रेगिस्तान में बादलों के इंतज़ार सा है तुम्हारा इंतज़ार करना | सूख चुकी आँखें , रो रो कर बहा चुकी सारी नमी अब जिन्हे तुम्हारे आने पर फिर से न...
रेगिस्तान में बादलों के इंतज़ार सा है तुम्हारा इंतज़ार करना | सूख चुकी आँखें , रो रो कर बहा चुकी सारी नमी अब जिन्हे तुम्हारे आने पर फिर से नमी मिलेगी इसी उम्मीद में रस्ते पर टिकी हैं | तड़प ऐसी के जैसे मर रहा हो कई दिनों से तपती रेत पर नंगे पाँव चलता मुसाफिर बिन पानी के | पर यकीन कौन करे और क्यों करे , किसी को फर्क ही क्यों पड़े | मुझे कब पड़ा था तुम्हे कब पड़ा था जब देखा था किसी दूसरे को किसी तीसरे के लिये तड़प तड़प कर दम तोड़ते मगर हम तो रोये थे चाहे कुछ ना कर पाये पर दुआ की थी पर मुझे कौन समझे | कौन मेरे प्यासे अहसासों को दो हूँद पानी पिलाये | नियती ता लिखा है तुम्हारे लिये मेरा तड़पना और उसी लिखे को पूरा कर रहे हैं | सब के लिये एक दिन होता है मेरो लिये तुम्हारे बिना एक एक पल मायने रखता है कैसे उन हर पलों में तड़प कर तुम्हे याद किया कैसे दुआ की के किसी तरह तुम लौट आओ | मैं मोहब्बत के उस दौर से गुज़र रहा हूँ जहाँ मेरे लिये ये साँसों से ज़रूरी और दूसरों के लिये बेवजह का पागलपन है | मोहब्बत को तो सुनना ही अच्छा लगता है सभी को इसे समझने की ज़हमत कौन उठाये | तड़प का सबसे बड़ा उदाहरण है मेरा इस तरह से बेपरवाह हो कर तुम्हारे लिये लिखना | सब इसे चाहे बेफज़ूल के लफ्ज़ समझें पर तुम समझना इन शब्दों के बीच से छाँक रहा मेरा वो अथाह दर्द...
ग़ौर से देखना बाकी सब चाहे हँसे ही क्यों ना :'(
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धीरज झा...
धीरज झा
ग़ौर से देखना बाकी सब चाहे हँसे ही क्यों ना :'(
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धीरज झा...
धीरज झा
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