मैं अब मुक्मल नही तेरी ज़ात बिना... मेरी हर बात अधुरी है तेरी बात बिना... रास्ता आसान सा दिखता है मंज़िल का जब तू साथ चले... मगर एक कदम भी म...
मैं अब मुक्मल नही तेरी ज़ात बिना...
मेरी हर बात अधुरी है तेरी बात बिना...
रास्ता आसान सा दिखता है मंज़िल का जब तू साथ चले...
मगर एक कदम भी मुश्किल है चलना तेरे साथ बिना...
बहुत चाहते हैं लोग मेरी गज़लों को...
मगर क्या जाने वो ये अधूरी सी हैं तेरे अहसास बिना...
अच्छा है जो ये ग़म आये मेरी ज़िंदगी में...
कितनी करता हूं मोहब्बत तुझसे कैसे जान पाता बिगड़े हालात बिना...
मैं तेरे बगैर अधूरा सा हूं वैसे ही...
दिन अधूरा होता है जैसे रात बिना...
धीरज झा...
मेरी हर बात अधुरी है तेरी बात बिना...
रास्ता आसान सा दिखता है मंज़िल का जब तू साथ चले...
मगर एक कदम भी मुश्किल है चलना तेरे साथ बिना...
बहुत चाहते हैं लोग मेरी गज़लों को...
मगर क्या जाने वो ये अधूरी सी हैं तेरे अहसास बिना...
अच्छा है जो ये ग़म आये मेरी ज़िंदगी में...
कितनी करता हूं मोहब्बत तुझसे कैसे जान पाता बिगड़े हालात बिना...
मैं तेरे बगैर अधूरा सा हूं वैसे ही...
दिन अधूरा होता है जैसे रात बिना...
धीरज झा...
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