कहानी का अंश जान तो धीरे धीरे चली गई अब तो ढाँचा ही बचा है उम्मीद विरह की आग इसे भी जल्दी ही जला दे । फिर राख बचेगी मेरी , सपनों की , यादों ...
कहानी का अंश
जान तो धीरे धीरे चली गई अब तो ढाँचा ही बचा है उम्मीद विरह की आग इसे भी जल्दी ही जला दे । फिर राख बचेगी मेरी , सपनों की , यादों की , वादों की । रोज़ माँग सजाना इस राख से । शायद इसी बहाने यादों में ज़िंदा रह सकूँ ।
धीरज झा
जान तो धीरे धीरे चली गई अब तो ढाँचा ही बचा है उम्मीद विरह की आग इसे भी जल्दी ही जला दे । फिर राख बचेगी मेरी , सपनों की , यादों की , वादों की । रोज़ माँग सजाना इस राख से । शायद इसी बहाने यादों में ज़िंदा रह सकूँ ।
धीरज झा
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