गाँव , चुनाव और भोंटर... . पिछले कई दिनों से गाँव मे हूँ | मुखिअई , सरपंच , जिला परिषद , वार्ड सदस्य आदि का नोमिनेश्न भरा जा रहा है | प्रचार...
गाँव , चुनाव और भोंटर...
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पिछले कई दिनों से गाँव मे हूँ | मुखिअई , सरपंच , जिला परिषद , वार्ड सदस्य आदि का नोमिनेश्न भरा जा रहा है | प्रचार भी जोरों पर है | थारी के भंटा टाईप भोटरों की तो बहार है | भोरे भोरे चनन टीका कर के पैदल ही ब्लॉक का रूख कर लेते हैं और सारा दिन फलाना जी की जय ढिमकाना जी की जय कह कह के सेवई बुनिया मार रहे हैं और रात में देसी ब्रांड का देसी भिसकी भी मार रहे हैं मने दसों ऊगलियाँ घी में और सर कढ़ाही में | जो उम्मीदवार मिल जाये उसे आस्वस्त करा देना है की भईया हम का हमार पूरा टोला पूरी जाती आपहीं को भोट देगी बस तनी खर्चा बर्चा करिये |
गाँ का हर चौराहा हर दूरा संसद बना हुआ है मानिये सारे राजनीति विशेषज्ञ इसी गाँव में आगये हों | पूरे दावे से कह दोते हैं फलाना ही जीतेगा देख लेना बेचारे मरलका बाबू तक को दाँव पर लगा देंगे ई कह कर की फलनवा नही जीता तो हम अपना बाप के बेटा नही | बताओ घँईचट अब तुम्हारा डी एन ए उमीदवार के जीतने पर तय होगा |
अब बात उम्मीदवारों की कर भी कर लें | यहाँ तो आपको कदम भी बड़ी.सावधानी से डरना पड़ेगा इस डर से की कहीं आपका पैर उम्मीदवार पर ही ना पड़ जाये | मने इतने उम्मीदवार हैं की कहीं भोटर से ज़्यादा इनकी संख्या ना हो जाये | बहुसंख्य जात की पामौजी की जा रही है | इन दिनों जात पात एक दम खत्म है बड़की जात के उम्मीदवार दलित यहाँ जाते हैं तो भाई भाई का नारा लगा कर उसी के बर्तन में चाय सुरूक रहे हैं | छोटी जाती का उम्मीदवार बड़ी जाती के यहाँ जा रहा है तो उसकी आओ भगत में बड़की लोग अपने घर के कप में ही चाय पिला रहे हैं | मनें बुझिये की शाँति की अम्मा सज रही हैं क्योंकी अभी परचार में शाँति की अम्मा ही दरूपिवों के बिच ठुमके लगायेगी |
अब कल ही पास के गाँव में एक सज्जन जो जाती से डोम हैं ने नोमिनेशन भरा तो उनके नोमिनेश्न भरने जाने का स्टाईल ही जुदा था जनाब ने आरकेस्ट्रा बुलाया था और " रात में खेले कऊना खेल भोरबा में महके कड़ुआ तेल " जैसे गानों की तर्ज पर भावी मुखिया होने का सपना साकार करने को आगे बढ़ रहे थे | साथ में गाँव के लुहेड़ा सब फुल टाऊट हो कर नागिन के साथ अजगर डाँस की भी माँ बहन कर रहे थे |
पर एक बात सपष्ट है बिहार के तरक्की ना कर पाने का मुख्य कारण यही है | यहाँ इलेक्श्न महज़ पैसे और बाहुबल का खेल बन कर रह गया है | और जनता दो चार हज़ार रूपये और बोतल दारू मे ही अपने आने वाले पाँच साल का विकास बेच दे रही है | आधे से ज़्यादा उम्मीदवार इसलिये नोमिनेश्न भर रहे हैं की आखिर मे बड़े उम्मीदवार से कुछ माया ऐंठ कर नाम वापिस ले लें | व्यापार बन गया है इस से व्यापारी के इलावा और किसी को कोई फायदा नही होगा |
काश के सरकार विद्वता के हिसाब से उम्मीदवारी रखती तो शायद ऐसा हाल नही होता | बाकी नौटंकी तो ज़ोर पर है , विकास हो ना हो टाईम पास अच्चा हो रहा है...
