मौत को तो हर हाल में आना था... तुम्हारा नाम तो महज़ बहाना था... . भटका जो दर बदर वो मर्ज़ी थी मेरी... मुझे लौट कर अब घर कहाँ जाना था... . एक...
मौत को तो हर हाल में आना था...
तुम्हारा नाम तो महज़ बहाना था...
.
भटका जो दर बदर वो मर्ज़ी थी मेरी...
मुझे लौट कर अब घर कहाँ जाना था...
.
एक तुम ही नही परेशानियाँ और भी थीं....
मगर अफसोस बहती आँखों से सबने सिर्फ तुमको पहचाना था...
.
मैं लिख के गया था दावा की मौत के ज़िम्मेदार तुम नही...
मगर लफ्ज़ आँसुओं में ऐसे तर थे की मुश्किल उन्हे पढ़ पाना था...
.
धीरज झा...
धीरज झा
तुम्हारा नाम तो महज़ बहाना था...
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भटका जो दर बदर वो मर्ज़ी थी मेरी...
मुझे लौट कर अब घर कहाँ जाना था...
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एक तुम ही नही परेशानियाँ और भी थीं....
मगर अफसोस बहती आँखों से सबने सिर्फ तुमको पहचाना था...
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मैं लिख के गया था दावा की मौत के ज़िम्मेदार तुम नही...
मगर लफ्ज़ आँसुओं में ऐसे तर थे की मुश्किल उन्हे पढ़ पाना था...
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धीरज झा...
धीरज झा
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