पिता उस पेड़ की तरह है जिसके रहते उसके तले की छाँव कुछ खास नही लगती बस एक छाँव लगती है जैसे सब पेड़ों की बस एक फर्ज़ जो हर पेड़ का होता है मगर...
पिता उस पेड़ की तरह है जिसके रहते उसके तले की छाँव कुछ खास नही लगती बस एक छाँव लगती है जैसे सब पेड़ों की बस एक फर्ज़ जो हर पेड़ का होता है मगर पता तब लगता है जब वो पेड़ कट कर गिर जाता उसके बाद जब सूरज की तेज किरणें तन को जला रही होती हैं।और उस से बचने के लिए जब वो पेड़ और उसकी छाया नही मिलती तब पता चलती है उस पेड़ की कीमत । ज़िंदगी बड़ी बेरहम है दोस्त ना एक औरत का रूदन उसका दिल पिघला सकता है ना बिलखते हुए बच्चे उसको नज़र आते हैं । पिता जी का मन से ख़याल रखा करो इनका रूठना सहा नही जाता ।
साल पहले बहुत तड़प कर लिखा था और कहा था पापा मान जाओ ना मगर नही मानें चले गए छोड़ कर हमे । एक साल होगया मगर यकीन आज भी नही होता । एक साल पहले का लिखा है इसे पढ़ें और अपने अन्दर एक डर पैदा होने दें जिस से आपको अहसास हो की एक बाप का ना होना कितना खलता है और अगर जाने अंजाने में अपनी व्यस्तता की वजह से अपने पिता से थोड़ा दूर हो गए हों तो उनके पास हो जाऐं ।
#पापा_मान_भी_जाईए
.
छोटे थे तो पापा अक्सर कहते थे पैर दबाओ | अब पापा का हुक्म है तो टाला भी कैसे जा सकता है पर मन भी नही है बाहर दोस्त लोग जो हैं खेलने को बुला रहे | तब मन में आता ज़ोर ज़ोर से दबाते हैं थोड़ी देर में पापा को दर्द होगा खुद कहेंगे छोड़ दो बेटा | पर यहां हमारा बुरा हाल हो जाता ज़ोर लगा लगा कर पर पापा पर कोई असर ही नही होता | तब माँ बाप की सेवा ही सबसे बड़ा पुण्य है टाइप की बाप दिमाग में घुसती कहाँ थी | हम तीनों भाई इस प्रताड़ना से पीड़ित थे | पर पापा के ऊपर इसका कहाँ असर पड़ता |
धीरे धीरे हम बड़े होते गये | अब शरीर में ताकत ज़ोरों से महसूस होती थी | तब जब पहली बार पापा के पैर दबाते हुये उनके मुँह से सुना के अब रहने दो | अरे तोरी के ! पुछिये मत कितनी खुशी हुई | मज़ा आ गया था | तब कहे थे पापा से अरे बस इतनी देर ही , इससे क्या होगा ? और दबाते हैं तब पापा कहते कहा ना छोड़ दे दर्द हो रहा है | बारी बारी तीनों के साथ हुआ जैसे जैसे ताकत आती गई | तब ग़ौर किया पापा की आँखों में मिले जुले भाव को | वो भाव देख कर खुशी गायब हो गयी यार | वो भाव दो तरह के थे एक ये के बेटा बड़ा हो गया | ये खुशी का भाव था और दूसरा यो के मै अब बूढ़ा.हो रहा हूं शायद ये दुख का भाव था | पर तब भी खुशी का भाव दुख पर भारी लगा | बस ज़ोर दलगाना छोड़ दिया |
दबाते हुये लगता के बहुत ज़ोर से दबा रहे हैं पर असल में ज़ोर लगाते ही नही | ये इस लिये करते के वो ये ना समझें मै कमज़ोर पज़ रहा हूं | बूढ़ा हो रहा हूं | पर आज जब वो बिमार हैं बिस्तर से उठ तक नही सकते करवट.तक खुद से नही ले सकते | तब भगवान से दुआ करते हैं मन ही मन भगवान हमको कौन सा कुश्ती खेलनी है | ताकत सारी ले लो बस वो दिन लौटा दो जब हम पैर दबाते थक जाते थे पर पापा को फर्क ही नही पड़ता था | जानते हैं ऐसा नही हो सकता कभी नही | सब पर एक दिन ये बुढ़ापा हावी होगा पर फिर भी दुआ करते हैं |
नही चाहिये ये ताकत बस पापा को वैसा ही करदो भगवान हम थक जायें पर वो ना थकें | एक बार फिर कहदें " केतनो बड़का हो जाओ रे बाप से नही जीत सकते |" नही जीतना पापा हम सबको ऐसे नही चाहिये ऐसी जीत | देखो ना पापा आज जीत कर भी हार रहे हैं | आज मालूम होता है ताकत तो आप हो यार | बस एक बार खड़े हो जाओ पैरों पर पापा कसम से कभी हारने नहीं देंगे आपको | आज फिर रो दिये पापा आपको लिखते लिखते | अब तो मान जाओ | :'(
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धीरज झा...
