ज़िंदगी चौराहे पर खड़ी है... . चौराहे पे ज़िंदगी खड़ी... दिल की हड़बड़ी बढ़ी... क्या करॉ किधर जायें... किसको परेशानियों की तरफ से आये सारे ख...
ज़िंदगी चौराहे पर खड़ी है...
.
चौराहे पे ज़िंदगी खड़ी...
दिल की हड़बड़ी बढ़ी...
क्या करॉ किधर जायें...
किसको परेशानियों की तरफ
से आये सारे खत पढ़ाऐं...
जिंदगी चौराहे पर खड़ी...
एक रास्ता घर की तरफ है...
एक रास्ता उसके शहर को...
एक रास्ता कल की दिशा में...
एक रास्ता ठहराव का...
किसको चुन लें...
किसकी सुन लें...
किस तरफ बढ़ाऐं कदम...
हाय रे दुविधा बड़ी...
ज़िंदगी चौराहे पर खड़ी...
घर की तरफ जो रास्ता है...
मुसीबतों का वहाँ जमावड़ा है...
उसके शहर जो रास्ता है...
बंदिशों की कंटीली तारों
से वो घिरा हुआ है...
कल की तरफ जो रास्ता है...
अन्धेरा वहाँ बेहद घना है...
ठहराव का जो रास्ता है...
वो मन को रास आता कहाँ है...
अब वक्त खत्म है सोचने का...
ये फैसला लेनो की घड़ी है...
ज़िंदगी चौराहे पर खड़ी है...
उसके शहर के रास्ते पर
वो खड़ी है बाट जोहे...
कह रही हर खत मे मुझको
ले चलो तुम साथ मोहे...
सोचता हूँ जोखिम उठा लूँ...
उसके शहर की ओर
कदम अपने बढ़ा लूँ...
जो मिली तो साथ में
हर राह को आसान
बनाऐंगे हम...
ना मिली तो ज़िंदगी को
अलविदा कह जायेंगे हम...
हाँ मगर अलविदा कहने से पहले...
घर के रास्ते पर बढ़ेंगे...
मुसीबतों के जमावड़े
से लड़ेंगे...
घर को जगमगा कर फिर
खुद को दूर रोतीली जगह पर
खुद को ज़र्रा ज़र्रा खत्म करेंगे...
अब ना पीछे हटना है हमको
सर पर जो आ पड़ी है...
चुन ही लेंगे राह अपनी...
क्या हुआ जो ज़िंदगी
चौराहे पर खड़ी है...
.
धीरज झा...
धीरज झा
.
चौराहे पे ज़िंदगी खड़ी...
दिल की हड़बड़ी बढ़ी...
क्या करॉ किधर जायें...
किसको परेशानियों की तरफ
से आये सारे खत पढ़ाऐं...
जिंदगी चौराहे पर खड़ी...
एक रास्ता घर की तरफ है...
एक रास्ता उसके शहर को...
एक रास्ता कल की दिशा में...
एक रास्ता ठहराव का...
किसको चुन लें...
किसकी सुन लें...
किस तरफ बढ़ाऐं कदम...
हाय रे दुविधा बड़ी...
ज़िंदगी चौराहे पर खड़ी...
घर की तरफ जो रास्ता है...
मुसीबतों का वहाँ जमावड़ा है...
उसके शहर जो रास्ता है...
बंदिशों की कंटीली तारों
से वो घिरा हुआ है...
कल की तरफ जो रास्ता है...
अन्धेरा वहाँ बेहद घना है...
ठहराव का जो रास्ता है...
वो मन को रास आता कहाँ है...
अब वक्त खत्म है सोचने का...
ये फैसला लेनो की घड़ी है...
ज़िंदगी चौराहे पर खड़ी है...
उसके शहर के रास्ते पर
वो खड़ी है बाट जोहे...
कह रही हर खत मे मुझको
ले चलो तुम साथ मोहे...
सोचता हूँ जोखिम उठा लूँ...
उसके शहर की ओर
कदम अपने बढ़ा लूँ...
जो मिली तो साथ में
हर राह को आसान
बनाऐंगे हम...
ना मिली तो ज़िंदगी को
अलविदा कह जायेंगे हम...
हाँ मगर अलविदा कहने से पहले...
घर के रास्ते पर बढ़ेंगे...
मुसीबतों के जमावड़े
से लड़ेंगे...
घर को जगमगा कर फिर
खुद को दूर रोतीली जगह पर
खुद को ज़र्रा ज़र्रा खत्म करेंगे...
अब ना पीछे हटना है हमको
सर पर जो आ पड़ी है...
चुन ही लेंगे राह अपनी...
क्या हुआ जो ज़िंदगी
चौराहे पर खड़ी है...
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धीरज झा...
धीरज झा
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