सोचा था... . मैने देखा था एक सपना... कभी अपनी नन्ही आँखों से... सोचा था जाऊँगा उस नीले गगन के पार... पता करूँगा की आखिर ये खत्म होता कहाँ है...
सोचा था...
.
मैने देखा था एक सपना...
कभी अपनी नन्ही आँखों से...
सोचा था जाऊँगा उस नीले गगन के पार...
पता करूँगा की आखिर ये खत्म होता कहाँ है...
सोचा था कद बढ़ेगा तो
छू लूँगा चाँद को एक दिन...
देखूँगा चाँद गर्म है या ठन्डा...
सोचा था तारों की टिमटिमाहट को
बन्द कर लूँगा मैं एक डिबिया में...
फिर कहानियों की परियों
को पाने के बारे में भी सोचा था...
उस खूबसूरत लोक में जाने के
बारे में भी सोचा था...
मगर सारी सोच बेकार गई...
मुझ में समझदारी आ गई...
मैं अब सोचता हूँ...
दो पैसे कमाऊँ कहाँ से...
गुम हो चुके चैन
को ढूँढ कर लाऊँ कहाँ से...
सोचता हूँ अब इन परेशानियों से
लड़ा जाये कैसे...
आसमाँ , चाँद , तारों और परियों
को एक तरफ रख कर सोचता हूँ
खुद का पेट भरा जाये कैसे...
.
धीरज झा...
.
मैने देखा था एक सपना...
कभी अपनी नन्ही आँखों से...
सोचा था जाऊँगा उस नीले गगन के पार...
पता करूँगा की आखिर ये खत्म होता कहाँ है...
सोचा था कद बढ़ेगा तो
छू लूँगा चाँद को एक दिन...
देखूँगा चाँद गर्म है या ठन्डा...
सोचा था तारों की टिमटिमाहट को
बन्द कर लूँगा मैं एक डिबिया में...
फिर कहानियों की परियों
को पाने के बारे में भी सोचा था...
उस खूबसूरत लोक में जाने के
बारे में भी सोचा था...
मगर सारी सोच बेकार गई...
मुझ में समझदारी आ गई...
मैं अब सोचता हूँ...
दो पैसे कमाऊँ कहाँ से...
गुम हो चुके चैन
को ढूँढ कर लाऊँ कहाँ से...
सोचता हूँ अब इन परेशानियों से
लड़ा जाये कैसे...
आसमाँ , चाँद , तारों और परियों
को एक तरफ रख कर सोचता हूँ
खुद का पेट भरा जाये कैसे...
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धीरज झा...
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