खामोशियों की चीख को कैद करना उतना ही दर्दनाक है जितना अपने किसी अंग को खुद से ही काटते हुए मुँह पर हाथ रख कर चीख को दबाना । मगर ऐसा करना पड़त...
खामोशियों की चीख को कैद करना उतना ही दर्दनाक है जितना अपने किसी अंग को खुद से ही काटते हुए मुँह पर हाथ रख कर चीख को दबाना । मगर ऐसा करना पड़ता है जब कभी आपकी चीखों से आपके अपने ही परेशान हो जाऐं । प्रेम की बेल कोई वन फूल नही जो खुद से फल फूल जाए । इसे फलने फूलने के लिये आपके निस्वार्थ बलिदान की खाद चाहिए होती है । ऐसा कर पाना बेहद मुश्किल है वो भी तब जब इसकी भनक भी उसे ना लगे जिसके लिए आप ये सब कर रहे हैं । काई लगी दीवार पर चढ़ने जैसा है ये प्रेम और ये खामोशियों की चीखों को दबा मानों उस काई वाली दिवार पर चढ़ते वक्त बारिश का बरस जाना ।
धीरज झा
धीरज झा
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