विषय - काजल शिर्षक - स्वाभिमान . " तुम खुद को समझती क्या हो ? तुम्हे वही करना होगा जो मै कहूंगा | पति हूं मैं तुम्हारा | मुझे तुम्हार...
विषय - काजल
शिर्षक - स्वाभिमान
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" तुम खुद को समझती क्या हो ? तुम्हे वही करना होगा जो मै कहूंगा | पति हूं मैं तुम्हारा | मुझे तुम्हारा ये सजना संवरना ज़रा पसन्द नही | घर में रहो घर का काम करो इस से ज़्यादा उड़ने की ज़रूरत नही | "
" मैने ऐसा किया क्या जो आप इतना सुना रहे हैं मुझे |"
" मेरे सामने ज़बान लड़ाती हो | अभी के अभी घर से निकाल दूंगा दर दर मारी फिरोगी | कोई है भी तो नही तुम्हारा |"
इतनी बात मोहिनी के स्वाभिमान को चोट पहुंचाने केलिए काफी थी | वो उठी और कमरे में चली गई | इधर रमेश मन ही मन गद्गद था अपनी जीत पर |
मगर ये क्या मोहिनी कुछ ही देर में वापिस आई | होंठों पर लिपिस्टिक और अपनी बड़ी सी खूबसूरत आंखों में " काजल" लगाए |
" रमेश ! अपने पुराने ख़्यालों से बाहर आईए | वो ज़माना गया जब औरत का सहारा बस उसका पति होता था | आज का दौर है जहां पत्नी अपना सहारा खुद बन सकती है | मै जा रही हूं अपनी मर्ज़ी से आपके निकालने की ज़रूरत भी नही | अपनी आज़ादी से जीऊंगी |"
और मोहिनी अपने काजल लगे बड़ी सी आंखें (जो रमेश को कतई पसन्द नही थीं ) दिखाती दरवाज़े की तरफ बढ़ गई |
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धीरज झा..
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