टूटे हुए लोग अक्सर मुस्कुराते बहुत हैं छिपाने के लिए दर्द अपना ये बातें बनाते बहुत हैं । कहीं तन्हाई ले ना ले जान इनकी बस इसी खातिर महफिलें ...
टूटे हुए लोग अक्सर मुस्कुराते बहुत हैं
छिपाने के लिए दर्द अपना ये बातें बनाते बहुत हैं ।
कहीं तन्हाई ले ना ले जान इनकी
बस इसी खातिर महफिलें सजाते बहुत हैं ।
हकीकत से है इन्होंने बहुत ज़ख्म पाए
इसीलिए ये मनगढंत कहानियाँ सुनाते बहुत हैं ।
जब से बड़े प्यार से किसी ने उतारा है खंजर जिगर मे
तब से मोहब्बत नाम से ये घबराते बहुत हैं ।
ज़िंदगी कहाँ अब प्यारी रही इन्हे बाद किसी अपने के चले जाने के ।
बस इसी वास्ते ये मौत को पल पल आज़माते बहुत हैं ।
धीरज झा
छिपाने के लिए दर्द अपना ये बातें बनाते बहुत हैं ।
कहीं तन्हाई ले ना ले जान इनकी
बस इसी खातिर महफिलें सजाते बहुत हैं ।
हकीकत से है इन्होंने बहुत ज़ख्म पाए
इसीलिए ये मनगढंत कहानियाँ सुनाते बहुत हैं ।
जब से बड़े प्यार से किसी ने उतारा है खंजर जिगर मे
तब से मोहब्बत नाम से ये घबराते बहुत हैं ।
ज़िंदगी कहाँ अब प्यारी रही इन्हे बाद किसी अपने के चले जाने के ।
बस इसी वास्ते ये मौत को पल पल आज़माते बहुत हैं ।
धीरज झा
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