सुनो तुम... . प्रेम में मैं बच्चे जैसा हूँ... अलहड़ बदमाश तूफानी ... करता रोज़ नई शैतानी... मैं नोच लेता हूँ नाखूनों से तुम्हे जब तुम माँ की...
सुनो तुम...
.
प्रेम में मैं बच्चे जैसा हूँ...
अलहड़ बदमाश तूफानी ...
करता रोज़ नई शैतानी...
मैं नोच लेता हूँ नाखूनों से
तुम्हे जब तुम माँ की तरह
सहलाती हो मेरे सर को...
तुम्हारी आँखों में होता है पीड़ा
पर मैं मस्तियों में डूब कर भूल जाता हूँ
तुम्हारे उदास हो जाने के डर को...
उठने लगते हैं माँ की तरह
हाथ तुम्हारे रूखे शब्दों का रूप ले कर
पर फिर ठिठक जाती हो
आड़े आ जाता है मातृत्व सा
.प्रेम तुम्हारा...
कभी जो उदास हो जाऊँ तो
मनाती हो मीठी रोटियों
से ललचा कर
कितना करती हो लाढ़
मुझे रखती हो मेरे प्रेम को
बुरी नज़रों से बचा कर...
हर बार मेरी शैतानियों से
ख़फा हो कर रूठ जाती
हो फिर कुछ देर बाद ही मुझे माँ
की तरह गले से लगाती हो....
तुम अब
जान गई ना की मुझे मालूम है.प्रेम हर बार के झगड़े के बाद
कैसे और फलता फूलता
और बढ़ता है...
ये अटूट प्रेम है
क्योंकी तुम.प्रेम में
माँ जैसी हो और मैं प्रेम में
तुम्हारे बच्चे जैसा...
.
धीरज झा...
धीरज झा
.
प्रेम में मैं बच्चे जैसा हूँ...
अलहड़ बदमाश तूफानी ...
करता रोज़ नई शैतानी...
मैं नोच लेता हूँ नाखूनों से
तुम्हे जब तुम माँ की तरह
सहलाती हो मेरे सर को...
तुम्हारी आँखों में होता है पीड़ा
पर मैं मस्तियों में डूब कर भूल जाता हूँ
तुम्हारे उदास हो जाने के डर को...
उठने लगते हैं माँ की तरह
हाथ तुम्हारे रूखे शब्दों का रूप ले कर
पर फिर ठिठक जाती हो
आड़े आ जाता है मातृत्व सा
.प्रेम तुम्हारा...
कभी जो उदास हो जाऊँ तो
मनाती हो मीठी रोटियों
से ललचा कर
कितना करती हो लाढ़
मुझे रखती हो मेरे प्रेम को
बुरी नज़रों से बचा कर...
हर बार मेरी शैतानियों से
ख़फा हो कर रूठ जाती
हो फिर कुछ देर बाद ही मुझे माँ
की तरह गले से लगाती हो....
तुम अब
जान गई ना की मुझे मालूम है.प्रेम हर बार के झगड़े के बाद
कैसे और फलता फूलता
और बढ़ता है...
ये अटूट प्रेम है
क्योंकी तुम.प्रेम में
माँ जैसी हो और मैं प्रेम में
तुम्हारे बच्चे जैसा...
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धीरज झा...
धीरज झा
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