गुस्ताखी माफ़ हो एक बात सच सच बताऊँ ? गुस्साईएगा मत पहले ही बता देता हूँ । मुझे ना देशवासियों पर बहुत गुस्सा आता है कसम से । और कब कब आता है...
गुस्ताखी माफ़ हो
एक बात सच सच बताऊँ ? गुस्साईएगा मत पहले ही बता देता हूँ । मुझे ना देशवासियों पर बहुत गुस्सा आता है कसम से । और कब कब आता है जानते हैं ? जब जब ये किसी भी खेल में भारत के जीतने पर खुशी मनाते हैं और हारने पर खिलाड़ियों की माँ बहन का सम्मान करते हैं तब तब आता है भयंकर गुस्सा । असल में हमारे देश को पकी पकाई खीर खाने में बड़ा आनन्द आता है हमेशा से ही । नही यकीन तो आप खुद ही सोच कर देख लें । यहाँ जब बच्चा हर वक्त किताब में।डूबे रहने की बजाए जब ही खेल , गाना गाने , डाँसिंग , या किसी और प्रकार की गतिविधियों में अपनी रुचि दिखाता है तब से ही वो घर से लेकर आस पड़ोस और रिश्तेदारों के बीच एक नाकारा आवारा बच्चा बन जाता है जिसका उनके हिसाब से कोई भविष्य नही।होता । अगर तो वो बच्चा कमज़ोर या थोड़ा समझदार होता।है तो घर वालों के ताने और आस पड़ोस में उड़ रही अपनी खिल्ली से तंग आकर खींच खिंचा कर दसवीं बारहवीं कर के किसी शर्मा स्वीट शाॅप , वर्मा क्राक्रीज़ , गुप्ता किराना स्टोर आदि बड़े संस्थानों की शोभा बढ़ाते हुई धीरे धीरे खुद भी दूसरों की सोच जैसी सोच को अपना कर अपने बच्चों पर भी यही ज़ुल्म कर के खानदान की परम्परा को आगे बढ़ाता है और यदि वो प्रतिभाशाली कोई लड़की हुई तो एक ही गति बेचारी की वो ये की शादी करा कर डाल दो किसी दूसरे घर का सारा बोझ उसके कंधों पर ।
और दूसरी तरफ अगर बच्चे अड़ियल ज़िद्दी हुए या माँ बाप ने थोड़ा स्पोर्ट कर दिया और वो अपने हुनर को निखारने में कामयाब हो गए तो फिर अचानक से खानदान की शान मोहल्ले का गौरव और दूर के रिश्तेदारों का भी सगा बन जाता है । वही।नाकारा बच्चा अचानक से चौड़ी हो रही छातियों की वजह बन जाता है । वही बेटियाँ जो बोझ कही जा रही होती हैं अचानक से समाज की नाक ऊँची करने का कारण बन जाती हैं । मने समझिए तो टोटली दोगलबाजी है जनाब इस समाज की ।
ज़्यादातर बच्चे भी कम नही हैं ये स्कूल काॅलेज में कोई स्पोर्ट ज्वाईन करते हैं बस इसलिए की क्लास ना करनी पड़े या कुछ दिन स्कूल , काॅलेज दूरी बनाने का मन हो तो स्पोर्टस का बहाना मार दिया जाए । उसके बाद स्पोर्टस में जाने की एक बड़ी।वजह है स्पोर्टस कोटे में थोड़ी आसानी से मिलने वाली सरकारी नौकरियाँ । बाकी जो थोड़े बहुत बचते हैं उन्हे पूरी सहूलियत नही मिलती । इन खिलाड़ियों को देश और सरकार तब ही जानती है जब ये कोई पदक के लिए अपनी टूटी हिम्मत को समेट कर लड़ रहे हों । तब अगर ये ज़िद्दी जीत गए तो वाह वाह और कहीं हार गए तो बेवजह मज़ाक बन जाते हैं ।
ये जो ओलम्पिक या किसी भी ऐसी प्रतियोगिता में तिरंगा लहराते और अपने कपड़ों पर तिरंगे की छाप लगाए खेल रहे होते हैं ना ये बस खेल नही रहे होते ये असल में लड़ रहे होते हैं । समाज से , आपकी उम्मीदों को टूटने से बचाने के लिए ,अपने देश के सम्मान के लिए इन सब से लड़ रहे होते हैं ये बस अपनी ज़िद्द के दम पर । और ये अगर इन हालातों में यहाँ तक पहुँच कर पूरे विश्व के सामने तिरंगा लहरा देते हैं ना वो ही अपने आप में बहुत बड़ी बात है । और हमें इनकी ज़िद्द कि हरहाल में सम्मान करना चाहिए क्योंकी पूरे देशें ये मुट्ठी भर ही।ज़िद्दी तो हैं । जीतने के बाद तो हर कोई पहनता है , सब देखते हैं की खिलाड़ी को कितना इनाम मिला मगर जीतने से पहले तक के सफर में उसने कितनी परेशानियाँ झेलीं कितनी जगह मदद के लिए गुहार की और कितनों ने अनसुना कर दिया , ये सब किसी ने नही देखा ।
गर्व से कहिए ये तिरंगे की छाप वाले हमारे बच्चे हैं , इस देश की शान हैं । जो जीते और जो हारे मेहनत दोनो ने बराबर की सम्मान का हक़ दोनो का बराबर है । क्योंकी खेलता हर कोई जीतने लिए ही है ।
