हर एक की उतनी ही साँसें हर एक का वही जिस्म हर एक की वही आँखें । एक सी ही ज़िंदगी देखी सबने । फिर भी आपको कोई कुछ न कुछ सिखा रहा है । इसका मत...
हर एक की उतनी ही साँसें हर एक का वही जिस्म हर एक की वही आँखें । एक सी ही ज़िंदगी देखी सबने । फिर भी आपको कोई कुछ न कुछ सिखा रहा है । इसका मतलब सफर आगे बढ़ाते हुए नज़रें खुली न रखीं आपने । जिसने रखीं वो आपको तरीके सिखा रहा है जीने के । ज़िंदगी भले ही किसी और की हो मगर उसे महसूस कर के अनुभव तो लिया ही जा सकता है के आखिर वो जी किस हाल में रहा है । हर इंसान अगर एक दूसरे के हाल को थोड़ा महसूस करना सीख जाए तो आधे फसाद खत्म हो जाऐंगे । एक रिक्शे वाला पसीना निचोड़ती चिलचिलाती धूप में कैसे आपका भार खींच रहा होता है अगर आप ये महसूस कर लें तो दस पाँच ( जो आप यूँ ही उड़ा देते हैं ) के लिए कभी मोल भाव न करें । महसूस करने पर आपको उस भूखे बच्चे को बीस रूपए देना मुश्किल न लगेगा जो रोटी की आस में आपके पीछे पीछे भागा आ रहा है ।
ये मजदूर टाईप लोग लीचड़ होते हैं पर ये लीचड़ लालची क्यों होते हैं पता है आपको ? क्योंकी ये भी दाल रोटी से थोड़ा ऊपर का अपने बच्चों को खिलाना चाहते हैं । ये लालची होते हैं क्योंकी इनकी लालच से शाम को घर लौटने पर इनके बच्चे खुश होते हैं । खुद तो ये इतने कंजूस हैं की एक शर्ट पैंट को तब तक घिसते हैं जब तक पैंट कमीज़ का कपड़ा दम न तोड़ दे । इन्हे महसूस करिएगा कभी तब इनकी बीस तीस की लालच बुरी नही लगेगी आपको ।
जाने अंजाने कैसे भी किसी को खुशी देना अपने आप में सुकून है ।
धीरज झा
ये मजदूर टाईप लोग लीचड़ होते हैं पर ये लीचड़ लालची क्यों होते हैं पता है आपको ? क्योंकी ये भी दाल रोटी से थोड़ा ऊपर का अपने बच्चों को खिलाना चाहते हैं । ये लालची होते हैं क्योंकी इनकी लालच से शाम को घर लौटने पर इनके बच्चे खुश होते हैं । खुद तो ये इतने कंजूस हैं की एक शर्ट पैंट को तब तक घिसते हैं जब तक पैंट कमीज़ का कपड़ा दम न तोड़ दे । इन्हे महसूस करिएगा कभी तब इनकी बीस तीस की लालच बुरी नही लगेगी आपको ।
जाने अंजाने कैसे भी किसी को खुशी देना अपने आप में सुकून है ।
धीरज झा
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