पेटीकोट बड़ी चर्चा में है आजकल । कोई आँसू बहा रहा है पढ़ कर कोई मज़ाक बना रहा है । जो भी हो पर किसी का दर्द है ऐसे हँसी उड़ाना सही नही लगता । ...
पेटीकोट बड़ी चर्चा में है आजकल । कोई आँसू बहा रहा है पढ़ कर कोई मज़ाक बना रहा है । जो भी हो पर किसी का दर्द है ऐसे हँसी उड़ाना सही नही लगता । उसी पेटीकोट को पढ़ कर मेरे मन में भी एक आम सा जो आम तौर पर दिखता है मगर हम महसूस नही कर पाते ऐसा दर्द उठा है । कुछ पेटीकोट सी लाईने मगर इसे उस कविता से हटा कर पढ़ें ।
वो भला कैसे उतारती पेटीकोट
उसने तो पहना ही नही था पेटीकोट
या यूँ कहें उसके पास था ही नही पेटीकोट
दो साल पहले ही पाँच साल पुराना
लीर लीर हो चुका था पेटीकोट
तीन दिन से बारिश हो रही थी
बच्ची उसकी भूख से रो रही थी
वो चुन ना पाई कचरा कबाड़
ना बेच पाई कोई पेपर अखबार
बिना दो निवाले खाए
कैसे उतरता उसके सूखे स्तनों में दूध
कैसे मिटाती दुध मुँही बच्ची की भूख
तीन के बाद मना करने पर भी
चौथा बच्चा पैदा कर डाला
जब शराबी पति ने हवस मिटाने
के लिए दी पूरे बदन पर चोट
उसके पास था ही नही
तो भला कैसे उतारती पेटीकोट
तुमने अपना दर्द तो कह दिया
कैसे दरोगा की गोली को सह लिया
मगर गोली से ज़्यादा दर्दनाक है
समना रोज़ की भूख
बिनना गंदगी में से कचरा और खाना
चाहे कितनी भी कड़क हो धूप
मर्म सब का एक सा है
हर कोई बस चुप चाप देखता है
तुम्हारे और इसके सबके
दर्द के जिम्मेदार हैं वो ही
जो हाथ जोड़ कर माँगने
चले आते हैं वोट
वो कचरा उठाने वाली बेचारी
कहाँ से उतारती पेटीकोट
धीरज झा
वो भला कैसे उतारती पेटीकोट
उसने तो पहना ही नही था पेटीकोट
या यूँ कहें उसके पास था ही नही पेटीकोट
दो साल पहले ही पाँच साल पुराना
लीर लीर हो चुका था पेटीकोट
तीन दिन से बारिश हो रही थी
बच्ची उसकी भूख से रो रही थी
वो चुन ना पाई कचरा कबाड़
ना बेच पाई कोई पेपर अखबार
बिना दो निवाले खाए
कैसे उतरता उसके सूखे स्तनों में दूध
कैसे मिटाती दुध मुँही बच्ची की भूख
तीन के बाद मना करने पर भी
चौथा बच्चा पैदा कर डाला
जब शराबी पति ने हवस मिटाने
के लिए दी पूरे बदन पर चोट
उसके पास था ही नही
तो भला कैसे उतारती पेटीकोट
तुमने अपना दर्द तो कह दिया
कैसे दरोगा की गोली को सह लिया
मगर गोली से ज़्यादा दर्दनाक है
समना रोज़ की भूख
बिनना गंदगी में से कचरा और खाना
चाहे कितनी भी कड़क हो धूप
मर्म सब का एक सा है
हर कोई बस चुप चाप देखता है
तुम्हारे और इसके सबके
दर्द के जिम्मेदार हैं वो ही
जो हाथ जोड़ कर माँगने
चले आते हैं वोट
वो कचरा उठाने वाली बेचारी
कहाँ से उतारती पेटीकोट
धीरज झा
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