मैं उस दिन बेवजह नहीं रोया था 27 जुलाई 2015 को मैं पटना होस्टल में था । वहीँ एक आम सी शाम में छोटे बच्चों को पढ़ा कर कुछ लिखने कि कोशिश कर रह...
मैं उस दिन बेवजह नहीं रोया था
27 जुलाई 2015 को मैं पटना होस्टल में था । वहीँ एक आम सी शाम में छोटे बच्चों को पढ़ा कर कुछ लिखने कि कोशिश कर रहा था कि तभी मेरी नज़र फेसबुक की एक पोस्ट पर गई, जिसमे लिखा था की हमारे पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम जी का शिलोंग में हो रहे एक कार्यक्रम में अचानक से निधन हो गया । कलाम साहब न मेरे निकटतम रिश्तेदार थे, न मेरे दोस्त न मुझे जानने वाले मगर फिर भी ये पढ़ते ही आँखों से अपने आप आंसू झरने लगे । मैं पीछे के क्लास रूम में चला गया ये सोच कर की कोई बच्चा देखेगा तो न जाने क्या सोचेगा की सर क्यों रो रहे हैं । असल में मैं उस दिन खुद नहीं समझ पाया की मैं इतना दुखी था क्यों । बहुत से ऐसे लोग जिन्हें मैने बस टीवी पर देखा और उनके बारे में पढ़ा उनकी की तरह ही कलाम साहब का निधन भी हुआ था मगर उनके लिए मन इतना बेचैन क्यों था मैं समझ नहीं पाया ।
जानते हैं ऐसा क्यों हुआ था क्योंकि उनकी अच्छाई मन को अपने आप महसूस हो गई थी बस उन्हें टीवी पर देख कर और उनके बारे में ढेर सारा पढ़ कर । मुझे हर वो इंसान प्यारा है और मैं उसका दिल से सम्मान करता हूँ जिसने कठिनाइयों के जबड़े पर हिम्मत का ज़ोरदार मुक्का मारा हो और उसके मुंह में फंसी अपनी कामयाबी को छीन लाया हो । कलाम साहब भी उन्ही में से एक थे । अपनी परेशानियों का रोना रोने की बजाए उससे लड़ कर अपनी कामयाबी को हासिल करना सही समझा था इन्होने । इसी कारण हमारे मन में इनके लिए हमेशा वो जगह रहेगी जो शायद हम किसी और राजनेता को न दे पायें ऐसा शायद इस लिए भी है क्योंकि राष्ट्रपति होने के बावजूद भी ये गन्दी राजनीति से दूर थे ।
हम अपने देश के लिए ज्यादा से ज्यादा जान दे सकते हैं मगर कलम साहब देश के लिए जिंदा रहे और अपना सब कुछ देश की सेवा में समर्पित कर दिया । उन्होंने राष्ट्रपति बनने के बाद अपनी सारी जमांपूजी एक एनजीओ को दान कर दी थी। यही नहीं उन्होंने अपनी पूरी सैलरी भी दान कर दी थी। वो हमारे देश के एकमात्र ऐसे राष्ट्रपति थे जिन्होंने शादी नहीं की । जहाँ मंत्रीमंडल में शामिल होने के लिए आम तौर पर नेता लोग चमचागिरी की हर हद को पर कर जाते हैं वहीं आग्रह करने के बाद भी कलम साहब ने काम में अपनी व्यस्तता बताते हुए कैबिनेट मंत्री बनाने से इंकार कर दिया था । कलम साहब का कहना था जब हम हथियारों से युक्त देशों के बीच घिरे हों तो हमें भी हथियारों से युक्त हो जाना चाहिए और वैसा ही उन्होंने कर के दिखाया भारत को ऐसी मिसाइलों का तोहफा दिया जिस से भारत की सुरक्षा व्यवस्था अपने दुश्मनों के आगे एक दम निर्भीक हो गई । कलम साहब चाहते तो नासा को ज्वाइन कर के करोड़ों कम सकते थे मगर उन्होंने उसके बजाए इसरो को चुना और देश के लिए कम करने का फैसला किया । साहब को अपने राष्ट्रपति कार्यकाल में जब एक ढाबे पर आम इन्सान की तरह बैठ कर चाय पीते देखा तो उनके लिए अचानक से एक सम्मान पैदा हुआ जो हमेशा बढ़ता ही रहा । धर्म की भड़काऊ आग से एक दम परे के इन्सान जिनके दमन में कभी कोई दाग नज़र ही नहीं आया ।
अब सोचता हूँ तो समझ आता है की उस दिन इतना दुःख क्यों हुआ था । शायद इसी लिए क्यों की हमने उस दिन एक इन्सान को खोया था जो अब बहुत कम बचे हुए हैं । इनके बारें में लिखने बैठें तो शायद कभी रुकें ही ना । ज़िन्दगी में हर किसी को कोई न कोई प्रेरित करता है । मुझे प्रेरित करने वालों में सबसे पहला नाम कलम साहब का ही आता है वर्ना राजनीति से किसी भी तरह का सम्बन्ध रखने वाले नेता मंत्री के लिए मैं अपने शब्दों और वक़्त को कभी बर्बाद न करता ।
आज कलाम साहब का जन्मदिवस है । वो जहाँ कहीं भी हैं मैं उनसे यही कहना चाहूँगा कि आप जैसा इन्सान कभी मरता नहीं, मुझ जैसे कई सनकियों के दिलों में हमेशा जिंदा रहता है । नमन है उस इन्सान को जिसने अपने काम अपनी सोच अपने हौसले से राष्ट्रभक्ति की असल परिभाषा हमें समझाई ।
नमन है कलम साहब आपको
धीरज झा
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