ग़ाज़ियाबाद के एक दुर्लभ ए टी एम (दुर्लभ इसलिए क्योंकि आस पास के एरिया में एक यही ए टी एम काम कर रहा है ) के आगे का दृश्य जहाँ ज़रूरतमंद...
ग़ाज़ियाबाद के एक दुर्लभ ए टी एम (दुर्लभ इसलिए क्योंकि आस पास के एरिया में एक यही ए टी एम काम कर रहा है ) के आगे का दृश्य जहाँ ज़रूरतमंद लोगों की लम्बी कतार लगी हुई है । वक्त बिताने के लिए सब अपना दुख एक दूसरे से सांझा रहे हैं । बीच में देशभक्ति को एक साईड रख कर लोग घर संसार की परेशानियों से त्रस्त हैं ।
"ई मोदिया तो सब को चरखी बना दिया है । जनता त्राहि त्राहि मचाए है पर इसको कोनो फिकर नही । बताओ ई कोनो तरीका हुआ ?" लाईन में लगे पीछे से बारहवें नंबर वाले ने खईनी पर आखरी थाप मार कर गर्दा उड़ाते हुए अपने से आगे वाले से कहा । इसकी शक्ल शिवपाल चच्चा जैसी लग रही थी । पर हमें का हम इनका बात सुनते हैं ।
"हाँ भई, ससुरा सब काम नास हो गया है । लगता है जईसे पूराना जमाना में आगए हैं । लोग परसान हैं आ मोदिया देस देस कालाधन कालाधन चिचिया रहा है । बार न उखड़ने बाला है एकरा से बस हम जईसा लोग परसान होगा । हमको खुद मन भर दारू पिए जमाना हो गया । आठ तारीक के बाद एगो हाफ में दू दिन चलाते हैं ।" बारहवें नम्बर वाले ने खईने से झड़े गर्दे से अपने आप को बचाते हुए कहा । वैसे तो आम दिनों में ऐसे कोई मुंह पर गर्दा झाड़ देता तो तीसरे विश्वयुद्ध की कुछ झलकियाँ दिख ही जातीं मगर अभी इसकी सुध कहाँ अभी तो मोदी गरिआओ अभियान जारी है । पर हमको का, आगे सुना जाए ।
"सही कह रहे हैं साहब इससे अच्छा त बिहार का सराब बंदी है लोग बंदिओं में मजा मार रहा है । ईहाँ देख लिजिए, का फायदा दिल्ली के सस्ता दारू का जब जेबी में नोटे ना हो ।“ बारहवें नंबर वाले ने अपने पीछे खड़े बन्दे पर यह सोच कर नज़र मारी कि शायद वो भी उसके दिए ज्ञान से सहमत हो पर पीछे वाला बंदा तो अपनी धुन में मगन था ।
“का बताएं साहब चार दिन पहिलही तो 2000 रुपैया बदलवा कर ले गए थे,मगर साला चार दिन में ख़तम हो गया, रसन पानी त उधारे आता है मगर अपना दारू चखना कैसे चले इतने में ?” दोनों ऐसे ही अपने दुःख सांझे करते रहे ।
बीच वाले बंदे के पीछे दो आंटियाँ भी अपने दुःख की दास्ताँ सुना रही थीं, ऐसा दुःख जो पत्थर को रोने पर मजबूर कर दे । एक ने कहा “बहुत बुरा हल है बहन जी नोटबंदी के चाकर में ना किट्टी पार्टियाँ हो रही हैं न बाज़ार से कुछ शौपिंग हो पा रही है । बहन जी आइब्रो किते बढ़ गए हैं, देखिए कितना बुरा लगता है और यहाँ सर्कार कालाधन कालाधन किए जा रही है । बताओ हमारे पास है कालाधन जो हमें लाईनों में लगा दिया है ?” दूसरी आंटी ने सहमती जताई और अपना भी मिलता जुलता दुःख सुनाया ।
पास में कुछ आवाजें आरही थीं जो ये थीं “दिक्कत होती है तो हो मगर काम तो अच्छा है भाई, हम तो देश के लिए हज़ार दिक्कतें सहने को तैयार हैं, फ़ौजी भी तो हमारे लिए सरहद पर खड़े हैं ना / ये हमारा फ़र्ज़ है /”
सब अपने कीमती विचार दे ही रहे थे कि इतने में बगल की सड़क पार कर रही एक बुजुर्ग महिला को ऑटो से टक्कर लग गई वो बेचारी चिल्ला कर गिर पड़ी ।
लोगों ने अपना हमेशा वाला कर्म निभाते हुए लाईन में लगे लगे हो हल्ला शुरू कर दिया । एक की आवाज़ आई “मोदी न जाने और कितनी जानें लेगा ।”
“हाँ भाई मैंने तो देखा ये माता जी खड़ी थीं लाईन में चक्कर खा कर गिर पड़ीं ।” इसी तरह सबने अपनी अपनी जगह पर खड़े खड़े ही बुजुर्ग माता जी के गिरने का शोक मनाया । माता जी अभी भी गिरी पड़ी हैं । पर किसी को ज्ञान छोड़ कर उनकी मदद का नहीं सूझ रहा ।
इतने में वो बाँदा जो आंटियों और उन दुखियारे 12वें नंबर वाले से पीछे खड़ा था वो लाइन से निकल कर उस बूढी माता जी के पास गया उन्हें उठाया, पानी पिला कर रोड पर करवाया । इतने में लाईन में उनकी जगह किसी और ने बुक कर ली थी ।
वो मुस्कुराया और मन ही मन बोला “कोई ना 50 रूपए हैं, काम चल जाएगा ।” ये सोच कर वो पागल बंदा वापिस मुड़ आया । उसके आगे और पीछे के लोग उसकी मुर्खता पर मंद मंद मुस्कुरा रहे थे । सच में ऐसे लोग पागल ही होते हैं ।
समर्थन या विरोध से पहले आती है मानवता, जो किसी की सहायता कर के दिखाई जाती है, देशभक्ति धर्मभक्ति या किसी भी भक्ति से बड़ी है ये मानवता अगर आप मानवता नहीं निभा सकते तो आप इंसान कहलाने योग्य ही नहीं हैं ।
खैर दिक्कत तो बहुत है भाई ।।
धीरज झा
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