अर्थ का अनर्थ.... . समझें इसे , नही समझेंगे को बात मुज़फ्फरपुर से बेलसंड हो जायेगी | फिर मुझे दोषी ठहराईयेगा.... . २०१० का साल था मैं गाँव ...
अर्थ का अनर्थ....
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समझें इसे , नही समझेंगे को बात मुज़फ्फरपुर से बेलसंड हो जायेगी | फिर मुझे दोषी ठहराईयेगा....
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२०१० का साल था मैं गाँव गया था दुर्गा पूजा में | इस बार दुर्गापूजा बड़े ज़ोर शोर पर था गाँव में कारण ये था की गाँव में पहली बार मनाया जा रहा था | पहले पड़ोस के गाँव में मनाते थे पर बादविवाद के चलते गाँव वालों ने फैसला किया की अब से अपने ही गाँव में दुर्गापूजा मनायेंगे | चाचा कमेटी के खजानची थे तो थोड़ा उत्साह इस लिये भी ज़्यादा था | पंडितों की टोली बुलाई गई | पूरे गाँव में बीस बीस कदम छोड़ कर ही लाऊडस्पीकर लगाये गये | मने बुझिये पूरा गाँव भक्तिमय हो गया था | स्पीकरों की कान फाड़ू आवाज़ भी उत्साह के तले दब कर कम और मधुर लगने लगी थी |
कलश यात्रा के बाद दुर्गा पाठ की अनुषिठान शुरू हुआ | सब बहुत अच्छा चल रहा था | गाँव मेंं ब्राहम्ण , राजपूत , दुसाद और नुनिया ये चार जातियाँ ज़्यादा हैं बाकी कुछ एक इक्का दुक्का दूसरी जातियाँ हैं | सच कहूँ तो शिक्षा का स्तर नीचा ही है गाँव में लोग ज़्यादा पढ़े लिखे नही | निम्न जातियों में तो और भी नही |
दुर्गापूजा के दो तीन दिन तो बड़े शान्तिपूर्ण तरीके से बीते | स्पीकरों में लगातार ये पाठ सुनने को मिल रहा था |
ॐ सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके
शरण्ये त्रयम्बके गौरी नारायणी नमोस्तुते....
अब बारी थी बवाल होने की क्योंकी गाँव का कोई भी सम्मिलित यज्ञ हो और बवाल ना हो तो शायद देवता प्रसन्न नही होते और बवाल का जड़ बना यही मंत्र | दो दिन आराम से सुनने के बाद तीसरे दिन किसी परमज्ञानी ने दुसाद टोला में जा कर कह दिये " रे तोहरा सब के माईक में गरियाया जा रहा है आ तू सब चुप बईठा है | "
सामने से सवाल हुआ भला हमें कौन गरिया रहा है हमने तो नही सुना |
तब पर अगला बोला ध्यान से सुनो न पंडी जी कह रहा है " सरबा दुसाद के " |
मंत्र को तेजी में पढ़ते.हुये पंडी जी का उच्चारण थोड़ा गड़बड़ा गया और बात वही हो गयी नुक्ता के हेर फेर से खुदा जुदा हो जाता है | वो अपनी तरफ सर्वार्थसाधिके पढ़ रहे थे पर लग रहा था जैसे कह रहे हों सरवा दुसाध के |
अब तो बवाल मच गया , पूरा दुसाध टोला उपट गया पंडाल में | दर के सभी अध्यक्षों को बुलाया गया | बात सामने पटकी गई की हम चंदा भी दें और गारी भी सुनें ये कहाँ का न्याय है |
सबने पूछा भई आप लोग गाँव का हिस्सा हैं आपका इतना बड़ा समूह है आपको माईक में गारी भला कौन और क्यों देगा | तब सब की ऊँगलियाँ पड़ी जी पर घूम गईं | बताया गया के ये हमें सरवा दुसाध के कह रहे हैं लगातार | इतना सुनना था की पूरे पंडाल में हँसी के पटाखे फूटने लगे |
उन्हे प्यार से बैठा कर समझाया गया की भई ये मंत्र है जिसमें पंडि जी कह रहे हैं सर्वार्थसाधिके वो थोड़ा तेज बोल रहे हैं इस लिये ऐसा सुनाई दे रहा है आप सब को | तब जा कर सबको समझ आया की भई ये तो मंत्र है | फिर पंडि जी को भी समझाया गया की वो ज़रा ध्यान से पढ़ें |
बात यहाँ समझ की आ जाती है | उन सब का पक्ष पूरने वाले कुछ बड़ी जाति के भी लोग थे और ये सुनाया भी उन्हे किसी बड़के ने ही था | बहरहाल ये वाक्य आज भी गाँव की चौपाल पर हँसी का कारण बन जाता है | जिनको गलतफहमी हुई वो खुद हँसते हैं |
मेरा ये लिखने का मतलब बस इतना था की सारी बात समझ पर आ कर टिक जाती है की आप बात को किस हद तक और कितना समझे बिना समझे अगर विरोध करेंगे तो बवाल निश्चित है |
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धीरज झा...
