सपने तो होते ही हैं टूटने के लिये लेकिन सपनों के इतने इतने एक दम इतने करीब जा कर उन्हे एक दम से हज़ारों अनगिनत छोटे छोटे टुकड़ों में बिखरते ...
सपने तो होते ही हैं टूटने के लिये लेकिन सपनों के इतने इतने एक दम इतने करीब जा कर उन्हे एक दम से हज़ारों अनगिनत छोटे छोटे टुकड़ों में बिखरते देखना बहुत दुखता है | मानिये रेत का महल किसी बच्चे ने बनाया हो और बस वो पूरा होने वाला हो की तभी समन्दर की लहर उस महल को रेत के जर्रों में बदल दे जो मुट्ठी में समेटे भी ना जायें | ऐसे ही कुछ बिखरे सपने और उन सपनों के जर्रों को समेटते हुये बिखरे हुये हम | पर पैदाईशी ढीठ जो हैं फिर से देखेंगे फिर से संजोयेंगे सारे सपने | मगर फिलहाल तो दर्द का बढ़ना उदासियों का क्षणिक रंग चढ़ना लाज़मी है....
.
धीरज झा...
धीरज झा
.
धीरज झा...
धीरज झा
COMMENTS