असल शिक्षक " ऐ बबीतिया तुम आज फिर नही बना के लाई टास्क ? चलो तुम हमको ऐस्टाफ रूम में मिलो , तुमको बताते हैं । डरे मर गया है तुम्हारा ।...
असल शिक्षक
" ऐ बबीतिया तुम आज फिर नही बना के लाई टास्क ? चलो तुम हमको ऐस्टाफ रूम में मिलो , तुमको बताते हैं । डरे मर गया है तुम्हारा । " अंग्रेजी शाले मास्टर साहेब आठवीं की छात्रा बबीता पर अपने तेवर झाड़ते हुए बोले ।
बबीता टास्क बना कर नही लाती थी । हालाँकी पढ़ने में वो इतनी बुरी नही थी । पर वो टास्क बस इसलिए नही बना पाती थी क्योंकी मास्टर साहेब का डर उसे अब कुछ भी नही करने देता था । यही कोई दो महीने पहले ही बबीता की बुआ के बेटे की शादी थी । उसने छुट्टी भी ली थी । शादी में लड़कपन्न और मस्ती के बीच ना अंग्रेजी याद रही ना टास्क । जब स्कूल पहुँची अपनी मस्तियों से बाहर निकल कर तो मास्टर साहेब ने खूब सुनाया ये जानते हुए की वो शादी में गई थी । फिर उसे स्टाॅफरूम में बुलाया और प्यार से समझाने लगे " देखो बबीता , पढ़ोगी नही तो कैसे चलेगा । आगे कैसे बढ़ पाओगी । अंग्रेजी बहुत ज़रूरी.... । " इतना कहता मास्टर साहेब की आँखें बन्द हो गईं । मुँह से एक गंदी सी आह निकली थी । वो बबीता को कुछ ज़्यादा ही प्यार से समझाने लग पड़े थे । उनका हाथ बबीता के सर से सरकता हुआ उसकी पीठ कमर से नीचे और ना जाने कहाँ कहाँ जाने लगा था । बबीता बुरी तरह काँप गई थी । खुद को झटके से छुड़ा कर दूर खड़ी हो गई थी मास्टर साहेब से ।
मास्टर साहेब भड़कते हुए बोले थे " कल से टास्क बना कर ना लाई तो सारा दिन बेंच पर खड़ा रखेंगे । चलो भागो , क्लास में जाओ । " उस दिन बबीता बड़ी हो गई थी क्योंकी उस दिन उसे अहसास हो गया था की उसे अब दरिंदों की भूखी नज़रों से बचना चाहिए । उस दिन उसका बच्चपना मर गया था । वो डरी सहमी सी रहने लगी । उसे अब अपने पिता अपने भाई सबकी छुअन से डर लगने लगा था ।
मास्टर साहेब का हर रोज़ उसे बहाने से छूना आम हो गया था । बबीता अन्दर ही अन्दर टूटने लगी डर की इस मार से । एक दिन पार्क में बंच पर अकेली बैठी रो रही थी । पीछे से किसी ने कंधे पर हाथ रखा , बबीता चौंक पड़ी फिर से उस जाने पहचाने डर की कल्पना कर के । मगर ये हाथ था नुपुर का । क्लास की सबसे मुँहफट लड़की थी नुपुर , किसी से सीधे मुँह बात नही करती थी । बबीता से भी नुपुर की कोई खास दोस्ती नही थी । हाँ पर नुपुर ने बबीता को कभी कुछ नही कहा था । नुपुर ने उसका डर भाँपते हुए कहा " मास्टर से डर रही हो ना ! जानते हैं ऊ एक नंबर का हरामी है । बहुत दिन से तुमको देख रहे हैं , सहमी सी डरी सी रहती हो । एगो बात कहें बुरा नही मानना और मानिओ लोगी तो हमारा क्या उखाड़ लोगी । साली तुम जैसी लड़कियों के चलते ही ई हरामी सब का हिम्मत बढ़ जाता है । तुम सब चुप हो जाती हो और फिर ई सब ऊ डर का फायदा उठाते हैं । कभी ग़ौर की हो हमसे नही उलझता , पता है काहे ? जैसा