ज़रूर पढ़ें अगर किसी से प्यार करते हैं तो | अच्छा लगे तो आप भी ख्यालों में खो कर कुछ पल का सुकून ले लें | ख्वाब मेरे अजीब से... जब भी सुबह ...
ज़रूर पढ़ें अगर किसी से प्यार करते हैं तो | अच्छा लगे तो आप भी ख्यालों में खो कर कुछ पल का सुकून ले लें |
ख्वाब मेरे अजीब से...
जब भी सुबह सो कर उठता हूं तो ख्यालों की सड़क पर तेरे संग सजाये ख्वाबों का जाम लगा होता है | मगर ये जाम व्याकुल नही करता बड़ा सुखद लगता है | क्यों की साथ तुम जो होते हो इसमे | सबसे आगे अक्सर ये ख्वाब होता है जो मुझे बेहद प्यारा है |
जिस में तुम सोई हो और मैं तुम्हे एक टक देखे जा रहा हूं | तुम्हारा मासूम सा चेहरा शांत सा चेहरा | बच्चे जैसा हर ग़म से अंजान | तुम्हारी आवारा लटें जो चेहरे पर बार बार आ कर धमाचौंकड़ी मचाती हैं | और मैं बार बार अपनी ऊंगलियों से उन्हे खदेड़ आता हूं | फिर तुम्हे जगाने की चाहत बिना हौले से माथे को चूम लेता हूं | और फिर देखता हूं लगातार देखता हूं | तुम्हारी आंखें खुलती हैं | बड़ी सी मुस्कान और हल्की सी शिकायत लिये तुम कहती हो " आज फिर नही सोये ना सारी रात लाइटस अभी तक जल रही हैं | आखिर क्या मिलता है मुझे ऐसे सारी रात जग के देखने में " | मैं मुस्कुरा कर बस इतना ही कह पाता हूं " सुकून बहुत सा बस सुकून " |
और ख्वाब टूट जाता है किसी की आहट से | रोज़ इन्ही ख्वाबों में ज़िंदगी जी लेता हूं | जानते हुये के ये बस ख्वाब ही रह जायेंगे | प्यार जो करता हूं निर्लोभी प्यार | जिसमें चाह बस तुम्हारी खुशी की है |
धीरज झा....
ख्वाब मेरे अजीब से...
जब भी सुबह सो कर उठता हूं तो ख्यालों की सड़क पर तेरे संग सजाये ख्वाबों का जाम लगा होता है | मगर ये जाम व्याकुल नही करता बड़ा सुखद लगता है | क्यों की साथ तुम जो होते हो इसमे | सबसे आगे अक्सर ये ख्वाब होता है जो मुझे बेहद प्यारा है |
जिस में तुम सोई हो और मैं तुम्हे एक टक देखे जा रहा हूं | तुम्हारा मासूम सा चेहरा शांत सा चेहरा | बच्चे जैसा हर ग़म से अंजान | तुम्हारी आवारा लटें जो चेहरे पर बार बार आ कर धमाचौंकड़ी मचाती हैं | और मैं बार बार अपनी ऊंगलियों से उन्हे खदेड़ आता हूं | फिर तुम्हे जगाने की चाहत बिना हौले से माथे को चूम लेता हूं | और फिर देखता हूं लगातार देखता हूं | तुम्हारी आंखें खुलती हैं | बड़ी सी मुस्कान और हल्की सी शिकायत लिये तुम कहती हो " आज फिर नही सोये ना सारी रात लाइटस अभी तक जल रही हैं | आखिर क्या मिलता है मुझे ऐसे सारी रात जग के देखने में " | मैं मुस्कुरा कर बस इतना ही कह पाता हूं " सुकून बहुत सा बस सुकून " |
और ख्वाब टूट जाता है किसी की आहट से | रोज़ इन्ही ख्वाबों में ज़िंदगी जी लेता हूं | जानते हुये के ये बस ख्वाब ही रह जायेंगे | प्यार जो करता हूं निर्लोभी प्यार | जिसमें चाह बस तुम्हारी खुशी की है |
धीरज झा....
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