अजीब हम अजीब से हमारे शब्द बड़े अजीब से हो गए हैं खुशियों से फासला बना कर तन्हाईयों के करीब से हो गए हैं कभी थी अमीरी हमारे ख़यालातों में ...
अजीब हम अजीब से हमारे शब्द
बड़े अजीब से हो गए हैं
खुशियों से फासला बना कर
तन्हाईयों के करीब से हो गए हैं
कभी थी अमीरी हमारे ख़यालातों में
आजकल सोच में बड़े ग़रीब से हो गए हैं
हवा भी छू जाए तुमको तो
साँसें दुश्मन लगने लगती हैं
जल रहे होते हैं मगर चिल्ला नही सकते
ना जाने कैसे इतने बदनसीब से हो गए हैं
चाहते तो हैं की खुश रहा करें हर वक्त
मगर फिक्र तुम्हारी चैन से जीने कहाँ देती है
समझ ही ना पाए आज तक हम
हमारे सबसे बड़े हिमायती कैसे हमारे रक़ीब से हो गए हैं
देखो तो ज़रा ये क्या क्या
अलूल जलूल सा लिख डाला
कहा था ना
बड़े अजीब से हो गए हैं 😊
धीरज झा
बड़े अजीब से हो गए हैं
खुशियों से फासला बना कर
तन्हाईयों के करीब से हो गए हैं
कभी थी अमीरी हमारे ख़यालातों में
आजकल सोच में बड़े ग़रीब से हो गए हैं
हवा भी छू जाए तुमको तो
साँसें दुश्मन लगने लगती हैं
जल रहे होते हैं मगर चिल्ला नही सकते
ना जाने कैसे इतने बदनसीब से हो गए हैं
चाहते तो हैं की खुश रहा करें हर वक्त
मगर फिक्र तुम्हारी चैन से जीने कहाँ देती है
समझ ही ना पाए आज तक हम
हमारे सबसे बड़े हिमायती कैसे हमारे रक़ीब से हो गए हैं
देखो तो ज़रा ये क्या क्या
अलूल जलूल सा लिख डाला
कहा था ना
बड़े अजीब से हो गए हैं 😊
धीरज झा
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