तुम्हारे साथ कर रहा है ना वैसा ही मेरे साथ करने की कोसिस किया था । एक बेर ठेहुना से अइसा मारे के अन्डा फोड़ दिए साला के । छटपटा गया था । पर कहता किसे और कहता तो कहता क्या । बस उसे पता हो गया यहाँ दाल ना गलेगी तब से हमको आँख भर देखने का भी हिम्मत नही करता । तुम डरोगी ई हरामी सब डराएगा । तुम डरना छोड़ दो इसके बाप का हिम्मत नही तुमको कुछो कह जाए । अब रो मत , कुछ ऐसा करो के डर तुमको नही उसको लगे । " बबीता में आज एक अजीब सी हिम्मत आगई थी । उसे गुरू मिल गया था जिसने उसे इस डर का सामना कर के उसे पटक कर मारने का गुण सिखा दिया था ।
अगले दिन अचानक से स्कूल में हल्ला पड़ गया की अंग्रेजी वाले मास्टर साहेब का पैर फिसल गया और सर डेस्क से टकरा गया । बुरी तरह से सर फूट गया । हस्पताल ले गए उन्हे । सब मास्टर साहेब के सर फूटने का अफ़सोस मना रहे थे और इधर नुपुर मुस्कुरा कर आँखों आँखों में बबीता को शाबाशी दे रही थी । महीने बाद मास्टर साहेब स्कूल लौटे तो बबीता ने कहा " मास्टर साहेब परनाम । " मास्टर साहेब पीछे हटते हुए नज़रे नीचे किए हुए " हाँ हाँ ठीक है ठीक है खुस रहो " कहते हुए ऐसे भागे वहाँ से जैसे पेटझरिआ पकड़ लिआ हो । बबीता मन ही मन ठहाका पाड़ के हँस पड़ी थी अपनी जीत पर । उस दिन के बाद हर शिक्षक दिवस पर मन ही।मन नुपुर को प्रणाम करती थी बबीता । वही तो थी उसकी असल गुरू । वो ना होती तो शायद बबीता खुद को खत्म भी कर लेती ।
आप सबको शिक्षक दिवस की शुभकामनाऐं
धीरज झा
" ऐ बबीतिया तुम आज फिर नही बना के लाई टास्क ? चलो तुम हमको ऐस्टाफ रूम में मिलो , तुमको बताते हैं । डरे मर गया है तुम्हारा । " अंग्रेजी शाले मास्टर साहेब आठवीं की छात्रा बबीता पर अपने तेवर झाड़ते हुए बोले ।
बबीता टास्क बना कर नही लाती थी । हालाँकी पढ़ने में वो इतनी बुरी नही थी । पर वो टास्क बस इसलिए नही बना पाती थी क्योंकी मास्टर साहेब का डर उसे अब कुछ भी नही करने देता था । यही कोई दो महीने पहले ही बबीता की बुआ के बेटे की शादी थी । उसने छुट्टी भी ली थी । शादी में लड़कपन्न और मस्ती के बीच ना अंग्रेजी याद रही ना टास्क । जब स्कूल पहुँची अपनी मस्तियों से बाहर निकल कर तो मास्टर साहेब ने खूब सुनाया ये जानते हुए की वो शादी में गई थी । फिर उसे स्टाॅफरूम में बुलाया और प्यार से समझाने लगे " देखो बबीता , पढ़ोगी नही तो कैसे चलेगा । आगे कैसे बढ़ पाओगी । अंग्रेजी बहुत ज़रूरी.... । " इतना कहता मास्टर साहेब की आँखें बन्द हो गईं । मुँह से एक गंदी सी आह निकली थी । वो बबीता को कुछ ज़्यादा ही प्यार से समझाने लग पड़े थे । उनका हाथ बबीता के सर से सरकता हुआ उसकी पीठ कमर से नीचे और ना जाने कहाँ कहाँ जाने लगा था । बबीता बुरी तरह काँप गई थी । खुद को झटके से छुड़ा कर दूर खड़ी हो गई थी मास्टर साहेब से ।
