पुरानी रचना मैं छुप छुप के तुम्हे देखने की वो आदत नही भूला... भीगी सी तुम जब स्कूल से लौटती थी वो सावन नही भूला... . जब चाहती थी तुम मुझे अप...
पुरानी रचना
मैं छुप छुप के तुम्हे देखने की वो आदत नही भूला...
भीगी सी तुम जब स्कूल से लौटती थी वो सावन नही भूला...
.
जब चाहती थी तुम मुझे अपने खिलौनों से ज़्यादा...
मैं अब तक वो नादान सा बचपन नही भूला...
.
तुम भूल गई हो शायद वो खाली पड़ा पुराना मकान मुहल्ले का...
मगर जहां तुम मोरनी बन नाचती थी मैं वो आंगन नही भूला...
.
एक बार याद है ज़िद तुमने एक अजीब सी पकड़ी थी...
मैं तुम्हारी खुशी के लिये लिस पर चढ़ते हुये गिरा था वो जामुन नही भूला...
.
दुआ करता रहा के वो आंखें फिर ना कभी बरसें...
मगर मैं वो आखरी मुलाकात में तुम्हारे बरसते हुये नयन नही भूला...
.
तुम्हे अब याद हो ना हो मगर मै वो नादान बचपन नही भूला...
.
धीरज झा...
मैं छुप छुप के तुम्हे देखने की वो आदत नही भूला...
भीगी सी तुम जब स्कूल से लौटती थी वो सावन नही भूला...
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जब चाहती थी तुम मुझे अपने खिलौनों से ज़्यादा...
मैं अब तक वो नादान सा बचपन नही भूला...
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तुम भूल गई हो शायद वो खाली पड़ा पुराना मकान मुहल्ले का...
मगर जहां तुम मोरनी बन नाचती थी मैं वो आंगन नही भूला...
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एक बार याद है ज़िद तुमने एक अजीब सी पकड़ी थी...
मैं तुम्हारी खुशी के लिये लिस पर चढ़ते हुये गिरा था वो जामुन नही भूला...
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दुआ करता रहा के वो आंखें फिर ना कभी बरसें...
मगर मैं वो आखरी मुलाकात में तुम्हारे बरसते हुये नयन नही भूला...
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तुम्हे अब याद हो ना हो मगर मै वो नादान बचपन नही भूला...
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धीरज झा...
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