तो फिर चलते हैं... . आज फिलहाल आखरी बार जी भर के आलसियों की तरह 12 बजो तक सो लिया | कल ट्रेन में और फिर अगले दिन पटना हॉस्टल में , फिर से वह...
तो फिर चलते हैं...
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आज फिलहाल आखरी बार जी भर के आलसियों की तरह 12 बजो तक सो लिया | कल ट्रेन में और फिर अगले दिन पटना हॉस्टल में , फिर से वही नियम जो हम बच्चों को सिखाना चाहते हैं | आज पंजाब छोड़ रहा हूँ साथ साथ छोड़े जा रहा हूँ अपना घर , अपना आलसीपन , अपना गंदा सा कमरा , अपने भाईयों को | सब बहुत याद आयेंगे पर सब से ज़्यादा जिसे याद करूँगा वो है माँ , माँ के हाथों का खाना | पापा तो साथ ही चल रहे हैं अब हमेशा सब जगह साथ ही रहेंगे | फिर बेचैन हो जाऊँगा पर अब हिम्मत बढ़ाने को माँ नही पास होंगी | फोन पर उनके हाथों का नर्म अहसास नही मिल पाता खुल कर कोई बात नही कह पाता | वक्त के इस उतार चढ़ाव वाले दौर में माँ हमेशा संभालती रही है | सच कहूँ तो रोना आ रहा है भावुक हूँ ना | पर बड़ा हूँ तो रो भी नही सकता | माँ तो रो पड़ीं जब चलने लगा तो , बस इतना ही कहा " बेटा ख़्याल रखना अपना अच्छे से , चिंता मत करना सब ठीक होगा | " बड़ी दुविधी थी माँ को चुप कराऊँ या खुद रो दूँ समझ ही ना सका | खैर ज़िंदगी है सबके साथ होता है | बाकी तुम तो साथ हो ही हमेशा | दुरियाँ अब भी दो राज्यों की ही रहेंगीं पर लग रहा है जैसे इन सब रे साथ तुम्हे भी छोड़ कर दूर जा रहा हूँ और जाते हुये कह दूँ सुनों जाना अपना और सब का ख़्याल रखना खास कर माँ का | और हाँ एक बात और जो पहले भी कहता रहा हूँ ,तुम बहुत खूबसूरत हो माँ की मुस्कान जितनी खूबसूरत क्योंकी वो मुस्कान मुझे सबसे ज़्यादा खूबसूपत लगती बै दुनिया में | चलो तो चलता हूँ पंजाब , पटना ! मैं आरहा हूँ |
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धीरज झा...
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आज फिलहाल आखरी बार जी भर के आलसियों की तरह 12 बजो तक सो लिया | कल ट्रेन में और फिर अगले दिन पटना हॉस्टल में , फिर से वही नियम जो हम बच्चों को सिखाना चाहते हैं | आज पंजाब छोड़ रहा हूँ साथ साथ छोड़े जा रहा हूँ अपना घर , अपना आलसीपन , अपना गंदा सा कमरा , अपने भाईयों को | सब बहुत याद आयेंगे पर सब से ज़्यादा जिसे याद करूँगा वो है माँ , माँ के हाथों का खाना | पापा तो साथ ही चल रहे हैं अब हमेशा सब जगह साथ ही रहेंगे | फिर बेचैन हो जाऊँगा पर अब हिम्मत बढ़ाने को माँ नही पास होंगी | फोन पर उनके हाथों का नर्म अहसास नही मिल पाता खुल कर कोई बात नही कह पाता | वक्त के इस उतार चढ़ाव वाले दौर में माँ हमेशा संभालती रही है | सच कहूँ तो रोना आ रहा है भावुक हूँ ना | पर बड़ा हूँ तो रो भी नही सकता | माँ तो रो पड़ीं जब चलने लगा तो , बस इतना ही कहा " बेटा ख़्याल रखना अपना अच्छे से , चिंता मत करना सब ठीक होगा | " बड़ी दुविधी थी माँ को चुप कराऊँ या खुद रो दूँ समझ ही ना सका | खैर ज़िंदगी है सबके साथ होता है | बाकी तुम तो साथ हो ही हमेशा | दुरियाँ अब भी दो राज्यों की ही रहेंगीं पर लग रहा है जैसे इन सब रे साथ तुम्हे भी छोड़ कर दूर जा रहा हूँ और जाते हुये कह दूँ सुनों जाना अपना और सब का ख़्याल रखना खास कर माँ का | और हाँ एक बात और जो पहले भी कहता रहा हूँ ,तुम बहुत खूबसूरत हो माँ की मुस्कान जितनी खूबसूरत क्योंकी वो मुस्कान मुझे सबसे ज़्यादा खूबसूपत लगती बै दुनिया में | चलो तो चलता हूँ पंजाब , पटना ! मैं आरहा हूँ |
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धीरज झा...
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