अक्सर सुना है लोगों से आमीर और अमीरी को ले कर तंज कसते हुए । आधे से ज्यादा लोग तो ये मानते हैं की गरीबी अमीरों की वजह से ही है । क्या ये...
अक्सर सुना है लोगों से आमीर और अमीरी को ले कर तंज कसते हुए । आधे से ज्यादा लोग तो ये मानते हैं की गरीबी अमीरों की वजह से ही है । क्या ये अमीरों के लिए एक मात्र जलन की भावना नहीं ? हर इन्सान अपनी किस्मत अपने दिमाग अपनी मेहनत और अपनी मक्कारी का कमाया खाता है । आपने मेहनत ईमानदारी का रास्ता चुना तो आप गरीब रह गए, उन्होंने दिमाग और मक्कारी से काम चलाया तो अमीर हो गए । वैसे असल में यहाँ कोई अमीर है ही नहीं । अमीर वो होता है जो संतुष्ट हो मगर यहाँ तो जिसके पास जितना पैसा वो उतना असंतुष्ट है ।
एक मजदूर सारा दिन कमाता है शाम को मुंह हाथ पोंछ कर अपनी देहाड़ी ले कर घर चला जाता है । वो संतुष्ट है क्योंकि उसने अपनी ज़रूरतों का दायरा उतना ही रखा है जितना वो कमाता है मगर दूसरी तरफ अमीर कहे जाने वाला इंसान करोड़ों अरबों में खेल रहा है मगर अपने से ऊपर वाले को नीचे गिराने की धुन में उसे असंतुष्टि ने घेर रखा है । तो भला ऐसे इंसान से कैसा जलना । वैसे भी अगर वो लूटता है तो उसका हिस्सा है हमने लूटने दिया तब ना उसने लूटा ।
मौके मौके की बात है साहब, जिसे मिला उसने छोड़ा ही नहीं, चाहे रास्ता जो भी हो । जो लोग गरीबी पर ज्ञान देते हैं उनमे से आधों को तो ये पता भी नहीं की जिस फोन और नेट से वो गरीबी हटाओ के लेख लिख रहे हैं वो पैसा सही तरीके से आया है या गलत । कोई एक इंसान ऐसा नहीं मिलेगा जो सही तरीके से अमीर बना हो, या तो उसका पुश्तैनी धन उसे अमीर बनता है जो पता नहीं उसके बाप दादाओं ने कैसे जमा किया होगा, या तो इंसान दिमाग के बल पर अमीर बनता है और एक बात बता दूँ दिमाग हमेशा आपके फायदे का सोचता है भले ही तरीका गलत क्यों न हो ।
जिसके पास दिमाग या पुर्खों की दौलत थी वो अमीर बन गए आपने दिल से काम लिया ईमानदार रहे तो इस दशा में हैं । इसमें आमिर तो मज़े लूटेगा ही । और वैसे भी आप जब तक गरीब हैं तभी तक वो अमीर है । आप 100 रूपए में भी नवाबी दिखाएँ तो वो करोड़ों का नवाब आपके सामने अपनी धौंस नहीं झाड़ पाएगा । मगर अफ़सोस वो सौ रुपये भी उसी अमीर की जेब से आप तक पहुंचे हैं । आपके पास दो ही रस्ते हैं या तो आप दिमाग लगा कर आगे बढ़िए नहीं तो जीते रहिए ऐसे ही 400 की देहाड़ी में संतुष्ट हो कर ।
और मेरे जैसा गरीब मध्य और अमीर वर्ग के बीचों बीच लटका इंसान तो बस तमाशा देखेगा । क्योंकि हमारी जरूरतें हमारी अमदन से बड़ी हैं और हम उन्ही को को पूरा करने में ना दिमाग लगा पते हैं आगे बढ़ने के लिए न सोच पते हैं । बाकि आप सब तो खुद जनीजान हैं प्रभू मैं अज्ञानी क्या कहूँ ।
ये सब पढ़ कर आपको अगर गलत लगा हो कुछ तो मुझे कोसने की बजाए गरीबों के लिए अपने सामर्थ के अनुसार कुछ कर के दिखाएं । शायद मेरा गलत लिखना सार्थक साबित हो जाये ;)
धीरज झा
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