एक पुरानी रचना पर नज़र पड़ी तो सोचा आपकी नज़र भी कर दूँ । शायद कोई मुझ जैसा गलती करने से पहले संभल जाए । ज़िंदगी की एक कभी ना भुलाई जा सकने ...
एक पुरानी रचना पर नज़र पड़ी तो सोचा आपकी नज़र भी कर दूँ । शायद कोई मुझ जैसा गलती करने से पहले संभल जाए ।
ज़िंदगी की एक कभी ना भुलाई जा सकने वाली छोटी मगर मायनों मे बड़ी सी घटना...ज़रा गौर करें और जहां कुछ मिले सीख लें...
बस स्टॉप पर गुस्से से भरा मुंह ले कर खड़ा था कॉलेज के लिये बस लेनी थी | दो बसें गुज़र गईं मगर मैने दोनो की तरफ ध्यान ही ना दिया | मन मे तो गुस्सा था बहुत सारा| शरीर जल रहा था गुस्से से पापा से बहस हुई थी किसी बात पर | उन्होने डांट दिया | पर ऐसे कैसे डांट दिया | मै अब छोटा तो नही रहा ना | इसी बात पर खाने से भरी थाली फेंक दी | और उठ कर चल दिया | मेरे और पापा के बीच पिसती मां आवाज़ मारती रह गई | दौड़ कर गली तक आयीं " बेटा ऐसे नही करते खा ले ना थोड़ा सा 6 बज जायेंगे कॉलेज से वापिस आते | तबियत खराब हो जायेगी" | पर यहां परवाह किसको थी | मैं तो अब बड़ा हो गया था क्यों समझूं मां की तड़प उसका प्यार |
गुस्से मे ना जाने क्या क्या सोचे जा रहा था | के इतने मे देखा एक औरत पास पड़े कूड़े के ढेर मे से कुछ कुछ तलाश रही है | छी कुड़ा कैसे कर लेते हैं ये लोग ऐसा मै सोच ही रहा था के देखा उसने एक सेब निकाला जो शायद आधा सड़ा था और पास खड़े अपने तकरीबन 5 6 साल के बच्चे को दे दिया खाने को | और खुद के लिये दुसरा ढूढने लगी | मगर हाय री किस्मत ! उसे वो सड़ा सेब या और कुछ नसीब ना हुआ | मगर फिर जो उसने किया वो एक मां ही कर सकती है वो बैठ गई आराम से बिना इसका मलाल किये के उसे खाने को नही मिला और देखने लगी अपने बच्चे को खाते हुये | मुस्कुराती हुई मुख पर अथाह संतोष | बेटे ने भी अपने मे से बचा हुआ मां को दिया |
मझे इस वक्त तीन बातें याद आईं वो थीं... अपने बेबस पिता जो अपनी औलाद को बड़ा होते महसुस कर रहे थे क्यों की बेटा जवाब देता है गुस्सा करता है | वो खाना जिसे मैने फैंक दिया था ये सोचे बिना के कुछ लोग ऐसे भी हैं जिनका इसके बिना ये हाल है के कुड़ा खाने पर मजबूर हैं | और सबसे ज़्यादा वो मां जिसकी आज बेटे को खाता देख सुकुन पाने की खुशी छिनी जो आज तब तक ना खायेगी जब तक मै घर ना जाऊंगा |
मैने तभी मन बदला | बस का किराया और जेब खर्च मे बचे पैसों को मिला कर कुल 118 रूपये थे | मैने सारे उस बच्चे को उसकी मां के सामने दे दिये | वो मुझे ऐसे देख रही थी जैसे मै अलग दुनिया का हूं और कोई अनोखा काम कर दिया हो | मगर मैने तो इतनी बड़ी सीख के बदले चंद रूपये दिये थे | और घर लौट गया जाते पापा के पैर दबाते हुये माफी मांग ली और पल भर में मांफ कर भी दिया उन्होने | मां के साथ खाना खाया | और इस दिन के लिये भगवान का शुक्रिया किया...
धीरज झा
ज़िंदगी की एक कभी ना भुलाई जा सकने वाली छोटी मगर मायनों मे बड़ी सी घटना...ज़रा गौर करें और जहां कुछ मिले सीख लें...
बस स्टॉप पर गुस्से से भरा मुंह ले कर खड़ा था कॉलेज के लिये बस लेनी थी | दो बसें गुज़र गईं मगर मैने दोनो की तरफ ध्यान ही ना दिया | मन मे तो गुस्सा था बहुत सारा| शरीर जल रहा था गुस्से से पापा से बहस हुई थी किसी बात पर | उन्होने डांट दिया | पर ऐसे कैसे डांट दिया | मै अब छोटा तो नही रहा ना | इसी बात पर खाने से भरी थाली फेंक दी | और उठ कर चल दिया | मेरे और पापा के बीच पिसती मां आवाज़ मारती रह गई | दौड़ कर गली तक आयीं " बेटा ऐसे नही करते खा ले ना थोड़ा सा 6 बज जायेंगे कॉलेज से वापिस आते | तबियत खराब हो जायेगी" | पर यहां परवाह किसको थी | मैं तो अब बड़ा हो गया था क्यों समझूं मां की तड़प उसका प्यार |
गुस्से मे ना जाने क्या क्या सोचे जा रहा था | के इतने मे देखा एक औरत पास पड़े कूड़े के ढेर मे से कुछ कुछ तलाश रही है | छी कुड़ा कैसे कर लेते हैं ये लोग ऐसा मै सोच ही रहा था के देखा उसने एक सेब निकाला जो शायद आधा सड़ा था और पास खड़े अपने तकरीबन 5 6 साल के बच्चे को दे दिया खाने को | और खुद के लिये दुसरा ढूढने लगी | मगर हाय री किस्मत ! उसे वो सड़ा सेब या और कुछ नसीब ना हुआ | मगर फिर जो उसने किया वो एक मां ही कर सकती है वो बैठ गई आराम से बिना इसका मलाल किये के उसे खाने को नही मिला और देखने लगी अपने बच्चे को खाते हुये | मुस्कुराती हुई मुख पर अथाह संतोष | बेटे ने भी अपने मे से बचा हुआ मां को दिया |
मझे इस वक्त तीन बातें याद आईं वो थीं... अपने बेबस पिता जो अपनी औलाद को बड़ा होते महसुस कर रहे थे क्यों की बेटा जवाब देता है गुस्सा करता है | वो खाना जिसे मैने फैंक दिया था ये सोचे बिना के कुछ लोग ऐसे भी हैं जिनका इसके बिना ये हाल है के कुड़ा खाने पर मजबूर हैं | और सबसे ज़्यादा वो मां जिसकी आज बेटे को खाता देख सुकुन पाने की खुशी छिनी जो आज तब तक ना खायेगी जब तक मै घर ना जाऊंगा |
मैने तभी मन बदला | बस का किराया और जेब खर्च मे बचे पैसों को मिला कर कुल 118 रूपये थे | मैने सारे उस बच्चे को उसकी मां के सामने दे दिये | वो मुझे ऐसे देख रही थी जैसे मै अलग दुनिया का हूं और कोई अनोखा काम कर दिया हो | मगर मैने तो इतनी बड़ी सीख के बदले चंद रूपये दिये थे | और घर लौट गया जाते पापा के पैर दबाते हुये माफी मांग ली और पल भर में मांफ कर भी दिया उन्होने | मां के साथ खाना खाया | और इस दिन के लिये भगवान का शुक्रिया किया...
धीरज झा
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