सुनो तुम... . कभी जागना आधा पहर बिता चुकी रात को नींद की गोद से , उस सन्नाटे में कुछ देर नींदों को आराम देना और बेचैन होकर पूछना रात के अंधे...
सुनो तुम...
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कभी जागना आधा पहर बिता चुकी रात को नींद की गोद से , उस सन्नाटे में कुछ देर नींदों को आराम देना और बेचैन होकर पूछना रात के अंधेरे से की बताओ कितना मुश्किल है तुम से लिपट कर दिन की पहली किरण तक किसी का इंतज़ार करना | रातें अगर फिर भी ख़ामोश रहें तो लेना मेरा नाम और पूछना उन से मेरी तड़प की दास्ताँ , मैं शर्त लगा सकता हूँ रातें चीख उठेंगी मेरा नाम सुन कर | और सुनों ख़याल रहे इस बात का की उन रातों को ये मालूम ना पड़े की मैं तड़पता तुम्हारे लिये हूँ क्योंकी ये सुन कर ही वो तुम्हे कोसेंगी तुम्हे भला बुरा सब कहेंगी | चीख उठेंगी और यकीन मानों उनकी चीखें तुम्हारे कान के पर्दों से गुज़र कर तुम्हारी रूह तक में सुराख कर देंगी | वो बतायेंगी की मैं उन से भी ज़्यादा तनहा रहता हूँ दर्द से से ज़्जादा तड़प है मुझमें वो तुम्हे यो भी बतायोंगी की आँखें बन्द कर लेना ही मौत नही खुली और जागी आँखों में भी मौत होती है हर पल तड़प तड़प कर कराहती हुई | पुकारती हुई किसी को | ये सब दिन के उजाले मॉ भी होता है पर दिन मशरूफ रहता है अपने शोर के साथ पर रातें सुनती हैं मेरी खामोशी को ग़ौर से क्योंकी वो भी तनहा हैं मेरी तरह | तुम ये ज़रूर करना |
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धीरज झा...
धीरज झा
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कभी जागना आधा पहर बिता चुकी रात को नींद की गोद से , उस सन्नाटे में कुछ देर नींदों को आराम देना और बेचैन होकर पूछना रात के अंधेरे से की बताओ कितना मुश्किल है तुम से लिपट कर दिन की पहली किरण तक किसी का इंतज़ार करना | रातें अगर फिर भी ख़ामोश रहें तो लेना मेरा नाम और पूछना उन से मेरी तड़प की दास्ताँ , मैं शर्त लगा सकता हूँ रातें चीख उठेंगी मेरा नाम सुन कर | और सुनों ख़याल रहे इस बात का की उन रातों को ये मालूम ना पड़े की मैं तड़पता तुम्हारे लिये हूँ क्योंकी ये सुन कर ही वो तुम्हे कोसेंगी तुम्हे भला बुरा सब कहेंगी | चीख उठेंगी और यकीन मानों उनकी चीखें तुम्हारे कान के पर्दों से गुज़र कर तुम्हारी रूह तक में सुराख कर देंगी | वो बतायेंगी की मैं उन से भी ज़्यादा तनहा रहता हूँ दर्द से से ज़्जादा तड़प है मुझमें वो तुम्हे यो भी बतायोंगी की आँखें बन्द कर लेना ही मौत नही खुली और जागी आँखों में भी मौत होती है हर पल तड़प तड़प कर कराहती हुई | पुकारती हुई किसी को | ये सब दिन के उजाले मॉ भी होता है पर दिन मशरूफ रहता है अपने शोर के साथ पर रातें सुनती हैं मेरी खामोशी को ग़ौर से क्योंकी वो भी तनहा हैं मेरी तरह | तुम ये ज़रूर करना |
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धीरज झा...
धीरज झा
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