ऐ नासमझ अपनों... . तुम इस तरह देखते हो हमारे प्रेम को जैसे ये दुनिया का सबसे बड़ा गुनाह हो | तुम मुँह फेर लेते हो देख कर जैसे हम एक मुजरिम ह...
ऐ नासमझ अपनों...
.
तुम इस तरह देखते हो हमारे प्रेम को जैसे ये दुनिया का सबसे बड़ा गुनाह हो | तुम मुँह फेर लेते हो देख कर जैसे हम एक मुजरिम हैं | क्या तुमने कभी किसी से प़मोहब्बत नही की क्या तुम्हे अहसास नही इसके दर्द का की कितना तकलीफ देता है किसी का किसी से जुदा हो जाना | तुम अगर सोचते हो की ये गुनाह है तो कभी वो खत पढ़ो हमारे जो हमवे एक दूसरे को रातों में जग कर दिन में दिन की रौशनी से छुप कर लिखे हैं पर उसे जब पढ़ना तो चादर ओढ़ लेना क्योंकी ठन्ड लगेगी क्योंकी उस खत पर बारिश हुई है उसका हर लफ्ज़ भीगा है आँसुओं से हवा के साथ मिल कर आस पास में एक ठन्डक सी भर देंगे ये शब्द पढ़ना उसे ग़ौर से देखना कितनी तड़प है देखना कैसे हर लफ्ज़ रो रहा है जुदाई के डर से काँपता हुआ | अगर दिल होगा तो शर्त लगा लो फटने लगेगा उन खतों को पढ़ कर | यकीन तब भी ना आये तो कभी चुपके से रातों को देखना हमें कैसे अकेले सिरहानों को हमसाया बना कर लेटे होते हैं कैसे मुँह छुपा कर उन में रो रहे होते हैं | यकीन तब भी ना हो तो मुस्कुराहटें जो तुम अपनों के लिये चेहरे पर लाते हैं उनके पीछे की उदासियों को भापना रो दोगे | ये इश्क है भई कोई मज़ाक नही है हर शर्म हर लाज है बन्धन हर समझ से परे भोला भाला पगला सा प्रेम जो तड़पता है एक दूसरे को पाने के लिये |
तुम कहते हो पश्चताओगे हाँ पश्चता लेंगो मगर तुम तो ऐसा मत करो की तुम्हे पश्चताना पड़े जब जब हमें टुकड़ों में बँटता देखो तो कोसो खुद को | मदद नही चाहिये तुम से बस इतमा करम करो के हमें अलग सा ना समझो प्रेम को प्रेम से देखो उसे गुनाह ना बनाओ | तुमने भी तो किसी से किया होगा कभी | मत बनाओ पाप का भागीदार खुद को इस मुश्किल दौर में मुँह फेर कर हमसे | मोहब्बत को समझो इतनी बुरी नही है |
.
धीरज झा...
धीरज झा
.
तुम इस तरह देखते हो हमारे प्रेम को जैसे ये दुनिया का सबसे बड़ा गुनाह हो | तुम मुँह फेर लेते हो देख कर जैसे हम एक मुजरिम हैं | क्या तुमने कभी किसी से प़मोहब्बत नही की क्या तुम्हे अहसास नही इसके दर्द का की कितना तकलीफ देता है किसी का किसी से जुदा हो जाना | तुम अगर सोचते हो की ये गुनाह है तो कभी वो खत पढ़ो हमारे जो हमवे एक दूसरे को रातों में जग कर दिन में दिन की रौशनी से छुप कर लिखे हैं पर उसे जब पढ़ना तो चादर ओढ़ लेना क्योंकी ठन्ड लगेगी क्योंकी उस खत पर बारिश हुई है उसका हर लफ्ज़ भीगा है आँसुओं से हवा के साथ मिल कर आस पास में एक ठन्डक सी भर देंगे ये शब्द पढ़ना उसे ग़ौर से देखना कितनी तड़प है देखना कैसे हर लफ्ज़ रो रहा है जुदाई के डर से काँपता हुआ | अगर दिल होगा तो शर्त लगा लो फटने लगेगा उन खतों को पढ़ कर | यकीन तब भी ना आये तो कभी चुपके से रातों को देखना हमें कैसे अकेले सिरहानों को हमसाया बना कर लेटे होते हैं कैसे मुँह छुपा कर उन में रो रहे होते हैं | यकीन तब भी ना हो तो मुस्कुराहटें जो तुम अपनों के लिये चेहरे पर लाते हैं उनके पीछे की उदासियों को भापना रो दोगे | ये इश्क है भई कोई मज़ाक नही है हर शर्म हर लाज है बन्धन हर समझ से परे भोला भाला पगला सा प्रेम जो तड़पता है एक दूसरे को पाने के लिये |
तुम कहते हो पश्चताओगे हाँ पश्चता लेंगो मगर तुम तो ऐसा मत करो की तुम्हे पश्चताना पड़े जब जब हमें टुकड़ों में बँटता देखो तो कोसो खुद को | मदद नही चाहिये तुम से बस इतमा करम करो के हमें अलग सा ना समझो प्रेम को प्रेम से देखो उसे गुनाह ना बनाओ | तुमने भी तो किसी से किया होगा कभी | मत बनाओ पाप का भागीदार खुद को इस मुश्किल दौर में मुँह फेर कर हमसे | मोहब्बत को समझो इतनी बुरी नही है |
.
धीरज झा...
धीरज झा
COMMENTS