धीरज झा
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समझें इसे , नही समझेंगे को बात मुज़फ्फरपुर से बेलसंड हो जायेगी | फिर मुझे दोषी ठहराईयेगा....
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२०१० का साल था मैं गाँव गया था दुर्गा पूजा में | इस बार दुर्गापूजा बड़े ज़ोर शोर पर था गाँव में कारण ये था की गाँव में पहली बार मनाया जा रहा था | पहले पड़ोस के गाँव में मनाते थे पर बादविवाद के चलते गाँव वालों ने फैसला किया की अब से अपने ही गाँव में दुर्गापूजा मनायेंगे | चाचा कमेटी के खजानची थे तो थोड़ा उत्साह इस लिये भी ज़्यादा था | पंडितों की टोली बुलाई गई | पूरे गाँव में बीस बीस कदम छोड़ कर ही लाऊडस्पीकर लगाये गये | मने बुझिये पूरा गाँव भक्तिमय हो गया था | स्पीकरों की कान फाड़ू आवाज़ भी उत्साह के तले दब कर कम और मधुर लगने लगी थी |
कलश यात्रा के बाद दुर्गा पाठ की अनुषिठान शुरू हुआ | सब बहुत अच्छा चल रहा था | गाँव मेंं ब्राहम्ण , राजपूत , दुसाद और नुनिया ये चार जातियाँ ज़्यादा हैं बाकी कुछ एक इक्का दुक्का दूसरी जातियाँ हैं | सच कहूँ तो शिक्षा का स्तर नीचा ही है गाँव में लोग ज़्यादा पढ़े लिखे नही | निम्न जातियों में तो और भी नही |
दुर्गापूजा के दो तीन दिन तो बड़े शान्तिपूर्ण तरीके से बीते | स्पीकरों में लगातार ये पाठ सुनने को मिल रहा था |
ॐ सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके
शरण्ये त्रयम्बके गौरी नारायणी नमोस्तुते....
अब बारी थी बवाल होने की क्योंकी गाँव का कोई भी सम्मिलित यज्ञ हो और बवाल ना हो तो शायद देवता प्रसन्न नही होते और बवाल का जड़ बना यही मंत्र | दो दिन आराम से सुनने के बाद तीसरे दिन किसी परमज्ञानी ने दुसाद टोला में जा कर कह दिये " रे तोहरा सब के माईक में गरियाया जा रहा है आ तू सब चुप बईठा है | "
सामने से सवाल हुआ भला हमें कौन गरिया रहा है हमने तो नही सुना |
तब पर अगला बोला ध्यान से सुनो न पंडी जी कह रहा है " सरबा दुसाद के " |
मंत्र को तेजी में पढ़ते.हुये पंडी जी का उच्चारण थोड़ा गड़बड़ा गया और बात वही हो गयी नुक्ता के हेर फेर से खुदा जुदा हो जाता है | वो अपनी तरफ सर्वार्थसाधिके पढ़ रहे थे पर लग रहा था जैसे कह रहे हों सरवा दुसाध के |
अब तो बवाल मच गया , पूरा दुसाध टोला उपट गया पंडाल में | दर के सभी अध्यक्षों को बुलाया गया | बात सामने पटकी गई की हम चंदा भी दें और गारी भी सुनें ये कहाँ का न्याय है |
सबने पूछा भई आप लोग गाँव का हिस्सा हैं आपका इतना बड़ा समूह है आपको माईक में गारी भला कौन और क्यों देगा | तब सब की ऊँगलियाँ पड़ी जी पर घूम गईं | बताया गया के ये हमें सरवा दुसाध के कह रहे हैं लगातार | इतना सुनना था की पूरे पंडाल में हँसी के पटाखे फूटने लगे |
उन्हे प्यार से बैठा कर समझाया गया की भई ये मंत्र है जिसमें पंडि जी कह रहे हैं सर्वार्थसाधिके वो थोड़ा तेज बोल रहे हैं इस लिये ऐसा सुनाई दे रहा है आप सब को | तब जा कर सबको समझ आया की भई ये तो मंत्र है | फिर पंडि जी को भी समझाया गया की वो ज़रा ध्यान से पढ़ें |
बात यहाँ समझ की आ जाती है | उन सब का पक्ष पूरने वाले कुछ बड़ी जाति के भी लोग थे और ये सुनाया भी उन्हे किसी बड़के ने ही था | बहरहाल ये वाक्य आज भी गाँव की चौपाल पर हँसी का कारण बन जाता है | जिनको गलतफहमी हुई वो खुद हँसते हैं |
मेरा ये लिखने का मतलब बस इतना था की सारी बात समझ पर आ कर टिक जाती है की आप बात को किस हद तक और कितना समझे बिना समझे अगर विरोध करेंगे तो बवाल निश्चित है |
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धीरज झा...
धीरज झा
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