूर एक डयलॉग बोलते हैं 'मेरे पास मां है' | सुनने में तो बड़ा फिल्मी सा लगता है | मगर सच भी य...
मेरे पास मां है...
दिवार फिल्म में शशि कपूर एक डयलॉग बोलते हैं 'मेरे पास मां है' | सुनने में तो बड़ा फिल्मी सा लगता है | मगर सच भी यही है के ज़िंदगी को ग़म अगर कुछ हद तक कम हैं तो वजह भी मां ही है | पापा मकान बनाये मगर मां ने उसे घर बना दिया हमारा घर | उस घर में उसकी खुशियों की बलिदानी है जो कहीं ना कहीं हमारी वजह से वो देती आयी है | कई बार कई काम कहीं आना जाना टाल दिया ये कह कर के बच्चे अकेले नही रह पायेंगे | कौन खाना बना कर देगा कौन उनकी फरमाईशें सुनेगा | नही मैं नही जा सकती | उसका मन था पर वो नही गईं | कुछ बनाया कहीं कम पड़ गया और देख रही है के बच्चे को अच्छा लगा तो कड़ाही मे बचा सारा ला के थाली में रख देंगी | पुछो आप क्या खाओगी तो वोही पुराना बहाना | मन नही है वैसे भी मुझे अच्छा नही लगता | जैसे कुछ रहा ही ना हो बच्चों के सिवा दुनिया में | बच्चे स्कूल से आते होंगे खाना खिला दूं तो दूसरा कोई काम करूंगी | छुट्टी लेते भी नही देखा कभी उन्हे | जितने बुखार में हमे नानी दादी सब याद आने लगती है | उतने बुखार में भी वो काम करती हैं तब तक जब तक हाथ लगा के कोई चिल्ला ना दे अरे मां को तो बुखार है |
मैने आज तक मां को किसी त्योहार या खास मौके पर नये कपड़ों के लिये हां कहते नही सुना | वो हौले से फुसफुसा के कहेंगी मै कौन सा कहीं आती जाती हूं घर पर ही तो रहना है नये क्या करने हैं पहले ही बहुत हैं | ये बात अलग है के वो बहुत से कपड़े कहां हैं मैने नही देखें | फिर पापा ज़बरदस्ती ला देंगे | वो सोचती थी मेरे लोने से अच्छ बच्चों के कपड़े ले लिये जायें तो अच्छा है | पैसों की बचत का अभियान वो अक्सर खुद के खर्चों में से कटौती कर के ही शुरू करतीं थीं | हालांकी उनके खर्चे हैं भी तो बस नाममात्र | ये कहानी मेरी मां की ही नही लगभग सब माओं की है | जिसने अपनी ज़िंदगी में ना जाने कितना बदलाव लाया.होता है सिर्फ हमारी वजह से |
आज "मातृ दिवस" के मौके पर संसार की तमाम मांओं को प्रणाम करतो हूं | वो आसमान वाला भगवान इस ज़मीन के भगवान को हमेशा खुश रखे और तन्दरूस्त रखे...
मां मैं आपसे बहुत प्यार करता हूं...
धीरज झा....
दिवार फिल्म में शशि कपूर एक डयलॉग बोलते हैं 'मेरे पास मां है' | सुनने में तो बड़ा फिल्मी सा लगता है | मगर सच भी यही है के ज़िंदगी को ग़म अगर कुछ हद तक कम हैं तो वजह भी मां ही है | पापा मकान बनाये मगर मां ने उसे घर बना दिया हमारा घर | उस घर में उसकी खुशियों की बलिदानी है जो कहीं ना कहीं हमारी वजह से वो देती आयी है | कई बार कई काम कहीं आना जाना टाल दिया ये कह कर के बच्चे अकेले नही रह पायेंगे | कौन खाना बना कर देगा कौन उनकी फरमाईशें सुनेगा | नही मैं नही जा सकती | उसका मन था पर वो नही गईं | कुछ बनाया कहीं कम पड़ गया और देख रही है के बच्चे को अच्छा लगा तो कड़ाही मे बचा सारा ला के थाली में रख देंगी | पुछो आप क्या खाओगी तो वोही पुराना बहाना | मन नही है वैसे भी मुझे अच्छा नही लगता | जैसे कुछ रहा ही ना हो बच्चों के सिवा दुनिया में | बच्चे स्कूल से आते होंगे खाना खिला दूं तो दूसरा कोई काम करूंगी | छुट्टी लेते भी नही देखा कभी उन्हे | जितने बुखार में हमे नानी दादी सब याद आने लगती है | उतने बुखार में भी वो काम करती हैं तब तक जब तक हाथ लगा के कोई चिल्ला ना दे अरे मां को तो बुखार है |
मैने आज तक मां को किसी त्योहार या खास मौके पर नये कपड़ों के लिये हां कहते नही सुना | वो हौले से फुसफुसा के कहेंगी मै कौन सा कहीं आती जाती हूं घर पर ही तो रहना है नये क्या करने हैं पहले ही बहुत हैं | ये बात अलग है के वो बहुत से कपड़े कहां हैं मैने नही देखें | फिर पापा ज़बरदस्ती ला देंगे | वो सोचती थी मेरे लोने से अच्छ बच्चों के कपड़े ले लिये जायें तो अच्छा है | पैसों की बचत का अभियान वो अक्सर खुद के खर्चों में से कटौती कर के ही शुरू करतीं थीं | हालांकी उनके खर्चे हैं भी तो बस नाममात्र | ये कहानी मेरी मां की ही नही लगभग सब माओं की है | जिसने अपनी ज़िंदगी में ना जाने कितना बदलाव लाया.होता है सिर्फ हमारी वजह से |
आज "मातृ दिवस" के मौके पर संसार की तमाम मांओं को प्रणाम करतो हूं | वो आसमान वाला भगवान इस ज़मीन के भगवान को हमेशा खुश रखे और तन्दरूस्त रखे...
मां मैं आपसे बहुत प्यार करता हूं...
धीरज झा....
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