दिल में रंज और मुस्कुराहटों को होंठों से दूर रखता है "मैं" जिसकी आदत में हो वो बेवजह ही खुद में ग़ुरूर रखता है कितने भी पत्ते बुल...
दिल में रंज और मुस्कुराहटों को होंठों से दूर रखता है
"मैं" जिसकी आदत में हो वो बेवजह ही खुद में ग़ुरूर रखता है
कितने भी पत्ते बुलंद क्यों ना हों तेरी किस्मत के
वक्त एक इक्का अपनी मुट्ठी में दबा कर ज़रूर रखता है
ये कुदरत ये रौनक ये महफिल सब बेकार हैं उस शक्स के लिए
जो अपनी आँखों में सिर्फ और सिर्फ दौलत का सुरूर रखता है
वो क्या समझेगा दिलों की नर्मियों को मेरे दोस्त
चंद सिक्के चढ़ा कर जो खुदा के दर पर भी खुद को मग़रूर रखता है
धीरज झा
"मैं" जिसकी आदत में हो वो बेवजह ही खुद में ग़ुरूर रखता है
कितने भी पत्ते बुलंद क्यों ना हों तेरी किस्मत के
वक्त एक इक्का अपनी मुट्ठी में दबा कर ज़रूर रखता है
ये कुदरत ये रौनक ये महफिल सब बेकार हैं उस शक्स के लिए
जो अपनी आँखों में सिर्फ और सिर्फ दौलत का सुरूर रखता है
वो क्या समझेगा दिलों की नर्मियों को मेरे दोस्त
चंद सिक्के चढ़ा कर जो खुदा के दर पर भी खुद को मग़रूर रखता है
धीरज झा
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