जनाब से मिलने का सारा ब्यौरा अब क्या बताऐं आपको, जनाब से मिलने का मन तो कब से था मगर मौका ही नही मिल रहा था । अब जनाब ठहरे व्यस्त बंदे सम...
जनाब से मिलने का सारा ब्यौरा
अब क्या बताऐं आपको, जनाब से मिलने का मन तो कब से था मगर मौका ही नही मिल रहा था । अब जनाब ठहरे व्यस्त बंदे समय है ही कहाँ उनके पास । फिर अपिंनमिंट ले कर शनिवार शाम को निकल गए हम गाज़ियाबाद से दिल्ली के लिए । अरे साहब आपके लिए थोड़ा सा सफर होगा । हम तो ठहरे आलसी टाईप बंदे ऑटो पकड़ो उतरो मैटरो चढ़ो फिर उतरो बदलो फिर उतरो बस चढ़ो, भई आप बताओ हमाए लिए कहाँ से आसान होता जी । मगर सवाल था जनाब से मिलने का । क्योंकी जनाब फिर नानी गाँव यानी हमारे गाँव चले जाते तो भला कैसे मिल पाते ।
तो गिरते पड़ते हम जनाब की महलिया में पहुँचे और पहुँचते का देखते हैं की जनाब पैर पसारे पड़े हुए हैं आराम से । हम तो बस पाँच मिनट उनके चंचल चितवन और सजल नयन ही निहारते रहे । अरे अपनी ज़िंदगी में परिवार का सबसे छोटा बच्चा जो देख रहे थे, थोड़ी भावुक्ता तो आनी ही थी । मगर उन कठोर जनाब को तनिक दया ना आई हम पर ऐसे बैठे थे जैसे हम कुछ हैं ही नहीं । फिर देखा की जब उनकी माँ और पापा हमसे खूब बतिया रहे हैं तब जा कर हमारी तरफ देखा और देखा भी तो ऐसे देखा जैसे हम कोनो दूसरे ग्रह से आ गये हों शायद जनाब सोच रहे थे की ये भरी भरकम अजीब सा इन्सान है कौन । मगर जब हमने थोड़ी देर गौर से देखा उन्होंने भी मुझे थोडा गौर से देखा और फिर जैसे पूछ रहे हों की हाँ भाई तुम कौन और यहाँ क्या लेने आए हो । मगर हम भी ढीठ बन गए उठा लिया गोद में । कसम से वो कहते हैं Awsome वाली फीलिंग वही आई, कारण ये था की पहली बार किसी इतने छोटे बच्चे को गोद में उठा रहे थे, ऊपर से हमारे भांजे साहब हैं तो थोडा बढ़िया वाला अजीब तो लग्न ही था । हमारी राजदुलारी भतीजिया हुई थी तब हम वहां थे नहीं जब उस से पहली बार मिले तो तब तक बडबोली हो गई थी तब से तो खुद ही तातू तातू करने लगी थी । इसी लिए जनाब को गोद में उठाना मानो आज तक की सबसे बड़ी खुशियों में से एक थी ।
जैसे जैसे समय बीता थोडा, उन्हें ये यकीन हो गया की बंदा कोई अपना ही है इसी लिए मम्मी पापा इतना खातिरदारी कर रहे हैं । जनाब अभी सवा महीने के हुए होंगे और लगते हैं छः महीने के । इनकी सबसे खास बात ये है की रोते ही नहीं बस अपने में मस्त रहते हैं कभी अपमी मम्मी का दुपट्टा ओढ़ लेंगे कभी अपने से हंसने लगेंगे और जब कोई पास नहीं रहेगा तो अपनी रौबदार आवाज़ में जोर से बोलेंगे “ अएएएएएएएएएएएएएएए “ जैसे कह रहे हों “कहाँ चले गए तुम सब मुझे छोड़ कर” ?