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धीरज झा...
धीरज झा
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पिछले कई दिनों से गाँव मे हूँ | मुखिअई , सरपंच , जिला परिषद , वार्ड सदस्य आदि का नोमिनेश्न भरा जा रहा है | प्रचार भी जोरों पर है | थारी के भंटा टाईप भोटरों की तो बहार है | भोरे भोरे चनन टीका कर के पैदल ही ब्लॉक का रूख कर लेते हैं और सारा दिन फलाना जी की जय ढिमकाना जी की जय कह कह के सेवई बुनिया मार रहे हैं और रात में देसी ब्रांड का देसी भिसकी भी मार रहे हैं मने दसों ऊगलियाँ घी में और सर कढ़ाही में | जो उम्मीदवार मिल जाये उसे आस्वस्त करा देना है की भईया हम का हमार पूरा टोला पूरी जाती आपहीं को भोट देगी बस तनी खर्चा बर्चा करिये |
गाँ का हर चौराहा हर दूरा संसद बना हुआ है मानिये सारे राजनीति विशेषज्ञ इसी गाँव में आगये हों | पूरे दावे से कह दोते हैं फलाना ही जीतेगा देख लेना बेचारे मरलका बाबू तक को दाँव पर लगा देंगे ई कह कर की फलनवा नही जीता तो हम अपना बाप के बेटा नही | बताओ घँईचट अब तुम्हारा डी एन ए उमीदवार के जीतने पर तय होगा |
अब बात उम्मीदवारों की कर भी कर लें | यहाँ तो आपको कदम भी बड़ी.सावधानी से डरना पड़ेगा इस डर से की कहीं आपका पैर उम्मीदवार पर ही ना पड़ जाये | मने इतने उम्मीदवार हैं की कहीं भोटर से ज़्यादा इनकी संख्या ना हो जाये | बहुसंख्य जात की पामौजी की जा रही है | इन दिनों जात पात एक दम खत्म है बड़की जात के उम्मीदवार दलित यहाँ जाते हैं तो भाई भाई का नारा लगा कर उसी के बर्तन में चाय सुरूक रहे हैं | छोटी जाती का उम्मीदवार बड़ी जाती के यहाँ जा रहा है तो उसकी आओ भगत में बड़की लोग अपने घर के कप में ही चाय पिला रहे हैं | मनें बुझिये की शाँति की अम्मा सज रही हैं क्योंकी अभी परचार में शाँति की अम्मा ही दरूपिवों के बिच ठुमके लगायेगी |
अब कल ही पास के गाँव में एक सज्जन जो जाती से डोम हैं ने नोमिनेशन भरा तो उनके नोमिनेश्न भरने जाने का स्टाईल ही जुदा था जनाब ने आरकेस्ट्रा बुलाया था और " रात में खेले कऊना खेल भोरबा में महके कड़ुआ तेल " जैसे गानों की तर्ज पर भावी मुखिया होने का सपना साकार करने को आगे बढ़ रहे थे | साथ में गाँव के लुहेड़ा सब फुल टाऊट हो कर नागिन के साथ अजगर डाँस की भी माँ बहन कर रहे थे |
पर एक बात सपष्ट है बिहार के तरक्की ना कर पाने का मुख्य कारण यही है | यहाँ इलेक्श्न महज़ पैसे और बाहुबल का खेल बन कर रह गया है | और जनता दो चार हज़ार रूपये और बोतल दारू मे ही अपने आने वाले पाँच साल का विकास बेच दे रही है | आधे से ज़्यादा उम्मीदवार इसलिये नोमिनेश्न भर रहे हैं की आखिर मे बड़े उम्मीदवार से कुछ माया ऐंठ कर नाम वापिस ले लें | व्यापार बन गया है इस से व्यापारी के इलावा और किसी को कोई फायदा नही होगा |
काश के सरकार विद्वता के हिसाब से उम्मीदवारी रखती तो शायद ऐसा हाल नही होता | बाकी नौटंकी तो ज़ोर पर है , विकास हो ना हो टाईम पास अच्चा हो रहा है...
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धीरज झा...
धीरज झा
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