सुनो तुम प्रेम बहुत सी परिक्षाऐं लेता है और सबसे बुरी बात ये है की प्रेम में जो जितना होशियार है उसके पास होने के चाँस उतने ही कम हैं । मेरा...
सुनो तुम
प्रेम बहुत सी परिक्षाऐं लेता है और सबसे बुरी बात ये है की प्रेम में जो जितना होशियार है उसके पास होने के चाँस उतने ही कम हैं । मेरा प्रेम पागलपन वाला है जो कुछ भी करने के लिए हमेशा तैयार है और तुम्हारा समझदारी वाला जो कुछ भी करने से पहले सौ बार सोचता है । और इस फर्क का ज़िम्मेदार भी समाज ही है । जानती हो कैसे ? मैं बताता हूँ । ये समाज कितना भी आगे हो जाए पर लड़के लड़की के बीच के फर्क को कभी कम नही करेगा । हमारे सौ दाग उतने नही झलकते जितना तुम्हारे ऊपर पड़ी।एक छींट पर हो हल्ला हो जाता है । हमारी हर बात रो कर हँस कर गुस्से से जैसे हो पर मान ली जाती है पर तुम्हे ये अधिकार नही है । क्यों की तुम्हारे साथ जोड़ दिया गया है घर , समाज की इज्ज़त को पिता के सम्मान को , भाई की राखी माँ की तबियत और बहनों के भविष्य को । और ये ऐसे ही जुड़ा रहेगा हमेशा । चाहे तुम्हे सारी उम्र रोना ही पड़े । तुम न चाहते हुए भी दो कश्तियों में सवार होती हो । घर छोड़ोगी मेरे लिए तो नाते टूटेंगे , मुझे छोड़ा तो मैं टूट जाऊँगा । पर आखिर में तुम मुझे ही छोड़ना जानती हो क्यों ? क्योंकी हमे ही ढोना है इन खोखली रिवायतों को अपने घर माँ बाप के लिए ।
मेरा क्या है मैं प्रेम में जिया प्रेम में ही ज़िम्मेदारियाँ पूरी करते मर जाऊँगा । मुझ एक के लिए इतनों की कुर्बानी जायज़ नही । तुम्हारा सबको छोड़ मेरे पास आना फिर किसी अजनमी मासूम को कोख में मार देगा ये सोच कर की बेटियाँ इज्ज़त गँवाती हैं ।
बहुत दर्द होता है ऐसा लिखने और कहने में की मुझे छोड़ देना पर साथ रह कर इन ढकोसलेबाजों का दिल नही दुखा सकते क्योंकी ये अपने हैं । तुम्हे खुद के लिए किसी के सामने कोसा जाए ये मंज़ूर नही मुझे । मैं हमारी खुशी के लिए किसी बाप का झुका सर नही देख सकता । प्रेम हारता नही हाँ वक्त ज़रूर लेता है जीतने में । हम भी जीतेंगे इस जहाँ ना सही तो उस जहाँ पर जीतेंगे । पर अभी तुम्हे ढोना होगा इन ढकोसलों को । मेरी कुर्बानी देनी होगी इस समाज के लिए । मन छोटा मत करना जानता हूँ बहुत चाहती हो मुझे । चाहतें कभी।तो मुक्कमल होंगी । चढ़ जाओ सूली अपनों के नाम और मैं तुम्हे देख देख रोज़ रोज़ थोड़ा थोड़ा खुद को खत्म करूँ । प्रेम की परिक्षाओं में कभी नकल का सहारा नही ले सकते । वो न समझें तो ना सही हम तो समझे खुद को मार कर ही सही । ख़्याल रखना ।
धीरज झा
प्रेम बहुत सी परिक्षाऐं लेता है और सबसे बुरी बात ये है की प्रेम में जो जितना होशियार है उसके पास होने के चाँस उतने ही कम हैं । मेरा प्रेम पागलपन वाला है जो कुछ भी करने के लिए हमेशा तैयार है और तुम्हारा समझदारी वाला जो कुछ भी करने से पहले सौ बार सोचता है । और इस फर्क का ज़िम्मेदार भी समाज ही है । जानती हो कैसे ? मैं बताता हूँ । ये समाज कितना भी आगे हो जाए पर लड़के लड़की के बीच के फर्क को कभी कम नही करेगा । हमारे सौ दाग उतने नही झलकते जितना तुम्हारे ऊपर पड़ी।एक छींट पर हो हल्ला हो जाता है । हमारी हर बात रो कर हँस कर गुस्से से जैसे हो पर मान ली जाती है पर तुम्हे ये अधिकार नही है । क्यों की तुम्हारे साथ जोड़ दिया गया है घर , समाज की इज्ज़त को पिता के सम्मान को , भाई की राखी माँ की तबियत और बहनों के भविष्य को । और ये ऐसे ही जुड़ा रहेगा हमेशा । चाहे तुम्हे सारी उम्र रोना ही पड़े । तुम न चाहते हुए भी दो कश्तियों में सवार होती हो । घर छोड़ोगी मेरे लिए तो नाते टूटेंगे , मुझे छोड़ा तो मैं टूट जाऊँगा । पर आखिर में तुम मुझे ही छोड़ना जानती हो क्यों ? क्योंकी हमे ही ढोना है इन खोखली रिवायतों को अपने घर माँ बाप के लिए ।
मेरा क्या है मैं प्रेम में जिया प्रेम में ही ज़िम्मेदारियाँ पूरी करते मर जाऊँगा । मुझ एक के लिए इतनों की कुर्बानी जायज़ नही । तुम्हारा सबको छोड़ मेरे पास आना फिर किसी अजनमी मासूम को कोख में मार देगा ये सोच कर की बेटियाँ इज्ज़त गँवाती हैं ।
बहुत दर्द होता है ऐसा लिखने और कहने में की मुझे छोड़ देना पर साथ रह कर इन ढकोसलेबाजों का दिल नही दुखा सकते क्योंकी ये अपने हैं । तुम्हे खुद के लिए किसी के सामने कोसा जाए ये मंज़ूर नही मुझे । मैं हमारी खुशी के लिए किसी बाप का झुका सर नही देख सकता । प्रेम हारता नही हाँ वक्त ज़रूर लेता है जीतने में । हम भी जीतेंगे इस जहाँ ना सही तो उस जहाँ पर जीतेंगे । पर अभी तुम्हे ढोना होगा इन ढकोसलों को । मेरी कुर्बानी देनी होगी इस समाज के लिए । मन छोटा मत करना जानता हूँ बहुत चाहती हो मुझे । चाहतें कभी।तो मुक्कमल होंगी । चढ़ जाओ सूली अपनों के नाम और मैं तुम्हे देख देख रोज़ रोज़ थोड़ा थोड़ा खुद को खत्म करूँ । प्रेम की परिक्षाओं में कभी नकल का सहारा नही ले सकते । वो न समझें तो ना सही हम तो समझे खुद को मार कर ही सही । ख़्याल रखना ।
धीरज झा
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