साल पहले बहुत तड़प कर लिखा था और कहा था पापा मान जाओ ना मगर नही मानें चले गए छोड़ कर हमे । एक साल होगया मगर यकीन आज भी नही होता । एक साल पहले का लिखा है इसे पढ़ें और अपने अन्दर एक डर पैदा होने दें जिस से आपको अहसास हो की एक बाप का ना होना कितना खलता है और अगर जाने अंजाने में अपनी व्यस्तता की वजह से अपने पिता से थोड़ा दूर हो गए हों तो उनके पास हो जाऐं ।
#पापा_मान_भी_जाईए
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छोटे थे तो पापा अक्सर कहते थे पैर दबाओ | अब पापा का हुक्म है तो टाला भी कैसे जा सकता है पर मन भी नही है बाहर दोस्त लोग जो हैं खेलने को बुला रहे | तब मन में आता ज़ोर ज़ोर से दबाते हैं थोड़ी देर में पापा को दर्द होगा खुद कहेंगे छोड़ दो बेटा | पर यहां हमारा बुरा हाल हो जाता ज़ोर लगा लगा कर पर पापा पर कोई असर ही नही होता | तब माँ बाप की सेवा ही सबसे बड़ा पुण्य है टाइप की बाप दिमाग में घुसती कहाँ थी | हम तीनों भाई इस प्रताड़ना से पीड़ित थे | पर पापा के ऊपर इसका कहाँ असर पड़ता |
धीरे धीरे हम बड़े होते गये | अब शरीर में ताकत ज़ोरों से महसूस होती थी | तब जब पहली बार पापा के पैर दबाते हुये उनके मुँह से सुना के अब रहने दो | अरे तोरी के ! पुछिये मत कितनी खुशी हुई | मज़ा आ गया था | तब कहे थे पापा से अरे बस इतनी देर ही , इससे क्या होगा ? और दबाते हैं तब पापा कहते कहा ना छोड़ दे दर्द हो रहा है | बारी बारी तीनों के साथ हुआ जैसे जैसे ताकत आती गई | तब ग़ौर किया पापा की आँखों में मिले जुले भाव को | वो भाव देख कर खुशी गायब हो गयी यार | वो भाव दो तरह के थे एक ये के बेटा बड़ा हो गया | ये खुशी का भाव था और दूसरा यो के मै अब बूढ़ा.हो रहा हूं शायद ये दुख का भाव था | पर तब भी खुशी का भाव दुख पर भारी लगा | बस ज़ोर दलगाना छोड़ दिया |
दबाते हुये लगता के बहुत ज़ोर से दबा रहे हैं पर असल में ज़ोर लगाते ही नही | ये इस लिये करते के वो ये ना समझें मै कमज़ोर पज़ रहा हूं | बूढ़ा हो रहा हूं | पर आज जब वो बिमार हैं बिस्तर से उठ तक नही सकते करवट.तक खुद से नही ले सकते | तब भगवान से दुआ करते हैं मन ही मन भगवान हमको कौन सा कुश्ती खेलनी है | ताकत सारी ले लो बस वो दिन लौटा दो जब हम पैर दबाते थक जाते थे पर पापा को फर्क ही नही पड़ता था | जानते हैं ऐसा नही हो सकता कभी नही | सब पर एक दिन ये बुढ़ापा हावी होगा पर फिर भी दुआ करते हैं |
नही चाहिये ये ताकत बस पापा को वैसा ही करदो भगवान हम थक जायें पर वो ना थकें | एक बार फिर कहदें " केतनो बड़का हो जाओ रे बाप से नही जीत सकते |" नही जीतना पापा हम सबको ऐसे नही चाहिये ऐसी जीत | देखो ना पापा आज जीत कर भी हार रहे हैं | आज मालूम होता है ताकत तो आप हो यार | बस एक बार खड़े हो जाओ पैरों पर पापा कसम से कभी हारने नहीं देंगे आपको | आज फिर रो दिये पापा आपको लिखते लिखते | अब तो मान जाओ | :'(
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धीरज झा...
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