हम इंसान बड़े मतलबी हैं या यूँ कहूँ नियती के फैसले के आगे हमें मतलबी होना ही पड़ता है । एक पिता जब तक अपना सारा स्नेह ना हम पर उड़ेल दे , हमारे...
हम इंसान बड़े मतलबी हैं या यूँ कहूँ नियती के फैसले के आगे हमें मतलबी होना ही पड़ता है । एक पिता जब तक अपना सारा स्नेह ना हम पर उड़ेल दे , हमारे प्रति अपने सारे कर्तव्य पूरे ना कर दे तब तक उनका हमें छोड़ जाना बहुत बड़ा सदमा बन जाता है हमारे लिए , वहीं मतलबी मन इतना विचलित नही।होता जब पिता अपनी उम्र काट कर बूढ़े होकर हमें छोड़ जाऐं । मैं भी उन्ही मतलबियों में से एक हूँ जिसे सदमा लगा उम्र भर का सदमा जब पिता जी अपनी उम्र पूरी कर पाने से पहले ही छोड़ गए हमें । पर उन्होंने अपने हमारे प्रति सारे कर्तव्यों को यथाशक्ति पूरा कर दिया था फिर भी मन इस तरह छलनी हुआ की अब तक ना भर पाया और ना ये घाव कभी भरेगा ।
मैं तो समझदार था , बड़ा था , दुनिया के लगभग हर रंग से वाकिफ़ था फिर भी जब पिता जी को मुखाग्नि दी तो इस तरह चिल्ला रहा था मानों दिल फट जाऐगा मेरा । 27 साल का भारी भरकम शरीर वाला लड़का जब बिना लोक लाज की परवाह किए सबके सामने इस तरह चिल्ला कर रोए तो आप समझ सकते हैं उसके मन में कितना दर्द होगा वो कितनी तकलीफ में होगा उस वक्त । मुझे सब समझा रहे थे बेटा तुम बड़े हो तुम ऐसे रोने लगोगे तो छोटे भाईयों और माँ को कौन संभालेगा । मैं बड़ा था मुझे बड़े होने का खामयाज़ा भुगतना पड़ा की मैं पिता की अंतिम विदाई पर मन भर रो भी नही पाया , सिसक कर , चीखों को दबा कर रह गया ।
मैं आज ये सब अचानक लिख रहा हूँ पता है क्यों ? क्योंकी मैने आज अपने जैसा दर्द फिर से महसूस किया जो मेरे दर्द के मुकाबले कई गुना ज़्यादा था । अखबार पलटते ही सबसे पहले नज़र गई इसी खबर जो कमश्मीर में आतंकियों संग लड़ते हुए मारे गए शहीद कमांडेंट प्रमोद कुमार के बारे में । जब ये पढ़ा की उनकी पाँच वर्षिय बेटी ने उन्हे मुखाग्नि दी तो सच कहता हूँ वो पिता जी को मुखाग्नि देने के वक्त उमड़ा दर्द एक बार फिर अंदर से महसूस हुआ । मैं तो बड़ा था कहने को समझदार था मगर अरना तो महज़ पाँच साल की थी उसने क्या महसूस किया होगा । सबने क्या कह कर उसके ही हाथों उसके उस पिता को जलवाया होगा जिसका इंतज़ार वो बच्ची हर दम करती रही होगी ये सोच कर की पापा आऐंगे तो खूब सारा प्यार करेंगे । बच्चे आग से डरते हैं , अरना कितना डरी होगी उस आग से जो उसके पिता को लील रही थी । शायद उसे अभी इस बात का इतना अहसास भी ना हो मगर उम्र बढ़ने के साथ साथ वो हर दिन कितना टूटेगी अपने पिता को याद कर के जो उसके प्रति अपने सारे कर्तव्यों को अधूरा छोड़ कर जाने के लिए विवष हो गए सिर्फ और सिर्फ देश की खातिर । उसी देश की खातिर जो छोटी छोटी समस्याओं में ही उलझ कर रह आपस में लड़ कर रह जाता है जो घुसखोरी और नेताओं के जाल में बुरी तरह फंसा पड़ा है । खैर अभी इस मुद्दे पर कोई बात नही अभी बस महसूस करना है उस बच्ची अरना का दर्द जिसकी पूरी समझ भी नही है उसमें । भारत माँ का एक और बेटा अपने परिवार अपनी बच्ची से दगा कर के देश से वफ़ादारी निभा गया । और क्या कह सकते हैं उनके लिए बस रोम रोम से नमन है शहीद प्रमोद कुमार और इन जैसे सभी शहीदों को । भगवान अरना के भविष्य को उज्जव करें जिससे पिता के बिना उसे समस्याओं का सामना ना करना पड़े । खुश रहे वो बच्ची हमेशा हमेशा 😢
