मज़दूर कौन नही ( मज़दूर दिवस ) भई मज़दूर कौन नही यहाँ । बस फर्क है तो मज़दूरी के स्तर का । जो जितने बड़े स्तर पर मज़दूरी कर रहा है उसे उस हिस...
मज़दूर कौन नही ( मज़दूर दिवस )
भई मज़दूर कौन नही यहाँ । बस फर्क है तो मज़दूरी के स्तर का । जो जितने बड़े स्तर पर मज़दूरी कर रहा है उसे उस हिसाब की मज़दूरी मिल रही है । कोई पसीना बहा कर मज़दूरी में लगा है कोई खून बहा कर । पति ऑफिस में मज़दूर है तो बीवी घर में । अब पति को हर महीने गाँधी बाबा की कृपा से हरियाली मिल जाती है इसलिए रौब ज़्यादा है । पर सब जगह नही।कहीं कहीं तो पति बेचारा डबल शिफ्ट कर रहा है । पर मर्द का दर्द कौन समझे । यहाँ कौन सा पुरूष मोर्चा है बेचारे पतियों के लिए । खैर ये तो लगा ही रहता है । एक मजदूर हैं बेचारे नए नए आशकि की फेर में पड़े लौंडे । ज़िंदगी के कई एक साल हाथ का साथ निभाने के बाद अब जा कर कहीं कमल खिला और आए अच्छे दिन ।मगर अच्छे दिनों के बदले मज़दूरी बढ़ गई । जानू को काॅलेज छोड़ना है जानू को घुमाना है जानू ने खाना खाया के नही ये तीनो टाॅईम पूछना है । इधर जानू फोन छुपाने की छुप कर बतियाने की मेक्अप पोतने की मज़दूरी कर रही है ।
एक मज़दूर हैं ये नेता लोग खून चूसने की मज़दूरी में लीन हैं । झूठ पर सच का पानी चढ़ाने की मज़दूरी में पसीना बहा रहे हैं । अरे भई लेश लूटना और जनता को फुद्दू बनाना साला कौन सा आसान काम है ।जनता भी चालाक हो गई है पहले देसी में मान जाती थी अब अंग्रेजी से कम में मानती नही ।
बच्चे किताबें ढोने की मज़दूरी कर रहे । शिक्षकों की मज़दूरी का भी बड़ा महत्व है । टाँग पसार कर सोना भी आसान काम नही ।
हर कोई चाहे डाॅक्टर , इंजीनियर , कलक्टर , मैनेजर हर कोई मज़दूर है । सबसे बड़े मज़दूर तो माल्या साहब निकले ना जाने किन जतनों से इतना कर्ज़ा उठा कर दूर देश ले गए होंगे । एक मज़दूर हम जैसे भी हैं जो फोकट में फेसबुक पर बक्चोदी पेलने की निशुल्क मज़दूरी कर रहे हैं । और इस पर भी बड़े मज़दूर जो हमारे ज्ञान पर भी भारी ज्ञान पेल जाते हैं खड़े खड़े ।
पर इन सब के बीच एक वो मज़दूर है जिसने मज़दूरी को जन्म दिया । हमारे लिए छत बनाई पर खुद तारों की छाँव में रात काटी । महँगे कपड़े हमने पहने पर उसे बुनते हुए गैलन के गैलन पसीना बहाया । सफर हमारा आसान हुआ बोझ उसने ढोया । एक बार मार्केट निकल गए तो पाँच सौ हज़ार यूँ ही उड़ा।दिए पर रिक्शे वाले से पाँच रुपए छुड़ाना ना भूले । गर्मी में बह रहा पसीना भी नज़र न आया ।
ये मज़दूरी है जो शाम को आएगी तब चुल्हा जलेगा । न आई तो ठन ठन गोपाल ।मुन्ने को परियों की कहानी से पेट भरना पड़ेगा । इस स्तर की मज़दूरी बड़ी।कष्टदायक है साहब ।
कोई मज़दूर अगर सौ पचास ज़्यादा ले कर लूट रहा है तो लुट जाओ एक आध बार । आपका कुछ नही जाएगा उसे खुशी मिल जाएगी ।
तो तमाम बड़े मज़दूरों को मज़दूर दिवस की शुभकामनाऐं और एक निवेदन के छोटे मज़दूरों का भी ख़्याल रखें ।
