ज़रा संभल कर ज़रा समझ कर समाज दोगली मानसिक्ता की बिमारी से इस तरह ग्रसित हो चुका है की अब चाह कर भी इसका इलाज नही कर सकता । इस रोग से मुक्त ...
ज़रा संभल कर ज़रा समझ कर
समाज दोगली मानसिक्ता की बिमारी से इस तरह ग्रसित हो चुका है की अब चाह कर भी इसका इलाज नही कर सकता । इस रोग से मुक्त हो ही नही सकता । यहाँ जो नंगा है वो कपड़े पहनने वालों से कई गुना अच्छा है कम से कम वो कपड़ों की आड़ में अपनी कमज़ोरी तो नही छुपाता । वो खुल कर कहता है मैं बुरा हूँ मुझ में कमियाँ हैं दूर रहो मुझ से , मुझे अपने घर मत आने दो मेरी भूखी नज़रें तुम्हारी बहन बेटियों को भी नही छोड़ेंगी । आप उस से आगाह रहते हैं । वहीं दूसरी तरफ सफेद और शालीन पोशाक में छुपा हुआ खुद को मर्यादावान कहने वाला उन मर्यादामय नज़रों से क्या क्या देख और दिमाग में क्या क्या उपजा जाता है आप जान तक नही पाते ।
पार्न देखने में हमारा देश कितना आगे है सब जानते हैं तो देश के लगभग हर इंसान को इसका शौख है और सोचता है देखने की चीज़ है देखें क्यों नही मगर वहीं कोई इंसान खुल कर इस मुद्दे पर बात कर रहा।हो तो किसी उसे अश्लील कहता है पर किस हक़ से कहता है ? तुमने पर्दे की आड़ में नंगे बदन देख कर शिक्षा ली सेक्सएजुकेशन की तो तुम महान हो गए और कोई सामने से आईना दिखा गया तो वो घिनौना है ? ऐसा क्यों भला ? गली नुक्कड़ पर खड़े किसी लड़की को माल बोल कर आँखों से बलात्कार कर देने वाला जब अपनी बहन बेटी को नसीहत देता होगा ऐसे कोई छेड़े तो गाल लाल कर देना साले का तब क्या वो खुद के गाल पर तमाचा नही मार रहा होता ? आप खड़े खड़े किसी की माँ बहन को बातों बातों में बिस्तर तक ले आते हैं और जब कोई लड़की अपने हक़ के लिए खुल कर बोलती है तो उसे बद्चलन बताते हैं । आपको इज़्जतें तार तार करने का हक़ है और किसी को बोलने तक का नही ?
सोच कर देखिए आप किसी दिन गुस्से में कोई गाली देते हैं और आपका छोटा सा बच्चा उस गाली का मतलब पूछ लेता है तो उसे एक रख कर देते हैं पर इस में उस मासूम की क्या गलती उसने तो आपके बोले शब्द का मतलब ही पूछा बस ।
याद रखिए आप किसी को दोषी ठहराने का हक़ तभी रखते हैं जब आप साफ़ हैं । नज़रें साफ हों तो सब साफ़ होता है । फिर किसी के छोटे कपड़े और खुली बातों में भी अश्लीलता नही दिखती । इस बात का उदाहरण है कभी सामने से या टी वी अखबार में बलात्कार पीड़िता को देख कर आपका वो बिना हड्डी का अंग हरकत में नही आता । जानते हैं क्यों ? क्योंकी उस वक्त आपकी आँखों में तरस के पीड़ा के दुख के भाव होते हैं हवस नही होती ।
नज़रों को साफ करिए नही तो एक दिन किसी की नज़र आपके घर तक ना पहुँच जाए जैसे आपकी किसी के घर तक जा पहुँचती है । इसे पढ़ें सोचें फिर बोलें और इमानदारी से।खुद से पूछ कर बोलें ।
धीरज झा
समाज दोगली मानसिक्ता की बिमारी से इस तरह ग्रसित हो चुका है की अब चाह कर भी इसका इलाज नही कर सकता । इस रोग से मुक्त हो ही नही सकता । यहाँ जो नंगा है वो कपड़े पहनने वालों से कई गुना अच्छा है कम से कम वो कपड़ों की आड़ में अपनी कमज़ोरी तो नही छुपाता । वो खुल कर कहता है मैं बुरा हूँ मुझ में कमियाँ हैं दूर रहो मुझ से , मुझे अपने घर मत आने दो मेरी भूखी नज़रें तुम्हारी बहन बेटियों को भी नही छोड़ेंगी । आप उस से आगाह रहते हैं । वहीं दूसरी तरफ सफेद और शालीन पोशाक में छुपा हुआ खुद को मर्यादावान कहने वाला उन मर्यादामय नज़रों से क्या क्या देख और दिमाग में क्या क्या उपजा जाता है आप जान तक नही पाते ।
पार्न देखने में हमारा देश कितना आगे है सब जानते हैं तो देश के लगभग हर इंसान को इसका शौख है और सोचता है देखने की चीज़ है देखें क्यों नही मगर वहीं कोई इंसान खुल कर इस मुद्दे पर बात कर रहा।हो तो किसी उसे अश्लील कहता है पर किस हक़ से कहता है ? तुमने पर्दे की आड़ में नंगे बदन देख कर शिक्षा ली सेक्सएजुकेशन की तो तुम महान हो गए और कोई सामने से आईना दिखा गया तो वो घिनौना है ? ऐसा क्यों भला ? गली नुक्कड़ पर खड़े किसी लड़की को माल बोल कर आँखों से बलात्कार कर देने वाला जब अपनी बहन बेटी को नसीहत देता होगा ऐसे कोई छेड़े तो गाल लाल कर देना साले का तब क्या वो खुद के गाल पर तमाचा नही मार रहा होता ? आप खड़े खड़े किसी की माँ बहन को बातों बातों में बिस्तर तक ले आते हैं और जब कोई लड़की अपने हक़ के लिए खुल कर बोलती है तो उसे बद्चलन बताते हैं । आपको इज़्जतें तार तार करने का हक़ है और किसी को बोलने तक का नही ?
सोच कर देखिए आप किसी दिन गुस्से में कोई गाली देते हैं और आपका छोटा सा बच्चा उस गाली का मतलब पूछ लेता है तो उसे एक रख कर देते हैं पर इस में उस मासूम की क्या गलती उसने तो आपके बोले शब्द का मतलब ही पूछा बस ।
याद रखिए आप किसी को दोषी ठहराने का हक़ तभी रखते हैं जब आप साफ़ हैं । नज़रें साफ हों तो सब साफ़ होता है । फिर किसी के छोटे कपड़े और खुली बातों में भी अश्लीलता नही दिखती । इस बात का उदाहरण है कभी सामने से या टी वी अखबार में बलात्कार पीड़िता को देख कर आपका वो बिना हड्डी का अंग हरकत में नही आता । जानते हैं क्यों ? क्योंकी उस वक्त आपकी आँखों में तरस के पीड़ा के दुख के भाव होते हैं हवस नही होती ।
नज़रों को साफ करिए नही तो एक दिन किसी की नज़र आपके घर तक ना पहुँच जाए जैसे आपकी किसी के घर तक जा पहुँचती है । इसे पढ़ें सोचें फिर बोलें और इमानदारी से।खुद से पूछ कर बोलें ।
धीरज झा
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