तड़पना लाज़मी है... . जब समंदर को भी पानी की प्यास हो... जब ज़िंदगी को सिर्फ मौत से आस हो... जब धूप भी रौशनी को तरसे... जब बादल चाहे की कोई ...
तड़पना लाज़मी है...
.
जब समंदर को भी पानी की प्यास हो...
जब ज़िंदगी को सिर्फ मौत से आस हो...
जब धूप भी रौशनी को तरसे...
जब बादल चाहे की कोई मुझ पर भी बरसे...
जब बहारों को भी अपना श्रॄगार बेकार लगे...
मन में पत्तझड़ का बेसब्री से इंतज़ार लगे...
जब आँखों के आँसू निकलने से मना कर दें...
जब इंद्रधनुष खुद में सिर्फ कालिक का रंग भर दे...
जब खामोशियों को चिल्लाने की बेचैनी होने लगे...
जब आपकी नींदें भी सोने को रोने लगें...
जब खुद की रूह तक आपको समझने को तैयार ना हो...
जब आपका खुद पर को अख्तियार ना हो...
जब हँसते होंठों के बीच रेंगती मायूसी की नमी है...
तब तड़पना तो लाज़मी है...
.
धीरज झा...
धीरज झा
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जब समंदर को भी पानी की प्यास हो...
जब ज़िंदगी को सिर्फ मौत से आस हो...
जब धूप भी रौशनी को तरसे...
जब बादल चाहे की कोई मुझ पर भी बरसे...
जब बहारों को भी अपना श्रॄगार बेकार लगे...
मन में पत्तझड़ का बेसब्री से इंतज़ार लगे...
जब आँखों के आँसू निकलने से मना कर दें...
जब इंद्रधनुष खुद में सिर्फ कालिक का रंग भर दे...
जब खामोशियों को चिल्लाने की बेचैनी होने लगे...
जब आपकी नींदें भी सोने को रोने लगें...
जब खुद की रूह तक आपको समझने को तैयार ना हो...
जब आपका खुद पर को अख्तियार ना हो...
जब हँसते होंठों के बीच रेंगती मायूसी की नमी है...
तब तड़पना तो लाज़मी है...
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धीरज झा...
धीरज झा
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