दौर बदला तो मै क्यों ना बदलूं...औरतज़ात की कहानी मेरी ज़ुबानी... ज़िंदगी को अपने तरीके से जी लिया तो क्या बुरा किया... तुमने पीया पुरा मैखान...
दौर बदला तो मै क्यों ना बदलूं...औरतज़ात की कहानी मेरी ज़ुबानी...
ज़िंदगी को अपने तरीके से जी लिया तो क्या बुरा किया...
तुमने पीया पुरा मैखाना मैने एक जाम पी लिया तो क्या बुरा किया...
अगर अपनी मर्ज़ी से चुना लिबास अपना...
बयां कर दिया खुल कर हर अहसास अपना...
जहां मन वहां घुम आई अपने लिये की नौकरी और की कमाई...
अपना गिरेबां तुमने ना देखा मेरी बारी याद आई तुमको खुदाई...
हंस कर बात क्या कर दी तुमने तो बदचलन का दर्जा तक दिया...
मैने अपनी पसंद से कोई काम किया तो बुरा क्या किया...
रब के तुम हो बन्दे तो मैं भी उसी की कारीगरी हूं...
तुम आसमां तक चले गये मैं ज़मीं पर पड़ी हूं...
मेरे हालात पर तो कभी तरस ना आया...
जब मैने उड़ना चाहा तो तुमने मुझे एैयाश कह कर बुलाया...
मै ने तकलीफें जब तक सही देवी कहलाती रही...
तब तक रही अच्छी जब तक खून जलाती रही...
तोड़ दिये अब सारे बंधन पुराने रिवाज़ों को जला दिया...
खुद के लिये जलाया दिपक तो मैने क्या बुरा किया...
कब तक मैं बनती जुती पैरों की तुम्हारी...
अब पगड़ी बनने की है मेरी बारी...
नज़रें खराब दरिंदों की तो उसमें मेरी क्या ख़ता...
गुनाह किसी और का मुझे मिले क्यों सज़ा...
आकर के तंग सबसे मैने ये फैसला लिया...
कर ली अपने मन की तो क्या बुरा किया कहो क्या बुरा किया...
कुछ गलत लिख दिया हो तो माफी चाहूंगा सब से...
धीरज झा....

ज़िंदगी को अपने तरीके से जी लिया तो क्या बुरा किया...
तुमने पीया पुरा मैखाना मैने एक जाम पी लिया तो क्या बुरा किया...
अगर अपनी मर्ज़ी से चुना लिबास अपना...
बयां कर दिया खुल कर हर अहसास अपना...
जहां मन वहां घुम आई अपने लिये की नौकरी और की कमाई...
अपना गिरेबां तुमने ना देखा मेरी बारी याद आई तुमको खुदाई...
हंस कर बात क्या कर दी तुमने तो बदचलन का दर्जा तक दिया...
मैने अपनी पसंद से कोई काम किया तो बुरा क्या किया...
रब के तुम हो बन्दे तो मैं भी उसी की कारीगरी हूं...
तुम आसमां तक चले गये मैं ज़मीं पर पड़ी हूं...
मेरे हालात पर तो कभी तरस ना आया...
जब मैने उड़ना चाहा तो तुमने मुझे एैयाश कह कर बुलाया...
मै ने तकलीफें जब तक सही देवी कहलाती रही...
तब तक रही अच्छी जब तक खून जलाती रही...
तोड़ दिये अब सारे बंधन पुराने रिवाज़ों को जला दिया...
खुद के लिये जलाया दिपक तो मैने क्या बुरा किया...
कब तक मैं बनती जुती पैरों की तुम्हारी...
अब पगड़ी बनने की है मेरी बारी...
नज़रें खराब दरिंदों की तो उसमें मेरी क्या ख़ता...
गुनाह किसी और का मुझे मिले क्यों सज़ा...
आकर के तंग सबसे मैने ये फैसला लिया...
कर ली अपने मन की तो क्या बुरा किया कहो क्या बुरा किया...
कुछ गलत लिख दिया हो तो माफी चाहूंगा सब से...
धीरज झा....
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