कुछ लिख रहा हूं | शायद इस लेख से कितनो के उपहास का पात्र बन जाऊं | शायद को ध्यान भी ना दे | मगर अभी मेरी वो हालत नही के मै इतनी गहराई तक सोच...
कुछ लिख रहा हूं | शायद इस लेख से कितनो के उपहास का पात्र बन जाऊं | शायद को ध्यान भी ना दे | मगर अभी मेरी वो हालत नही के मै इतनी गहराई तक सोचूं | इसी लिये बिना सोचे लिख रहा हूं |
ये जो कुछ लिखूंगा ये किसी को पढ़ाने या बताने के लिये नही | ये बस मेरे मन को हल्का करेगी | वो बातें जो मै सामने सो किसी को ना बता पाऊं अब शायद | जो बस ज़हन मे घुमती हैं और मुझे इतनी तकलिफ देतीं हैं जितनी शायद शरीर पर लगी गहरी चोट भी ना दे |
जब इस प्यार व्यार के बारे में नही जानता था ना तब फिल्मों मे हीरो को हीरोईन के लिये रोते देखता तो सोचता था के साला पागल है क्या बेवजह रो रहा है | एक गई तो दूसरी फसा ले इसमे रोने की क्या बात है | पर अब समझ आता है | जब खुद अनुभव किया बार बार | तब जाना के कोई कैसे इतने मायने रखना है | जिसके लिये जिसको अपनाने के लिये इंसान किसी हद तक जा सकता है | बिना लोक लज्जा की परवाह किये | कैसे सुबक सुबक कर रोता है | कैसे सब में मुस्कुरा कर अकेले में सिरहानों मे मुह छुपा कर इतनी हौले से रोता है के कोई और ना सुन ले | मन में हर दम डर बना रहता है के कब अलग होने का फरमान आजाये | और उपर ले रिश्ता कहीं लांग डिस्टैंस का हो तो दर्द मानो कई गुना बढ़ जाता है | किसी को बता नही सकते लोग बस हंसी उड़ाते हैं | रो नही सकते उदास नही दिख सकते |
कुर्बानी देनी पड़ती है ज़ात के नाम पर मां बाप के नाम पर और ना जाने कितने नामों पर | तब अपना स्टेटस भी खलने लगता है के कहीं अमीर परीवार से होता तो शायद बात बन जाती | तरह तरह की सोच दिमाग खुद सोच लेता हैै | फिर जब रह रह कर वो अजीब सी तड़प उठती है ना मानो के उस से अच्छा मरना लगने लगता है | लेकीन मरा भी नही जाता ना |
शुकर है भगवान ने इतनी दया दिखाई के लिखना सिखा दिया थोड़ा बहुत अलूल जलूल ही सही | इस से कम से कम अपनी बात तो कह देता हूं | मगर ये कब थमेगा | कब तक जख्म फिर मरहम फिर उस से बड़ा जख्म मिलता रहेगा | इसका जवाब नही मिलता | मेरी पीड़ा शायद ही कोई समझे | बल्की मै तो दुआ करूंगा ना ही कोई समझे क्यों किसी को मेरी वजह से तकलिफ हो |
उपर की सभी लाईनस कालप्निक हैं | जो बस यूं ही लिखी गईं हैं |
धीरज झा...
ये जो कुछ लिखूंगा ये किसी को पढ़ाने या बताने के लिये नही | ये बस मेरे मन को हल्का करेगी | वो बातें जो मै सामने सो किसी को ना बता पाऊं अब शायद | जो बस ज़हन मे घुमती हैं और मुझे इतनी तकलिफ देतीं हैं जितनी शायद शरीर पर लगी गहरी चोट भी ना दे |
जब इस प्यार व्यार के बारे में नही जानता था ना तब फिल्मों मे हीरो को हीरोईन के लिये रोते देखता तो सोचता था के साला पागल है क्या बेवजह रो रहा है | एक गई तो दूसरी फसा ले इसमे रोने की क्या बात है | पर अब समझ आता है | जब खुद अनुभव किया बार बार | तब जाना के कोई कैसे इतने मायने रखना है | जिसके लिये जिसको अपनाने के लिये इंसान किसी हद तक जा सकता है | बिना लोक लज्जा की परवाह किये | कैसे सुबक सुबक कर रोता है | कैसे सब में मुस्कुरा कर अकेले में सिरहानों मे मुह छुपा कर इतनी हौले से रोता है के कोई और ना सुन ले | मन में हर दम डर बना रहता है के कब अलग होने का फरमान आजाये | और उपर ले रिश्ता कहीं लांग डिस्टैंस का हो तो दर्द मानो कई गुना बढ़ जाता है | किसी को बता नही सकते लोग बस हंसी उड़ाते हैं | रो नही सकते उदास नही दिख सकते |
कुर्बानी देनी पड़ती है ज़ात के नाम पर मां बाप के नाम पर और ना जाने कितने नामों पर | तब अपना स्टेटस भी खलने लगता है के कहीं अमीर परीवार से होता तो शायद बात बन जाती | तरह तरह की सोच दिमाग खुद सोच लेता हैै | फिर जब रह रह कर वो अजीब सी तड़प उठती है ना मानो के उस से अच्छा मरना लगने लगता है | लेकीन मरा भी नही जाता ना |
शुकर है भगवान ने इतनी दया दिखाई के लिखना सिखा दिया थोड़ा बहुत अलूल जलूल ही सही | इस से कम से कम अपनी बात तो कह देता हूं | मगर ये कब थमेगा | कब तक जख्म फिर मरहम फिर उस से बड़ा जख्म मिलता रहेगा | इसका जवाब नही मिलता | मेरी पीड़ा शायद ही कोई समझे | बल्की मै तो दुआ करूंगा ना ही कोई समझे क्यों किसी को मेरी वजह से तकलिफ हो |
उपर की सभी लाईनस कालप्निक हैं | जो बस यूं ही लिखी गईं हैं |
धीरज झा...
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