मैंने सुबह सोचा क्यों ना माँ को उनके नाती की हरकतें दिखाई जाएँ और फिर विडिओ कॉल लगा दी माँ के पास मैंने जनाब से कहा हंसिये हंसिये दो चार बार तो उन्होंने ऐसे अनसुना किया जैसे सरकार गरीब जनता की दुहाई अनसुनी करती है और पांचवीं बार ये बड़ी सी सुसु धार मारी हमारी पेंट पर, मतलब आधा स्नान करा दिए जनाब हमको । पर चलो हम मामा हैं वो भांजे हैं उनका तो इतना हक़ बनता ही है । वैसे भी कहीं भी कभी भी कैसे भी हगने मूतने का पूरा लाइसेंस है जनाब के पास । पर अब एक बात सही थी वो ये की अब जनाब की नज़रों में हमारे लिए इनायत झलकने लगी थी । अब एक दो बार कनखिया कर हंस दे रहे थे ।
फिर शाम हो गई और हमारा उनसे विदा लेने का वक़्त आगया । अपनी ऊँगली उनके नन्हे हाथों में दी तो झट से पकड़ ली जैसे कह रहे हों के जब आ ही गए हो तो रुक जाओ । मगर दिल्ली एक जगह ज्यादा देर रुकने कहाँ देती है पापी पेट चिल्लाने जो लगता है । तो हमने मन ही मन वडा किया की फिर जल्दी आयेंगे आपसे मिलने और फिर हमारे मन की सुन कर जनाब अपनी कीमती मुस्कान हमें उपहार में भेंट करते हुए बाय बाय कह दिए और हम भी मुस्कुराते हुए चल दिए वहां से । मगर मन में संतोष था उन्हें देख कर की जनाब स्वस्थ हैं मम्मी को ज्यादा तंग नहीं करते ना ही जनाब को कोई दिक्कत है । और दूसरी ख़ुशी हुई बहन और झा जी को खुश देख कर । मेरी छोटी सी बहन अब बड़ी हो गई है जो कुछ दिनों पहले तक खुद बच्ची थी वो अब एक बचे की मम्मी है और उसका खूब अछे से ख्याल रखती है । मने कम शब्दों में कहें तो मन गदगद था डेल्ही से लौटते हुए ।
भगवान तीनों को खुश रखें और हमेशा ये प्यारी मुस्कुराहट खिली रहे ।

धीरज झा
अब क्या बताऐं आपको, जनाब से मिलने का मन तो कब से था मगर मौका ही नही मिल रहा था । अब जनाब ठहरे व्यस्त बंदे समय है ही कहाँ उनके पास । फिर अपिंनमिंट ले कर शनिवार शाम को निकल गए हम गाज़ियाबाद से दिल्ली के लिए । अरे साहब आपके लिए थोड़ा सा सफर होगा । हम तो ठहरे आलसी टाईप बंदे ऑटो पकड़ो उतरो मैटरो चढ़ो फिर उतरो बदलो फिर उतरो बस चढ़ो, भई आप बताओ हमाए लिए कहाँ से आसान होता जी । मगर सवाल था जनाब से मिलने का । क्योंकी जनाब फिर नानी गाँव यानी हमारे गाँव चले जाते तो भला कैसे मिल पाते ।
तो गिरते पड़ते हम जनाब की महलिया में पहुँचे और पहुँचते का देखते हैं की जनाब पैर पसारे पड़े हुए हैं आराम से । हम तो बस पाँच मिनट उनके चंचल चितवन और सजल नयन ही निहारते रहे । अरे अपनी ज़िंदगी में परिवार का सबसे छोटा बच्चा जो देख रहे थे, थोड़ी भावुक्ता तो आनी ही थी । मगर उन कठोर जनाब को तनिक दया ना आई हम पर ऐसे बैठे थे जैसे हम कुछ हैं ही नहीं । फिर देखा की जब उनकी माँ और पापा हमसे खूब बतिया रहे हैं तब जा कर हमारी तरफ देखा और देखा भी तो ऐसे देखा जैसे हम कोनो दूसरे ग्रह से आ गये हों शायद जनाब सोच रहे थे की ये भरी भरकम अजीब सा इन्सान है कौन । मगर जब हमने थोड़ी देर