लोशें... . गली सड़कों महल्लों में देखी हैं लाशें बिखरी हुई मैंने... वो लाशें सबको नही दिखतीं... वो लाशें न दफन होती हैं ना हैं जलतीं... वो स...
लोशें...
.
गली सड़कों महल्लों में
देखी हैं लाशें बिखरी हुई मैंने...
वो लाशें सबको नही दिखतीं...
वो लाशें न दफन होती हैं
ना हैं जलतीं...
वो सड़ कर खाक होती हैं
मगर किसी को बदबू नही आती...
उन्हें कन्धे नही उठाते...
उन पर लोग आँसू नही बहाते...
वो लाशें जानते हैं
भला किसकी होती हैं... ?
वो लाशें हैं आदमी
के ज़मीर कीं...
इंसान की इंसानियत की...
ये नंगी आँखों से नही दिखतीं...
इनसे खून नही रिसता...
उनकी चिखों नही सुनाई देतीं...
उन पर लोग नही
इक्का दुक्का ज़िंदा बची
इंसानियत रोती है...
इन लाशों के ढेर पर
बैठ कर दो.आँसू ही बहा लो...
दो दुख के गीत ही गालो...
और तो कुछ हो नही सकता...
.
धीरज झा...
धीरज झा
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गली सड़कों महल्लों में
देखी हैं लाशें बिखरी हुई मैंने...
वो लाशें सबको नही दिखतीं...
वो लाशें न दफन होती हैं
ना हैं जलतीं...
वो सड़ कर खाक होती हैं
मगर किसी को बदबू नही आती...
उन्हें कन्धे नही उठाते...
उन पर लोग आँसू नही बहाते...
वो लाशें जानते हैं
भला किसकी होती हैं... ?
वो लाशें हैं आदमी
के ज़मीर कीं...
इंसान की इंसानियत की...
ये नंगी आँखों से नही दिखतीं...
इनसे खून नही रिसता...
उनकी चिखों नही सुनाई देतीं...
उन पर लोग नही
इक्का दुक्का ज़िंदा बची
इंसानियत रोती है...
इन लाशों के ढेर पर
बैठ कर दो.आँसू ही बहा लो...
दो दुख के गीत ही गालो...
और तो कुछ हो नही सकता...
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धीरज झा...
धीरज झा
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