चिंताओं से मनुष्य मुक्त कब हुआ जब चिता पर लेटा क्या तब हुआ ? मगर किसने देखा है उस पार का नज़ारा किसने जाना है वहाँ के दस्तूर क्या हैं है वो...
चिंताओं से मनुष्य मुक्त कब हुआ
जब चिता पर लेटा क्या तब हुआ ?
मगर किसने देखा है उस पार का नज़ारा
किसने जाना है वहाँ के दस्तूर क्या हैं
है वो जन्नत फूलों से सजी हुई
परियों से घिरी हुई
या फिर है इस नर्क से भी
बद्दतर नज़ारा वहाँ का
व्यर्थ है चिंता और ये सोचना की
सब खत्म हो जाता है
खुद खत्म होने के बाद
एक नए दुख का होता है
आग़ाज़ तुम्हारे चले जाने के बाद
तुम सोचते हो
हो गए गए मुक्त ज़िम्मेदारियों से
मगर असल में तुम भागते हो
अपने आप से
तुम हो कामचोर डरते हो मेहनत से
कायर हो तुम्हे डर लगता।है लड़ने से
मगर ऐसे नही दुनिया चलने वाली
तुम जन्मे हो इस संसार को
उठा कर चलाने के लिए अपने हिस्से
की ताकत देने के लिए
तुम्हारी तरह हर एक गर कायर होने लगे
कल के कल लाशों से भर जाए
धरती सारी
तुमको लड़ना है
तुमको कुछ करना है
जिस मंज़िल को ढूँढने के लिए भेजा है तुम्हे
गिरते पड़ते ही सही
उस मंज़िल तक तुम्हे जाना होगा
धीरज झा
जब चिता पर लेटा क्या तब हुआ ?
मगर किसने देखा है उस पार का नज़ारा
किसने जाना है वहाँ के दस्तूर क्या हैं
है वो जन्नत फूलों से सजी हुई
परियों से घिरी हुई
या फिर है इस नर्क से भी
बद्दतर नज़ारा वहाँ का
व्यर्थ है चिंता और ये सोचना की
सब खत्म हो जाता है
खुद खत्म होने के बाद
एक नए दुख का होता है
आग़ाज़ तुम्हारे चले जाने के बाद
तुम सोचते हो
हो गए गए मुक्त ज़िम्मेदारियों से
मगर असल में तुम भागते हो
अपने आप से
तुम हो कामचोर डरते हो मेहनत से
कायर हो तुम्हे डर लगता।है लड़ने से
मगर ऐसे नही दुनिया चलने वाली
तुम जन्मे हो इस संसार को
उठा कर चलाने के लिए अपने हिस्से
की ताकत देने के लिए
तुम्हारी तरह हर एक गर कायर होने लगे
कल के कल लाशों से भर जाए
धरती सारी
तुमको लड़ना है
तुमको कुछ करना है
जिस मंज़िल को ढूँढने के लिए भेजा है तुम्हे
गिरते पड़ते ही सही
उस मंज़िल तक तुम्हे जाना होगा
धीरज झा
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