गौर से देखा उन्होंने भी मुझे थोडा गौर से देखा और फिर जैसे पूछ रहे हों की हाँ भाई तुम कौन और यहाँ क्या लेने आए हो । मगर हम भी ढीठ बन गए उठा लिया गोद में । कसम से वो कहते हैं Awsome वाली फीलिंग वही आई, कारण ये था की पहली बार किसी इतने छोटे बच्चे को गोद में उठा रहे थे, ऊपर से हमारे भांजे साहब हैं तो थोडा बढ़िया वाला अजीब तो लग्न ही था । हमारी राजदुलारी भतीजिया हुई थी तब हम वहां थे नहीं जब उस से पहली बार मिले तो तब तक बडबोली हो गई थी तब से तो खुद ही तातू तातू करने लगी थी । इसी लिए जनाब को गोद में उठाना मानो आज तक की सबसे बड़ी खुशियों में से एक थी ।
जैसे जैसे समय बीता थोडा, उन्हें ये यकीन हो गया की बंदा कोई अपना ही है इसी लिए मम्मी पापा इतना खातिरदारी कर रहे हैं । जनाब अभी सवा महीने के हुए होंगे और लगते हैं छः महीने के । इनकी सबसे खास बात ये है की रोते ही नहीं बस अपने में मस्त रहते हैं कभी अपमी मम्मी का दुपट्टा ओढ़ लेंगे कभी अपने से हंसने लगेंगे और जब कोई पास नहीं रहेगा तो अपनी रौबदार आवाज़ में जोर से बोलेंगे “ अएएएएएएएएएएएएएएए “ जैसे कह रहे हों “कहाँ चले गए तुम सब मुझे छोड़ कर” ?
मैंने सुबह सोचा क्यों ना माँ को उनके नाती की हरकतें दिखाई जाएँ और फिर विडिओ कॉल लगा दी माँ के पास मैंने जनाब से कहा हंसिये हंसिये दो चार बार तो उन्होंने ऐसे अनसुना किया जैसे सरकार गरीब जनता की दुहाई अनसुनी करती है और पांचवीं बार ये बड़ी सी सुसु धार मारी हमारी पेंट पर, मतलब आधा स्नान करा दिए जनाब हमको । पर चलो हम मामा हैं वो भांजे हैं उनका तो इतना हक़ बनता ही है । वैसे भी कहीं भी कभी भी कैसे भी हगने मूतने का पूरा लाइसेंस है जनाब के पास । पर अब एक बात सही थी वो ये की अब जनाब की नज़रों में हमारे लिए इनायत झलकने लगी थी । अब एक दो बार कनखिया कर हंस दे रहे थे ।
फिर शाम हो गई और हमारा उनसे विदा लेने का वक़्त आगया । अपनी ऊँगली उनके नन्हे हाथों में दी तो झट से पकड़ ली जैसे कह रहे हों के जब आ ही गए हो तो रुक जाओ । मगर दिल्ली एक जगह ज्यादा देर रुकने कहाँ देती है पापी पेट चिल्लाने जो लगता है । तो हमने मन ही मन वडा किया की फिर जल्दी आयेंगे आपसे मिलने और फिर हमारे मन की सुन कर जनाब अपनी कीमती मुस्कान हमें उपहार में भेंट करते हुए बाय बाय कह दिए और हम भी मुस्कुराते हुए चल दिए वहां से । मगर मन में संतोष था उन्हें देख कर की जनाब स्वस्थ हैं मम्मी को ज्यादा तंग नहीं करते ना ही जनाब को कोई दिक्कत है । और दूसरी ख़ुशी हुई बहन और झा जी को खुश देख कर । मेरी छोटी सी बहन अब बड़ी हो गई है जो कुछ दिनों पहले तक खुद बच्ची थी वो अब एक बचे की मम्मी है और उसका खूब अछे से ख्याल रखती है । मने कम शब्दों में कहें तो मन गदगद था डेल्ही से लौटते हुए ।
भगवान तीनों को खुश रखें और हमेशा ये प्यारी मुस्कुराहट खिली रहे ।

धीरज झा
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