धीरज झा
मैं तो समझदार था , बड़ा था , दुनिया के लगभग हर रंग से वाकिफ़ था फिर भी जब पिता जी को मुखाग्नि दी तो इस तरह चिल्ला रहा था मानों दिल फट जाऐगा मेरा । 27 साल का भारी भरकम शरीर वाला लड़का जब बिना लोक लाज की परवाह किए सबके सामने इस तरह चिल्ला कर रोए तो आप समझ सकते हैं उसके मन में कितना दर्द होगा वो कितनी तकलीफ में होगा उस वक्त । मुझे सब समझा रहे थे बेटा तुम बड़े हो तुम ऐसे रोने लगोगे तो छोटे भाईयों और माँ को कौन संभालेगा । मैं बड़ा था मुझे बड़े होने का खामयाज़ा भुगतना पड़ा की मैं पिता की अंतिम विदाई पर मन भर रो भी नही पाया , सिसक कर , चीखों को दबा कर रह गया ।
मैं आज ये सब अचानक लिख रहा हूँ पता है क्यों ? क्योंकी मैने आज अपने जैसा दर्द फिर से महसूस किया जो मेरे दर्द के मुकाबले कई गुना ज़्यादा था । अखबार पलटते ही सबसे पहले नज़र गई इसी खबर जो कमश्मीर में आतंकियों संग लड़ते हुए मारे गए शहीद कमांडेंट प्रमोद कुमार के बारे में । जब ये पढ़ा की उनकी पाँच वर्षिय बेटी ने उन्हे मुखाग्नि दी तो सच कहता हूँ वो पिता जी को मुखाग्नि देने के वक्त उमड़ा दर्द एक बार फिर अंदर से महसूस हुआ । मैं तो बड़ा था कहने को समझदार था मगर अरना तो महज़ पाँच साल की थी उसने क्या महसूस किया होगा । सबने क्या कह कर उसके ही हाथों उसके उस पिता को जलवाया होगा जिसका इंतज़ार वो बच्ची हर दम करती रही होगी ये सोच कर की पापा आऐंगे तो खूब सारा प्यार करेंगे । बच्चे आग से डरते हैं , अरना कितना डरी होगी उस आग से जो उसके पिता को लील रही थी । शायद उसे अभी इस बात का इतना अहसास भी ना हो मगर उम्र बढ़ने के साथ साथ वो हर दिन कितना टूटेगी अपने पिता को याद कर के जो उसके प्रति अपने सारे कर्तव्यों को अधूरा छोड़ कर जाने के लिए विवष हो गए सिर्फ और सिर्फ देश की खातिर । उसी देश की खातिर जो छोटी छोटी समस्याओं में ही उलझ कर रह आपस में लड़ कर रह जाता है जो घुसखोरी और नेताओं के जाल में बुरी तरह फंसा पड़ा है । खैर अभी इस मुद्दे पर कोई बात नही अभी बस महसूस करना है उस बच्ची अरना का दर्द जिसकी पूरी समझ भी नही है उसमें । भारत माँ का एक और बेटा अपने परिवार अपनी बच्ची से दगा कर के देश से वफ़ादारी निभा गया । और क्या कह सकते हैं उनके लिए बस रोम रोम से नमन है शहीद प्रमोद कुमार और इन जैसे सभी शहीदों को । भगवान अरना के भविष्य को उज्जव करें जिससे पिता के बिना उसे समस्याओं का सामना ना करना पड़े । खुश रहे वो बच्ची हमेशा हमेशा 😢
धीरज झा
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