मास्टर साहेब भड़कते हुए बोले थे " कल से टास्क बना कर ना लाई तो सारा दिन बेंच पर खड़ा रखेंगे । चलो भागो , क्लास में जाओ । " उस दिन बबीता बड़ी हो गई थी क्योंकी उस दिन उसे अहसास हो गया था की उसे अब दरिंदों की भूखी नज़रों से बचना चाहिए । उस दिन उसका बच्चपना मर गया था । वो डरी सहमी सी रहने लगी । उसे अब अपने पिता अपने भाई सबकी छुअन से डर लगने लगा था ।
मास्टर साहेब का हर रोज़ उसे बहाने से छूना आम हो गया था । बबीता अन्दर ही अन्दर टूटने लगी डर की इस मार से । एक दिन पार्क में बंच पर अकेली बैठी रो रही थी । पीछे से किसी ने कंधे पर हाथ रखा , बबीता चौंक पड़ी फिर से उस जाने पहचाने डर की कल्पना कर के । मगर ये हाथ था नुपुर का । क्लास की सबसे मुँहफट लड़की थी नुपुर , किसी से सीधे मुँह बात नही करती थी । बबीता से भी नुपुर की कोई खास दोस्ती नही थी । हाँ पर नुपुर ने बबीता को कभी कुछ नही कहा था । नुपुर ने उसका डर भाँपते हुए कहा " मास्टर से डर रही हो ना ! जानते हैं ऊ एक नंबर का हरामी है । बहुत दिन से तुमको देख रहे हैं , सहमी सी डरी सी रहती हो । एगो बात कहें बुरा नही मानना और मानिओ लोगी तो हमारा क्या उखाड़ लोगी । साली तुम जैसी लड़कियों के चलते ही ई हरामी सब का हिम्मत बढ़ जाता है । तुम सब चुप हो जाती हो और फिर ई सब ऊ डर का फायदा उठाते हैं । कभी ग़ौर की हो हमसे नही उलझता , पता है काहे ? जैसा तुम्हारे साथ कर रहा है ना वैसा ही मेरे साथ करने की कोसिस किया था । एक बेर ठेहुना से अइसा मारे के अन्डा फोड़ दिए साला के । छटपटा गया था । पर कहता किसे और कहता तो कहता क्या । बस उसे पता हो गया यहाँ दाल ना गलेगी तब से हमको आँख भर देखने का भी हिम्मत नही करता । तुम डरोगी ई हरामी सब डराएगा । तुम डरना छोड़ दो इसके बाप का हिम्मत नही तुमको कुछो कह जाए । अब रो मत , कुछ ऐसा करो के डर तुमको नही उसको लगे । " बबीता में आज एक अजीब सी हिम्मत आगई थी । उसे गुरू मिल गया था जिसने उसे इस डर का सामना कर के उसे पटक कर मारने का गुण सिखा दिया था ।
अगले दिन अचानक से स्कूल में हल्ला पड़ गया की अंग्रेजी वाले मास्टर साहेब का पैर फिसल गया और सर डेस्क से टकरा गया । बुरी तरह से सर फूट गया । हस्पताल ले गए उन्हे । सब मास्टर साहेब के सर फूटने का अफ़सोस मना रहे थे और इधर नुपुर मुस्कुरा कर आँखों आँखों में बबीता को शाबाशी दे रही थी । महीने बाद मास्टर साहेब स्कूल लौटे तो बबीता ने कहा " मास्टर साहेब परनाम । " मास्टर साहेब पीछे हटते हुए नज़रे नीचे किए हुए " हाँ हाँ ठीक है ठीक है खुस रहो " कहते हुए ऐसे भागे वहाँ से जैसे पेटझरिआ पकड़ लिआ हो । बबीता मन ही मन ठहाका पाड़ के हँस पड़ी थी अपनी जीत पर । उस दिन के बाद हर शिक्षक दिवस पर मन ही।मन नुपुर को प्रणाम करती थी बबीता । वही तो थी उसकी असल गुरू । वो ना होती तो शायद बबीता खुद को खत्म भी कर लेती ।
आप सबको शिक्षक दिवस की शुभकामनाऐं
धीरज झा
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