सुनो बे सिस्टम है भाई बहुत पुराना सिस्टम । कोई छेड़खानी करे भी तो क्यों , पेट में रोटी कभी कभी हाथ में ख्लास और बोटी भी है टी वी पर एक भूतिया...
सुनो बे
सिस्टम है भाई बहुत पुराना सिस्टम । कोई छेड़खानी करे भी तो क्यों , पेट में रोटी कभी कभी हाथ में ख्लास और बोटी भी है टी वी पर एक भूतिया चिल्ला चिल्ला कर समय का अचार सुनाए जा रहा है श्रीमती जी का सीरियल बच्चों का कार्टून भी प्राॅपर आ रहा है । जब लाईट जाती है तो याद आता है झोंपड़ी का सिस्टम बड़ा गंदा है लाईट आती है सिस्टम कथा बन्द दरवाज़ा बन्द देश आबादी बढ़ाने में जुट जाता है । सिस्टम साँप है अजगर वाला साँप वो ऐनाकोंडा वाला साँप निगलता जा रहा है देश को । ये सच है जिसका तमाशा सब चुपछाप सालों से देख रहे और ये कह कर चुप्पी लादे हैं भई हम कर क्या सकते हैं । तुम पिछवाड़ा उकर चिल्लमचिल्ली कर सकते हो इसके सिवा कुछो नही उखड़ेगा तुमसे ।
कोई सिरफिरा कभी सुधारने निकलता है तो उसे पागल बता कर गरिया देते हो , ससुरे की टाँग खींचते हो । वो दो चार बार हाथ मारता है फिर झाग की तरह ठंडा हो कर बैठ जाता है । समझ चुका होता है भई अकेला चना अनचाहे बाल भी नही उखाड़ पाऐगा । ठीक है भई तुम्हारी यही मर्ज़ी तो यही सही । मगर याद रखो अगर घर में दिया जल रहा है तो बाती में लगी आग तुम्हारी बपौती नही है ज़रा सी हवा चली छोटी सी लौ आग की जो तुम्हारे ही घर में तुम्हारे ही तेल और बाती से जल रही वो तुम्हारा ही घर जला देगी । आज कहते हो फलाने की बेटी पेश करो तो याद रखो बेटियाँ तुम्हारी भी हैं और ये नारे जिसके लिए लगा रहे ये किसी के सगे नही । कल को तुम्हारी ही बेटियों की पेशकश के नारे लगाऐंगे और तुम बचते फिरोगे मुँह छुपाते । द्रौपदी का अपमान हुआ था तो लाशों से ज़मीन का कोना कोना भर गया था । सिस्टम कितना भी।मजबूत हो औरत की हाए लगेगी बिखर जाऐगा और सब तमाशा देखते रह जाऐंगे ।
धीरज झा
सिस्टम है भाई बहुत पुराना सिस्टम । कोई छेड़खानी करे भी तो क्यों , पेट में रोटी कभी कभी हाथ में ख्लास और बोटी भी है टी वी पर एक भूतिया चिल्ला चिल्ला कर समय का अचार सुनाए जा रहा है श्रीमती जी का सीरियल बच्चों का कार्टून भी प्राॅपर आ रहा है । जब लाईट जाती है तो याद आता है झोंपड़ी का सिस्टम बड़ा गंदा है लाईट आती है सिस्टम कथा बन्द दरवाज़ा बन्द देश आबादी बढ़ाने में जुट जाता है । सिस्टम साँप है अजगर वाला साँप वो ऐनाकोंडा वाला साँप निगलता जा रहा है देश को । ये सच है जिसका तमाशा सब चुपछाप सालों से देख रहे और ये कह कर चुप्पी लादे हैं भई हम कर क्या सकते हैं । तुम पिछवाड़ा उकर चिल्लमचिल्ली कर सकते हो इसके सिवा कुछो नही उखड़ेगा तुमसे ।
कोई सिरफिरा कभी सुधारने निकलता है तो उसे पागल बता कर गरिया देते हो , ससुरे की टाँग खींचते हो । वो दो चार बार हाथ मारता है फिर झाग की तरह ठंडा हो कर बैठ जाता है । समझ चुका होता है भई अकेला चना अनचाहे बाल भी नही उखाड़ पाऐगा । ठीक है भई तुम्हारी यही मर्ज़ी तो यही सही । मगर याद रखो अगर घर में दिया जल रहा है तो बाती में लगी आग तुम्हारी बपौती नही है ज़रा सी हवा चली छोटी सी लौ आग की जो तुम्हारे ही घर में तुम्हारे ही तेल और बाती से जल रही वो तुम्हारा ही घर जला देगी । आज कहते हो फलाने की बेटी पेश करो तो याद रखो बेटियाँ तुम्हारी भी हैं और ये नारे जिसके लिए लगा रहे ये किसी के सगे नही । कल को तुम्हारी ही बेटियों की पेशकश के नारे लगाऐंगे और तुम बचते फिरोगे मुँह छुपाते । द्रौपदी का अपमान हुआ था तो लाशों से ज़मीन का कोना कोना भर गया था । सिस्टम कितना भी।मजबूत हो औरत की हाए लगेगी बिखर जाऐगा और सब तमाशा देखते रह जाऐंगे ।
धीरज झा
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