. सुंदरता की मुरत नही कहेंगे... कोई अनोखी सूरत नही कहेंगे... कंपकपाते होंठों को गुलाब की पंखुड़ियों का का गुलदस्ता नही कहेंगे... हर कोई कहता...
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सुंदरता की मुरत नही कहेंगे...
कोई अनोखी सूरत नही कहेंगे...
कंपकपाते होंठों को गुलाब की
पंखुड़ियों का का गुलदस्ता नही कहेंगे...
हर कोई कहता है
तो फिर हम भी चाँद सीतारों
सा तुम्हे सस्ता नही कहेंगे...
जिस पर चल को पहुंच जायें
मंज़िल के पड़ाव पर
तुम्हे इस्तेमाल होने वाला रस्ता नही कहेंगे...
हर कोई जिसे पा लेता है
फूलों का वो गुल्दस्ता नही कहेंगे...
ज़मीं से मिलने को तड़पता है जो...
वो बादरी सा तरस्ता नही कहेंगे...
क्योंकी...
तुम सुंदरता की अभिव्यक्ती से
बहुत ऊपर की सूरत हो...
तुम बिना आकार रूह में समाई
हुई रब के रूप सी मूरत हो...
तुम लफ्ज़ हो मेरी शायरी कविता कहानियों की...
तुम देन हो मेरे स्वपन में संभली निशानियों की...
तुम चाँद तारे जिस में समाये मेरा वो ब्रह्माण्ड हो...
तुम तुम नही मुझ में समाया मेरा घमन्ड हो...
तुम फूल नही संपूर्ण प्रकृति का स्वरूप हो...
तुम ही छाँव बादल सहरा तुम्ही धूप हो...
तुम हर तारीफ से परे का लफ्ज़ हो...
मैं ज़िंदा हूं तुम्हारी वजह से...
क्योंकी तुम ही धड़कन साँसें और नब्ज़ हो...
मेरे हर गीत का सुर हो...
मेरे हर शब्द की आवाज़ हो...
तुम ही मेरा कल तुम ही मेरी आज हो...
मैं धुन हूं तो तुम साज हो...
मेरा हर राज़ हो...
अब समझ लो तुम क्या हो मेरे लिये...
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सुंदरता की मुरत नही कहेंगे...
कोई अनोखी सूरत नही कहेंगे...
कंपकपाते होंठों को गुलाब की
पंखुड़ियों का का गुलदस्ता नही कहेंगे...
हर कोई कहता है
तो फिर हम भी चाँद सीतारों
सा तुम्हे सस्ता नही कहेंगे...
जिस पर चल को पहुंच जायें
मंज़िल के पड़ाव पर
तुम्हे इस्तेमाल होने वाला रस्ता नही कहेंगे...
हर कोई जिसे पा लेता है
फूलों का वो गुल्दस्ता नही कहेंगे...
ज़मीं से मिलने को तड़पता है जो...
वो बादरी सा तरस्ता नही कहेंगे...
क्योंकी...
तुम सुंदरता की अभिव्यक्ती से
बहुत ऊपर की सूरत हो...
तुम बिना आकार रूह में समाई
हुई रब के रूप सी मूरत हो...
तुम लफ्ज़ हो मेरी शायरी कविता कहानियों की...
तुम देन हो मेरे स्वपन में संभली निशानियों की...
तुम चाँद तारे जिस में समाये मेरा वो ब्रह्माण्ड हो...
तुम तुम नही मुझ में समाया मेरा घमन्ड हो...
तुम फूल नही संपूर्ण प्रकृति का स्वरूप हो...
तुम ही छाँव बादल सहरा तुम्ही धूप हो...
तुम हर तारीफ से परे का लफ्ज़ हो...
मैं ज़िंदा हूं तुम्हारी वजह से...
क्योंकी तुम ही धड़कन साँसें और नब्ज़ हो...
मेरे हर गीत का सुर हो...
मेरे हर शब्द की आवाज़ हो...
तुम ही मेरा कल तुम ही मेरी आज हो...
मैं धुन हूं तो तुम साज हो...
मेरा हर राज़ हो...
अब समझ लो तुम क्या हो मेरे लिये...
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