मैं अपनी औकात की लकीर लाँघ कर तुम्हे चाह बैठा तो तुमने भी अपनी हैसीयत भुला कर मुझे गले से लगा लिया | तुमने मुझे मेरे नसीब से बढ़ कर प्यार दु...
मैं अपनी औकात की लकीर लाँघ कर तुम्हे चाह बैठा तो तुमने भी अपनी हैसीयत भुला कर मुझे गले से लगा लिया | तुमने मुझे मेरे नसीब से बढ़ कर प्यार दुलार और इज़्जत दी तो मैने अपनी तमाम ज़िंदगी का हर लम्हा अपना दिन अपनी रातें तुम्हे दे दीं | तुम ने मेरी मजबूरियों को कभी कमज़ोरी नही समझा समझा तो बस वक्त का खेल समझा | हमेशा ये कह कर चुप कराया की तुम में वो बात है जो सब में नही होती तुम्हे नही पता पर मैं जानती हूँ तुम भोर के पहले पहर के सूरज हो जो अभी थोड़े अन्धेरे में हो पर ज्यों ज्यों पहर बीतेगा तुम्हारा चमकना लाज़मी है | मैने कभी तुम्हारी बातों को सच नही माना ये भी नही जानता की मैं आगे कुछ ऐसा करूँगा या नही पर तुम्हारी बातें हर बार एक नया जोश ज़रूर भर देती हैं | मुझे मेरी माँ के बाद अगर किसी ने अच्छे से समझा तो वो तुम हो सच में तुम से बेहतर कोई नही समझ सकता मुझे | ज़िंदगी जितना उलझती है तुम उतनी ही शिद्दत सो मुझे सुलझाने में लगी रहती हो | तुम्हारे पास वक्त नही होता बिल्कुल भी नही पर मेरे लिये तुम वक्त निकालती हो मेरे गुस्साने के बाद भी शान्त रहती हो तुम जानती हो मुझ से तुम्हारी दूरी नही सही जाती इसीलिये गुस्साता हूँ | तुम जानती हो वो गुस्सा नही तड़प होती है | तुम मुझे हर उस मोड़ पर रोशनी से भरा लालटेन लिये मिली जहाँ परेशानियों के अंधेरे ने मुझे घेर लिया | मैं नही जानता किस्मत ने हमारे लियो क्या सोचा है पर मैं ये जानता हूँ हम एक दूसरे के लियो ही बने हैं | हमारा मेल किस्मत ने पहले सो तय किया था और हम मिले , दिल मिले , रूह मिल गई अब जिस्म मिलने बाकी हैं वो भी मिल ही जायेंगे यहाँ ना सही तो गंगा में इस मिट्टी में आज नही तो कल हवा में उड़ते हुये तुम मेरे शहर या मैं तुम्हारे शहर पहुंच ही जाऊँगा | शुक्रिया मुझे मौका देने को लिये की मैं तुम पर अपना सारा प्यार बरसा सकूँ | ये अलग है बहुत अलग एक दूसरे को हर हाल में समझना ही हमें सब से अलग बमाता है | शुक्रिया तुम्हारा दिल से मुझे और हमारे प्रेम को अलग सा बनाने के लिये |
.
धीरज झा...
धीरज झा
.
धीरज झा...
धीरज झा
COMMENTS