आँखों के सपने कितने बेबाक से होते हैं सपने आँखों के दिखाते हैं वही जो मन इनका करता है डरते ही नही इस बात से की टूट जाऐंगे बढ़ते हैं ये सोचे ...
आँखों के सपने
कितने बेबाक से होते हैं
सपने आँखों के
दिखाते हैं वही
जो मन इनका करता है
डरते ही नही इस बात से
की टूट जाऐंगे
बढ़ते हैं ये सोचे बिना
की हकीकत से पीछे छूट जाऐंगे
बस्ती के बच्चों की तरह
ढीठ और साहसी से
किसी भी पेंड़ की
फुनगी तक चढ़ जाऐंगे
रह कर झोंपड़े में
ले लेते हैं महलों का मज़ा
सो कर ज़मीन पर
लेते हैं मखमली सेज सजा
कितना समझाओ पर
मानते कहाँ हैं ये
हकीकती हालात को
कहाँ पहचानते हैं ये
बड़े चालाक से होते
हैं आँखों के सपने
बड़े बेबाक से होते हैं
आँखों के सपने
धीरज झा
कितने बेबाक से होते हैं
सपने आँखों के
दिखाते हैं वही
जो मन इनका करता है
डरते ही नही इस बात से
की टूट जाऐंगे
बढ़ते हैं ये सोचे बिना
की हकीकत से पीछे छूट जाऐंगे
बस्ती के बच्चों की तरह
ढीठ और साहसी से
किसी भी पेंड़ की
फुनगी तक चढ़ जाऐंगे
रह कर झोंपड़े में
ले लेते हैं महलों का मज़ा
सो कर ज़मीन पर
लेते हैं मखमली सेज सजा
कितना समझाओ पर
मानते कहाँ हैं ये
हकीकती हालात को
कहाँ पहचानते हैं ये
बड़े चालाक से होते
हैं आँखों के सपने
बड़े बेबाक से होते हैं
आँखों के सपने
धीरज झा
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