पुरानी रचना सच्ची घटना | पढ़ कर ज़रा पीड़ा को महसूस करें | "माँ" सोनम ये सुन कर अचानक से चौंक गई | कितने सपने सजाये थे इस शब्द को...
पुरानी रचना
सच्ची घटना | पढ़ कर ज़रा पीड़ा को महसूस करें |
"माँ" सोनम ये सुन कर अचानक से चौंक गई | कितने सपने सजाये थे इस शब्द को ले कर की कोई उसे भी माँ कह कर बुलायेगा | वो जान लुटाया करेगी अपने बच्चे पर मगर सारे सपने टूट कर बिखर गये | जब रमेश सोनम को छोड़ कर किसी और के संग सात फेरे लेने का मन बना कर चला गया | रेत के महल की तरह आखों के सामने सारे सपने मिट्टी के ढेर मे बदल गये थे |
क्या ये वही इंसान था जिसके लिये सोनम माँ बाप समाज सब से लड़ कर सब से भाग कर सब के खिलाफ हो कर जिसका हाथ थामा था , जिसने इतने सपने दिखाये थे ? और जब जाने लगा तो ज़रा ख्याल ना किया के सोनम कैसे अपनी सारी ज़िंदगी काटेगी अकेले ही | प्यार तो एक बार ही होता है ना किसी एक से | जब तक वो है ये मन कहां किसी और को देखना तक चाहता है | फिर रमेश ने क्या किया था क्या वो प्यार नही था | सोनम नें उस से ना तलाक माँगा , ना दूसरी शादी का सोचा | कहती है के ये पाप है मेरे लिये |
| मैं ऐसे ही रहूंगी सारी उम्र |
कितना बलिदान है | कितना तप है | क्या यही प्रेम है ? अगर हाँ तो ये वाकई में कठीन है | इस एक माँ शब्द नें उसे अन्दर तक पुलकित कर दिया था | लगा जैसे सारी दुआऐं पूरी हो गईं | पीछे मुड़ी तो देखा रमेश एक बच्ची के साथ खड़ा है | ये बच्ची उसके पति की बेटी थी मगर सोनम की नही | दूसरे लफ्ज़ों मे कहूं तो सोनम की सौतेली बेटी | मगर सोनम ने इतना सोचा कहाँ | बच्ची को मां की तरह गले से लगा लिया | इसी में उसने रमेश को उसके सारे गुनाहों के लिये माफी भी दी और रोम रोम से दुआ भी दी | आज सोनम खुद में एक उदाहरण है प्रेम की मातृप्रेम की |
धीरज झा...
सच्ची घटना | पढ़ कर ज़रा पीड़ा को महसूस करें |
"माँ" सोनम ये सुन कर अचानक से चौंक गई | कितने सपने सजाये थे इस शब्द को ले कर की कोई उसे भी माँ कह कर बुलायेगा | वो जान लुटाया करेगी अपने बच्चे पर मगर सारे सपने टूट कर बिखर गये | जब रमेश सोनम को छोड़ कर किसी और के संग सात फेरे लेने का मन बना कर चला गया | रेत के महल की तरह आखों के सामने सारे सपने मिट्टी के ढेर मे बदल गये थे |
क्या ये वही इंसान था जिसके लिये सोनम माँ बाप समाज सब से लड़ कर सब से भाग कर सब के खिलाफ हो कर जिसका हाथ थामा था , जिसने इतने सपने दिखाये थे ? और जब जाने लगा तो ज़रा ख्याल ना किया के सोनम कैसे अपनी सारी ज़िंदगी काटेगी अकेले ही | प्यार तो एक बार ही होता है ना किसी एक से | जब तक वो है ये मन कहां किसी और को देखना तक चाहता है | फिर रमेश ने क्या किया था क्या वो प्यार नही था | सोनम नें उस से ना तलाक माँगा , ना दूसरी शादी का सोचा | कहती है के ये पाप है मेरे लिये |
| मैं ऐसे ही रहूंगी सारी उम्र |
कितना बलिदान है | कितना तप है | क्या यही प्रेम है ? अगर हाँ तो ये वाकई में कठीन है | इस एक माँ शब्द नें उसे अन्दर तक पुलकित कर दिया था | लगा जैसे सारी दुआऐं पूरी हो गईं | पीछे मुड़ी तो देखा रमेश एक बच्ची के साथ खड़ा है | ये बच्ची उसके पति की बेटी थी मगर सोनम की नही | दूसरे लफ्ज़ों मे कहूं तो सोनम की सौतेली बेटी | मगर सोनम ने इतना सोचा कहाँ | बच्ची को मां की तरह गले से लगा लिया | इसी में उसने रमेश को उसके सारे गुनाहों के लिये माफी भी दी और रोम रोम से दुआ भी दी | आज सोनम खुद में एक उदाहरण है प्रेम की मातृप्रेम की |
धीरज झा...
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