धीरज झा
एक बात सच सच बताऊँ ? गुस्साईएगा मत पहले ही बता देता हूँ । मुझे ना देशवासियों पर बहुत गुस्सा आता है कसम से । और कब कब आता है जानते हैं ? जब जब ये किसी भी खेल में भारत के जीतने पर खुशी मनाते हैं और हारने पर खिलाड़ियों की माँ बहन का सम्मान करते हैं तब तब आता है भयंकर गुस्सा । असल में हमारे देश को पकी पकाई खीर खाने में बड़ा आनन्द आता है हमेशा से ही । नही यकीन तो आप खुद ही सोच कर देख लें । यहाँ जब बच्चा हर वक्त किताब में।डूबे रहने की बजाए जब ही खेल , गाना गाने , डाँसिंग , या किसी और प्रकार की गतिविधियों में अपनी रुचि दिखाता है तब से ही वो घर से लेकर आस पड़ोस और रिश्तेदारों के बीच एक नाकारा आवारा बच्चा बन जाता है जिसका उनके हिसाब से कोई भविष्य नही।होता । अगर तो वो बच्चा कमज़ोर या थोड़ा समझदार होता।है तो घर वालों के ताने और आस पड़ोस में उड़ रही अपनी खिल्ली से तंग आकर खींच खिंचा कर दसवीं बारहवीं कर के किसी शर्मा स्वीट शाॅप , वर्मा क्राक्रीज़ , गुप्ता किराना स्टोर आदि बड़े संस्थानों की शोभा बढ़ाते हुई धीरे धीरे खुद भी दूसरों की सोच जैसी सोच को अपना कर अपने बच्चों पर भी यही ज़ुल्म कर के खानदान की परम्परा को आगे बढ़ाता है और यदि वो प्रतिभाशाली कोई लड़की हुई तो एक ही गति बेचारी की वो ये की शादी करा कर डाल दो किसी दूसरे घर का सारा बोझ उसके कंधों पर ।
और दूसरी तरफ अगर बच्चे अड़ियल ज़िद्दी हुए या माँ बाप ने थोड़ा स्पोर्ट कर दिया और वो अपने हुनर को निखारने में कामयाब हो गए तो फिर अचानक से खानदान की शान मोहल्ले का गौरव और दूर के रिश्तेदारों का भी सगा बन जाता है । वही।नाकारा बच्चा अचानक से चौड़ी हो रही छातियों की वजह बन जाता है । वही बेटियाँ जो बोझ कही जा रही होती हैं अचानक से समाज की नाक ऊँची करने का कारण बन जाती हैं । मने समझिए तो टोटली दोगलबाजी है जनाब इस समाज की ।
ज़्यादातर बच्चे भी कम नही हैं ये स्कूल काॅलेज में कोई स्पोर्ट ज्वाईन करते हैं बस इसलिए की क्लास ना करनी पड़े या कुछ दिन स्कूल , काॅलेज दूरी बनाने का मन हो तो स्पोर्टस का बहाना मार दिया जाए । उसके बाद स्पोर्टस में जाने की एक बड़ी।वजह है स्पोर्टस कोटे में थोड़ी आसानी से मिलने वाली सरकारी नौकरियाँ । बाकी जो थोड़े बहुत बचते हैं उन्हे पूरी सहूलियत नही मिलती । इन खिलाड़ियों को देश और सरकार तब ही जानती है जब ये कोई पदक के लिए अपनी टूटी हिम्मत को समेट कर लड़ रहे हों । तब अगर ये ज़िद्दी जीत गए तो वाह वाह और कहीं हार गए तो बेवजह मज़ाक बन जाते हैं ।
ये जो ओलम्पिक या किसी भी ऐसी प्रतियोगिता में तिरंगा लहराते और अपने कपड़ों पर तिरंगे की छाप लगाए खेल रहे होते हैं ना ये बस खेल नही रहे होते ये असल में लड़ रहे होते हैं । समाज से , आपकी उम्मीदों को टूटने से बचाने के लिए ,अपने देश के सम्मान के लिए इन सब से लड़ रहे होते हैं ये बस अपनी ज़िद्द के दम पर । और ये अगर इन हालातों में यहाँ तक पहुँच कर पूरे विश्व के सामने तिरंगा लहरा देते हैं ना वो ही अपने आप में बहुत बड़ी बात है । और हमें इनकी ज़िद्द कि हरहाल में सम्मान करना चाहिए क्योंकी पूरे देशें ये मुट्ठी भर ही।ज़िद्दी तो हैं । जीतने के बाद तो हर कोई पहनता है , सब देखते हैं की खिलाड़ी को कितना इनाम मिला मगर जीतने से पहले तक के सफर में उसने कितनी परेशानियाँ झेलीं कितनी जगह मदद के लिए गुहार की और कितनों ने अनसुना कर दिया , ये सब किसी ने नही देखा ।
गर्व से कहिए ये तिरंगे की छाप वाले हमारे बच्चे हैं , इस देश की शान हैं । जो जीते और जो हारे मेहनत दोनो ने बराबर की सम्मान का हक़ दोनो का बराबर है । क्योंकी खेलता हर कोई जीतने लिए ही है ।
धीरज झा
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