9. सच है कड़वा तो होगा ही ज़रूर पढ़ें मेरी कहानी और अपनी राय दें... के साथ बिस्तर गर्म करने का ख्वाब मोहल्ले का हर सफेदपोश और इज़्जतदीर सज...
9. सच है कड़वा तो होगा ही ज़रूर पढ़ें मेरी कहानी और अपनी राय दें...
के साथ बिस्तर गर्म करने का ख्वाब मोहल्ले का हर सफेदपोश और इज़्जतदीर सज्जन सजाते हैं | उसकी मजबुरी का फायदा उठाने की हर मुमकिन कोशिश की गई | किसी मे मौकरी का लालच दिया किसी ने विधवा है तो शीदी के खिवाब दिखाने की कोशिश की | मगर वो सब सहती सब सुनती मगर अपना इमान ना डोलने देती अपना | एक इज्ज़त ही तो जायदाद बची थी उसके पास | जब सब की कोशिश नाकाम हुई तो तब दौर शुरू हुआ अफवाहों का | गुप्ता जी शहर के जानो माने वकील डॉक्टर वर्मा को बता रहे थे " अजी आयी थी हमारे पास बोली 10000 हज़ार रात भर की लेगी | मैने उल्टे पांव भगा दी मैने कह दिया मै ऐसा नही कोई और दर देख लो " जबकी सच ये था के यही वो शक्स थे जो अक्सर उसके घर में तांक झांक करते पाये जाते थे...ये इफवाह फैलती गई | किसी ने कहा जहां काम करती है वहां के मालिक के साथ चक्कर हे जिसके जो मुंह मे आया वो बोला | आखिर कब तक कोई सहे एक सुबह जब दोपहर तक वो ना दिखी तो पड़ोसी ने दरवाजा खटखटाया मगर कोई सुगबुगाहट नही | धीरे धीरे सारा मोहल्ला इक्टठा हो गया | दरवाज़ा तोड़ा तो पाया | खुद पंखे से लटकी है और बच्चा जिसे शायद ज़हर दिया था बिस्तर पे मरा पड़ा है | लोगो के दिल फिर दया ना ईई फिर फुस्फुसीये पाप का बोझ ले के कब तक जीती मगर डायन ने बच्ची को क्यों मारा | बच्ची को मारती ना तो क्या करती छोड़ देती तीकी फिर उसके उसपे कोई गंदी नज़र डाले उसका दीम तय करे अच्छा किया दो मासुम को इस नर्क से मुक्ती दिलाई |
ये कहानी किसी एक औरत की नही ये कहानी है हर शहर हर गांव हर कस्बे मे बैठी उस औरत की जिसके साथ मजबुरीयां हैं और वहां बैठे हैं मजबुरीयों का फायदा उठीमे वीले | अगर मान गई तो ठीक नही तो बदनाम कर के उस से आत्महत्या तो करवा ही देंगे | तरस आता है ऐसे लोगों पर कैसे अपने गुनाहों की लेखी देंगे...
मै धीरज झा इस कहानी के माध्यम से यही बताना चाहता हूं के जी लेने दें किसी को अपनी ज़िंदगी अपने कुछ पल के काम सुख के लिये मत मारें अपना ज़मीर औरत की इज्ज़त करना सीखें ये लोग जो ऐसी सोच रखते हैं...किसी तरह की गलती के लिये माफी चाहूंगा...
के साथ बिस्तर गर्म करने का ख्वाब मोहल्ले का हर सफेदपोश और इज़्जतदीर सज्जन सजाते हैं | उसकी मजबुरी का फायदा उठाने की हर मुमकिन कोशिश की गई | किसी मे मौकरी का लालच दिया किसी ने विधवा है तो शीदी के खिवाब दिखाने की कोशिश की | मगर वो सब सहती सब सुनती मगर अपना इमान ना डोलने देती अपना | एक इज्ज़त ही तो जायदाद बची थी उसके पास | जब सब की कोशिश नाकाम हुई तो तब दौर शुरू हुआ अफवाहों का | गुप्ता जी शहर के जानो माने वकील डॉक्टर वर्मा को बता रहे थे " अजी आयी थी हमारे पास बोली 10000 हज़ार रात भर की लेगी | मैने उल्टे पांव भगा दी मैने कह दिया मै ऐसा नही कोई और दर देख लो " जबकी सच ये था के यही वो शक्स थे जो अक्सर उसके घर में तांक झांक करते पाये जाते थे...ये इफवाह फैलती गई | किसी ने कहा जहां काम करती है वहां के मालिक के साथ चक्कर हे जिसके जो मुंह मे आया वो बोला | आखिर कब तक कोई सहे एक सुबह जब दोपहर तक वो ना दिखी तो पड़ोसी ने दरवाजा खटखटाया मगर कोई सुगबुगाहट नही | धीरे धीरे सारा मोहल्ला इक्टठा हो गया | दरवाज़ा तोड़ा तो पाया | खुद पंखे से लटकी है और बच्चा जिसे शायद ज़हर दिया था बिस्तर पे मरा पड़ा है | लोगो के दिल फिर दया ना ईई फिर फुस्फुसीये पाप का बोझ ले के कब तक जीती मगर डायन ने बच्ची को क्यों मारा | बच्ची को मारती ना तो क्या करती छोड़ देती तीकी फिर उसके उसपे कोई गंदी नज़र डाले उसका दीम तय करे अच्छा किया दो मासुम को इस नर्क से मुक्ती दिलाई |
ये कहानी किसी एक औरत की नही ये कहानी है हर शहर हर गांव हर कस्बे मे बैठी उस औरत की जिसके साथ मजबुरीयां हैं और वहां बैठे हैं मजबुरीयों का फायदा उठीमे वीले | अगर मान गई तो ठीक नही तो बदनाम कर के उस से आत्महत्या तो करवा ही देंगे | तरस आता है ऐसे लोगों पर कैसे अपने गुनाहों की लेखी देंगे...
मै धीरज झा इस कहानी के माध्यम से यही बताना चाहता हूं के जी लेने दें किसी को अपनी ज़िंदगी अपने कुछ पल के काम सुख के लिये मत मारें अपना ज़मीर औरत की इज्ज़त करना सीखें ये लोग जो ऐसी सोच रखते हैं...किसी तरह की गलती के लिये माफी चाहूंगा...
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