बाकी उन मज़दूरों को ज़्यादा शुभकामना जिन्हे शायद पता भी न हो की आज उनका दिन है ।
गलती सही माफ़
धीरज झा
भई मज़दूर कौन नही यहाँ । बस फर्क है तो मज़दूरी के स्तर का । जो जितने बड़े स्तर पर मज़दूरी कर रहा है उसे उस हिसाब की मज़दूरी मिल रही है । कोई पसीना बहा कर मज़दूरी में लगा है कोई खून बहा कर । पति ऑफिस में मज़दूर है तो बीवी घर में । अब पति को हर महीने गाँधी बाबा की कृपा से हरियाली मिल जाती है इसलिए रौब ज़्यादा है । पर सब जगह नही।कहीं कहीं तो पति बेचारा डबल शिफ्ट कर रहा है । पर मर्द का दर्द कौन समझे । यहाँ कौन सा पुरूष मोर्चा है बेचारे पतियों के लिए । खैर ये तो लगा ही रहता है । एक मजदूर हैं बेचारे नए नए आशकि की फेर में पड़े लौंडे । ज़िंदगी के कई एक साल हाथ का साथ निभाने के बाद अब जा कर कहीं कमल खिला और आए अच्छे दिन ।मगर अच्छे दिनों के बदले मज़दूरी बढ़ गई । जानू को काॅलेज छोड़ना है जानू को घुमाना है जानू ने खाना खाया के नही ये तीनो टाॅईम पूछना है । इधर जानू फोन छुपाने की छुप कर बतियाने की मेक्अप पोतने की मज़दूरी कर रही है ।
एक मज़दूर हैं ये नेता लोग खून चूसने की मज़दूरी में लीन हैं । झूठ पर सच का पानी चढ़ाने की मज़दूरी में पसीना बहा रहे हैं । अरे भई लेश लूटना और जनता को फुद्दू बनाना साला कौन सा आसान काम है ।जनता भी चालाक हो गई है पहले देसी में मान जाती थी अब अंग्रेजी से कम में मानती नही ।
बच्चे किताबें ढोने की मज़दूरी कर रहे । शिक्षकों की मज़दूरी का भी बड़ा महत्व है । टाँग पसार कर सोना भी आसान काम नही ।
हर कोई चाहे डाॅक्टर , इंजीनियर , कलक्टर , मैनेजर हर कोई मज़दूर है । सबसे बड़े मज़दूर तो माल्या साहब निकले ना जाने किन जतनों से इतना कर्ज़ा उठा कर दूर देश ले गए होंगे । एक मज़दूर हम जैसे भी हैं जो फोकट में फेसबुक पर बक्चोदी पेलने की निशुल्क मज़दूरी कर रहे हैं । और इस पर भी बड़े मज़दूर जो हमारे ज्ञान पर भी भारी ज्ञान पेल जाते हैं खड़े खड़े ।
पर इन सब के बीच एक वो मज़दूर है जिसने मज़दूरी को जन्म दिया । हमारे लिए छत बनाई पर खुद तारों की छाँव में रात काटी । महँगे कपड़े हमने पहने पर उसे बुनते हुए गैलन के गैलन पसीना बहाया । सफर हमारा आसान हुआ बोझ उसने ढोया । एक बार मार्केट निकल गए तो पाँच सौ हज़ार यूँ ही उड़ा।दिए पर रिक्शे वाले से पाँच रुपए छुड़ाना ना भूले । गर्मी में बह रहा पसीना भी नज़र न आया ।
ये मज़दूरी है जो शाम को आएगी तब चुल्हा जलेगा । न आई तो ठन ठन गोपाल ।मुन्ने को परियों की कहानी से पेट भरना पड़ेगा । इस स्तर की मज़दूरी बड़ी।कष्टदायक है साहब ।
कोई मज़दूर अगर सौ पचास ज़्यादा ले कर लूट रहा है तो लुट जाओ एक आध बार । आपका कुछ नही जाएगा उसे खुशी मिल जाएगी ।
तो तमाम बड़े मज़दूरों को मज़दूर दिवस की शुभकामनाऐं और एक निवेदन के छोटे मज़दूरों का भी ख़्याल रखें ।
बाकी उन मज़दूरों को ज़्यादा शुभकामना जिन्हे शायद पता भी न हो की आज उनका दिन है ।
गलती सही माफ़
धीरज झा
COMMENTS