बहुत करीब से और बहुत ग़ौर से देखा है मौत को ज़िंदगी से ज़्यादा किमती हो जाते । रोज़ ज़िंदगी को दुत्तकार के मौत को थोड़ा थोड़ा अपने करीब करते ।...
बहुत करीब से और बहुत ग़ौर से देखा है मौत को ज़िंदगी से ज़्यादा किमती हो जाते । रोज़ ज़िंदगी को दुत्तकार के मौत को थोड़ा थोड़ा अपने करीब करते ।
पंजाब का पानी एक वक्त था जब बहुत साफ हुआ करता था इतना साफ की मुस्कुराते पंजाब की परछाईं साफ साफ दिखती थी । फिर धीरे धीरे उस साफ पानी में मिलने लगा सफेद ज़हर । वो ज़हर धीरे धीरे फैलने लगा अभी तक फैल रहा है न जाने कब तक फैले । और जितना फैलता है उतनी कम होती जा रही है पंजाब की मुस्कुराहट । कुछ पल का छलावा और पूरी ज़िंदगी बर्बाद । सुकून ढूँढते ढूँढते कब खुद को बर्बादी के मुहाने पर ला खड़ा करते हैं इन्हे खुद नही पता चलता ।
कहानी किसी नशेड़ी दोस्त के कहने पर एक बार इस सफेदी का स्वाद चखने से शुरू होती है और फिर शौख से आदत और आदत से मौत तक आ कर खत्म हो जाती है । पाकिस्तान से आया ये ज़हर किस रास्ते से पंजाब की नसों में घुसता जा रहा है ये जानते हुए भी न जाने क्यों इन रास्तों पर दीवार नही खड़ी की जा रही ।
उन माँओं की चीखें तक कोई सुन नही पा रहा जो हर रोज़ अपना बच्चा इस ज़हर से मरता देखती हैं ।
जिस तरह से ये ज़हर फैल रहा है डर लगता है की न जाने कब हमारे पंजाब की धरती इस ज़हर से पड़पती लाशों के नीचे दब जाए ।
धीरज झा
पंजाब का पानी एक वक्त था जब बहुत साफ हुआ करता था इतना साफ की मुस्कुराते पंजाब की परछाईं साफ साफ दिखती थी । फिर धीरे धीरे उस साफ पानी में मिलने लगा सफेद ज़हर । वो ज़हर धीरे धीरे फैलने लगा अभी तक फैल रहा है न जाने कब तक फैले । और जितना फैलता है उतनी कम होती जा रही है पंजाब की मुस्कुराहट । कुछ पल का छलावा और पूरी ज़िंदगी बर्बाद । सुकून ढूँढते ढूँढते कब खुद को बर्बादी के मुहाने पर ला खड़ा करते हैं इन्हे खुद नही पता चलता ।
कहानी किसी नशेड़ी दोस्त के कहने पर एक बार इस सफेदी का स्वाद चखने से शुरू होती है और फिर शौख से आदत और आदत से मौत तक आ कर खत्म हो जाती है । पाकिस्तान से आया ये ज़हर किस रास्ते से पंजाब की नसों में घुसता जा रहा है ये जानते हुए भी न जाने क्यों इन रास्तों पर दीवार नही खड़ी की जा रही ।
उन माँओं की चीखें तक कोई सुन नही पा रहा जो हर रोज़ अपना बच्चा इस ज़हर से मरता देखती हैं ।
जिस तरह से ये ज़हर फैल रहा है डर लगता है की न जाने कब हमारे पंजाब की धरती इस ज़हर से पड़पती लाशों के नीचे दब जाए ।
धीरज झा
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