मैं सपनों को पालता हूँ ऐसे जैसे ग़रीब पालता है बेटी अपनी । मेरी किस्मत सपनों को लूट लेती है ऐसे जैसे कोई दरिंदा गरीब की बेटी की आबरू लूट लेत...
मैं सपनों को पालता हूँ ऐसे जैसे ग़रीब पालता है बेटी अपनी । मेरी किस्मत सपनों को लूट लेती है ऐसे जैसे कोई दरिंदा गरीब की बेटी की आबरू लूट लेता है । फिर न कोई केस है न सुनवाई और सज़ा तो बहुत दूर की बात है ।
धीरज झा
धीरज झा
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